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विदिशा में स्थापित हैं मूछ वाले राम-लक्ष्मण, कई मान्यताएं हैं प्रचलित - विदिशा मूछ वाले राम मंदिर

Ancient Ram Temple in Vidisha: एमपी के विदिशा में भगवान राम का प्राचीन मंदिर स्थापित है. इस मंदिर में भगवान राम मां सीता के साथ नहीं बल्कि भाई लक्ष्मण के साथ विराजमान हैं. इन्हें मूछ वाले राम-लक्ष्मण कहते हैं.

Ancient Ram Temple in Vidisha
मूछ वाले राम-लक्ष्मण

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jan 21, 2024, 9:34 PM IST

विदिशा। विदिशा जो एक प्राचीन शहर भी है. यहां धार्मिक और ऐतिहासिक अनेक गाथाएं जुड़ीं हुईं हैं. वाल्मीकि रामायण में इन सभी का उल्लेख भी मिलता है. इतिहासकारों के अनुसार वाल्मीकि भी बिहार के चंपारण के बाद विदिशा ही आकर बसे थे, और यहीं से उन्हें ज्ञान भक्ति प्राप्त हुई थी. विदिशा की बेतवा नदी के तट पर बने चरण चिन्ह और वनवासी राम का मंदिर इस गाथा को अवश्य सिद्ध करता है.

विदिशा आए थे भगवान राम

रावण से युद्ध के बाद भगवान् राम वापस अयोध्या आये और राजपाट संभाला और अपने अनुज 3 भाइयों को भी राजपाट दिया. विदिशा भी भगवान राम के अनुज शत्रुघ्न के हिस्से में आया और शत्रुघ्न ने इसे अपने छोटे पुत्र युवकेतु को विदिशा का राजपाट दिया, तो वहीं दूसरी और इसके पहले अगर देखा जाए तो रावण द्वारा सीता हरण किया गया था और सीता जी की तलाश में भगवन राम और लक्ष्मण विदिशा भी आये थे. एक दिन विदिशा भी रुके थे. बेतवा के तट पर वही चरण चिन्ह आज भी पूजे जाते हैं और आज उस क्षेत्र को चरण तीर्थ नाम से जाना जाता है.

राम लक्ष्मण की प्रतिमाएं

बेतवा के चरण तीर्थ के पास ही एक मंदिर भी बना हुआ है. जिसे वनवासी राम का मंदिर कहा जाता है. जहां सिर्फ भगवान राम और लक्ष्मण की प्रतिमाएं ही हैं. जो बरसों पुरानी हैं और बेतवा नदी के तट पर खुदाई में मिली थी. जिसमें भगवान राम और लक्ष्मण की भेशभूषा वनवासी की है. प्रायः देखा जाता है भगवान राम और सीता सहित लक्ष्मण की प्रतिमाएं मंदिरों में स्थापित की जातीं है, लेकिन इस मंदिर में सीता जी की प्रतिमा नहीं है. इतिहासकारों की मानें तो सीता जी की खोज में जब भगवान राम आये थे, तभी से ही यह प्रतिमाएं रहीं होंगी.

अलग-अलग मान्यताएं प्रचलित

इतिहासकार गोविंद देवलिया ने बताया कि हम सब पूरे भारतवासी बहुत प्रसन्न हैं. 22 तारीख को 500 वर्षों के संघर्ष के बाद भगवान राम अपने प्रशिक्षित मंदिर में विराजमान होंगे. विदिशा में भी भगवान राम के दो स्थान मान्यता प्राप्त हैं. एक चरण तीर्थ जहां भगवान राम के चरण बने हुए हैं. दूसरा त्रिवेणी मंदिर जो राम, लक्ष्मण के मंदिर के रूप में स्थापित है. चरण तीर्थ मंदिर के बारे में यह मान्यता है कि भगवान राम जब वन से लौट ने के बाद जब उनका राज्य अभिषेक हुआ तो उन्होंने पंडितों पुरोहितों से पूछा की में पिता के अंत्येष्टि के समय नहीं था, तो मुझे कोई क्रिया कर्म बकाया हो तो बताइए. तब यह बताया गया कि आपको सारे तीर्थ जो हैं, उनमें जाकर तर्पण करना होगा, तो उस ही परिपेक्ष में वह पुष्कर जो तीर्थ है, वहां भी वह तर्पण करने के लिए गए हैं. अयोध्या से पुष्कर जाने का आज भी हम रास्ता देखे सहज रास्ता तो विदिशा होकर ही है.

उन दिनों ही तो विदिशा से ही पूरे दक्षिण भारत का एक द्वार कहलाता था. विदिशा तब राम यहां से निकले और तब उन्हें यहां ज्ञात हुआ कि चमन ऋषि दोनों नदियों के संगम के बीच में चमन ऋषि का आश्रम है. कहा जाता है जब भगवान राम उनसे मिलने आए तो उनके यहां पर चरण स्थापित किए गए होंगे. संक्रांति के दिन यहां मेला भरता है. समीप ही एक छोटी सी पहाड़ी है, पीछे की तरफ दोनों नदियों के संगम के बीच बैस नदी और बेतवा नदी वहां पर राम लक्ष्मण का मंदिर है और उसमें जानकी मैया इस मंदिर में नहीं है.

भगवान राम लक्ष्मण कि यह प्रतिमाएं कब मिली होगी

यह प्रतिमा तो लगभग 200 साल पुरानी प्रतीत होती है. मंदिर भी लगभग इतना ही प्राचीन है. जन मान्यताओं के आधार पर उस मंदिर का पुनः निर्माण हुआ होगा, क्योंकि यह समूचा क्षेत्र वैदिक नगर था. प्राचीन बस्ती थी जो पांचवी, छठवीं शताब्दी विद्यमान रही और पांचवी शताब्दी के आसपास कोई बहुत बड़ा या तो जल प्रभाव या कोई बाढ़ या कोई अग्निकांड ऐसा हुआ होगा की पूरा वैदिक नगर तबाह हो गया. जो दोनों नदियों के बीच में था. उसके बाद पांचवी, छठवीं शताब्दी से ऐतिहासिक ग्रंथ इसकी पुष्टि करते हैंय पांचवी, छठवीं शताब्दी के बाद उसे वैदिक नगर को सुरक्षित रूप से विदिशा के रूप में इस तरफ बेतवा के पूर्व की तरफ या दक्षिण की तरफ, पूर्व और दक्षिण की बीच की दिशा में यह नया नगर बसा इसे विदिशा नाम दिया गया

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