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भाग्योदय का दिशा संबंध, शुभ कार्यों में क्यों होता है दिशा विचार, जानिए क्या कहते हैं ज्योतिष ? - Direction relation with fortune

किसी भी मनुष्य का भाग्योदय उसके कर्मस्थल की दिशा से तय होती है. अगर दिशा उसके भाग्य के अनुकूल है तो उसकी उन्नति तय है. आइए जानते हैं इस बारे में ज्योतिष क्या कहते हैं.

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भाग्योदय का दिशा से संबंध (ETV Bharat)

By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Aug 16, 2024, 3:39 PM IST

ज्योतिष डॉक्टर महेंद्र कुमार ठाकुर से जानिए (ETV Bharat)

रायपुर:किसी भी शख्स की सफलता और भाग्य उदय का दिशा से गहरा संबंध होता है. जातक का भाग्योदय किस दिशा में जाने से संभव है, यह जानना जातक के विकास के लिए काफी जरूरी है. उसके सुख, यश और प्रतिष्ठा के लिए ये जानना बेहद आवश्यक है. ज्योतिष सूत्रों के मुताबिक नवम भाव भाग्य का भाव है. इसका स्वामी जिस राशि में बैठता है. उस राशि की दिशा में जातक का भाग्य उदय होता है.

ज्योतिष में दिशा का महत्व: दिशा के साथ साथ किस ग्रह के कितने बिंदु हैं, यह भी देखा जाता है. यदि जातक के भाग्य भाव का स्वामी मेष, सिंह या धनु राशि में स्थित है, तो जातक का भाग्य उदय पूर्व दिशा में होगा. इसी तरह से अन्य राशिवाले लोगों का भाग्योदय दिशा से जुड़ा होता है. ग्रह और राशि के अनुसार भी लोग दिशा को मान्यता देते हैं.

जानिए क्या कहते हैं ज्योतिष:इस बारे में अधिक जानकारी के लिए ईटीवी भारत ने ज्योतिष डॉ. महेंद्र कुमार ठाकुर से बातचीत की है. डॉ. महेंद्र कुमार ठाकुर ने बताया, "वृषभ, कन्या और मकर राशि का संबंध दक्षिण दिशा से है. अतः यदि नवम भाव का स्वामी इन राशियों में स्थित है. उसका विकास दक्षिण दिशा की ओर होगा. यदि नवम भाव का स्वामी मिथुन, तुला या कुंभ राशि में स्थित है, तो उसका भाग्य उदय अपने जन्म स्थान से या निवास स्थान से पश्चिम दिशा में होगा."

"कर्क वृश्चिक और मीन राशि में यदि भाग्य भाव का स्वामी स्थित है, तो जातक का विकास उत्तर दिशा में होगा. इस प्रकार दिशा का निर्धारण राशियों के आधार पर किया जाता है. इसके साथ ही उसके भाग्य भाव के स्वामी पर किन-किन ग्रहों का प्रभाव है, यह भी देखा जाता है. भाग्य भाव के स्वामी से उसका क्या संबंध है. षटबल में ग्रहों की बल के आधार पर भी भाग्य की उन्नति का आकलन किया जाता है."-डॉ. महेंद्र कुमार ठाकुर, ज्योतिष

ग्रहों की चाल से मिलती है जानकारी:ज्योतिष की मानें तो जातक के अष्टक वर्ग में उस राशि में किस ग्रह के कितने बिंदु हैं, यह भी देखा जाना चाहिए. इस प्रकार समग्र तथ्यों के आधार पर निष्कर्ष लिया जाना चाहिए कि किस दिशा से जातक का विकास होगा. इसके अलावा किस ग्रह की दिशा में किस भाव की दिशा में किनके सहयोग से व्यक्ति के भाग्य का निर्माण प्रशस्त्र होगा. इसके अलावा जातक की महादशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतर दशा किन ग्रहों की चल रही है. जातक के भाग्य भाव के स्वामी से क्या संबंध है? यह भी देखा जाना चाहिए. इसके आधार पर भाग्योदय की दिशा ही नहीं भाग्य उदय की अवधि भी जानी जा सकती है.

"भाग्य भाव के स्वामी को देखने वाले ग्रहों का भी प्रभाव बहुत अधिक होता है.अपनी प्रकृति के अनुसार वह भाग्य में उन्नति या अवरोध करता है. भाग्य उदय के लिए वर्तमान में गोचर में ग्रहों की क्या स्थिति है. चंद्र कुंडली के आधार पर वह कौन से घर में किस राशि में स्थित है. इसका प्रभाव भी भाग्य उदय के कल पर पड़ता है. इन समस्त तथ्यों के आधार पर एक विद्वान ज्योतिषी से सलाह लेकर भाग्य भाव की दिशा निर्धारित की जानी चाहिए. क्योंकि इस पर जातक के संपूर्ण जीवन के सुख का आधार निश्चित होता है. अतः यह ज्योतिषी के लिए अत्यधिक उत्तरदायित्व एवं समर्पण के साथ किया जाना चाहिए." -डॉ महेंद्र कुमार ठाकुर, ज्योतिष

ऐसे में किसी भी जातक की दिशा ही उसके भाग्य की दशा को बदल सकती है. ऐसे में अगर किसी का भाग्योदय नहीं हो रहा है तो उसे ज्योतिष की राय जरूर लेनी चाहिए.

नोट: इस खबर में लिखी सारी बातें ज्योतिष की ओर से कही गई बातें हैं. ईटीवी भारत इसकी पुष्टि नहीं करता.

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