पटना: बिहार की सियासत में नए रंग देखने को मिल रहे हैं. बाहुबली नेताओं का जमाना तो लद चुका था, लेकिन 2024 के चुनाव में एक बार फिर बाहुबली नेता दोनों ही गठबंधन के लिए मजबूरी बन चुके हैं. पप्पू यादव और आनंद मोहन बिहार के दोनों ही मुख्य गठबंधन का हिस्सा बन चुके हैं. पप्पू यादव और आनंद मोहन जातीय क्षत्रप माने जाते हैं. 18 मार्च को बाहुबली नेता आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद अपने बेटे अंशुमन आनंद और समर्थकों के साथ जनता दल यूनाइटेड में सोमवार को शामिल हो गईं. तो वहीं 20 मार्च को पप्पू यादव ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय करा दिया.
यादव वोट बैंक पर है पकड़ः पप्पू यादव पूर्णिया इलाके से आते हैं, जबकि आनंद मोहन सहरसा क्षेत्र से आते हैं. पप्पू यादव की ताकत जहां यादव वोट बैंक मानी जाती है वहीं आनंद मोहन राजपूत वोट बैंक पर दावा करते हैं. वर्तमान परिस्थितियों में पप्पू ने जहां महागठबंधन का दामन थामा है, वहीं आनंद मोहन एनडीए की नाव पर सवार हैं. आनंद मोहन तो फिलहाल चुनाव नहीं लड़ सकते, लेकिन उन्होंने शिवहर से अपनी पत्नी को मैदान में उतारने का फैसला लिया है. गठबंधन के सहारे यह अब संसद पहुंचने की तैयारी में हैं. पप्पू यादव कांग्रेस पार्टी में अपनी पार्टी जाप का विलय कर चुके हैं. मिल रही जानकारी के मुताबिक पप्पू यादव पूर्णिया से कांग्रेस के उम्मीदवार होंगे.
अजीत सरकार हत्याकांड में आया था नामः पप्पू यादव का अपराधिक इतिहास रहा है. 17 साल जेल में बिताने के बाद पप्पू यादव बाहर आए हैं. 1998 में पूर्णिया के लोकप्रिय नेता अजीत सरकार, उनके साथी आसफुल्ला खान और ड्राइवर के ऊपर अंधाधुंध फायरिंग हुई थी. तीनों की मौत हो गई थी. माकपा नेता अजीत सरकार हत्याकांड में पप्पू यादव लंबे अरसे तक जेल में रहे. बाद में कोर्ट ने बरी कर दिया. अजीत सरकार हत्याकांड में पप्पू यादव 24 में 1999 को गिरफ्तार किए गए थे.
"एक समय था जब बिहार की सियासत में जातीय क्षत्रप की पूछ होती थी. उसी का नतीजा है कि पप्पू यादव और आनंद मोहन राजनीति में चमके थे. एक बार फिर दोनों नेता बिहार के सियासत में सक्रिय दिख रहे हैं. एनडीए और महागठबंधन दोनों को बाहुबली नेताओं से भरोसा है. दोनों नेताओं का लिटमस टेस्ट भी होना है."- डॉक्टर संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक
पांच बार सांसद रहे हैं पप्पू यादवः 1990 के दशक में पप्पू यादव ने सियासत में कदम रखा था. वह सिंघेश्वर स्थान विधानसभा सीट से पहली बार निर्दलीय विधायक बने थे. उसके बाद से पप्पू यादव ने कभी पलट कर पीछे नहीं देखा. उसे जमाने में पप्पू यादव पूर्णिया, कटिहार, मधेपुरा और सुपौल जैसे सीमांचल क्षेत्र के जिलों में लोकप्रिय हो गए थे. उनकी छवि बाहुबली नेता के रूप में बन चुकी थी. पप्पू यादव 1991, 1996 और 1999 में तीन बार पूर्णिया से राजद के टिकट पर सांसद रहे. दो बार 2004 और 2014 में मधेपुरा से सांसद बने. पप्पू यादव 5 बार सांसद रहे.
राजद से पप्पू यादव की बढ़ी दूरीः साल 2004 में पप्पू यादव के करियर ने महत्वपूर्ण मोड़ लिया लालू प्रसाद यादव ने दो संसदीय क्षेत्र छपरा और मधेपुरा से लोकसभा चुनाव जीता था. लालू ने छपरा सीट रखने का फैसला लिया. मधेपुरा सीट पप्पू यादव को दे दी. पप्पू यादव चुनाव जीत गए. बाद में लाल यादव का उत्तराधिकारी समझने लगे. यहीं से लालू परिवार के साथ पप्पू यादव का राजनीतिक विवाद शुरू हो गया. राजद से पप्पू यादव की दूरियां बढ़ती चली गई. 2015 में पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते पप्पू यादव को राष्ट्रीय जनता दल से निष्कासित कर दिया गया.
एनडीए और महागठबंधन में लड़ाईः बिहार में एनडीए और महागठबंधन के बीच सीधी लड़ाई है. तो वैसे स्थिति में पप्पू यादव को लालू यादव की सहमति के बाद कांग्रेस में शामिल किया गया. पप्पू यादव ने लालू प्रसाद यादव से मुलाकात की. पूर्णिया लोकसभा सीट पर पप्पू यादव कांग्रेस के उम्मीदवार भी माने जा रहे हैं. मधेपुरा, मेहसी, सिमरी बख्तियारपुर, आलमनगर, बिहारीगंज, बनबंकी, सुपौल, त्रिवेणीगंज और सिंघेश्वर विधानसभा क्षेत्र में पप्पू यादव की मजबूत पकड़ मानी जाती है. तमाम विधानसभा में यादव मतादाता की आबादी 20 से 30% के बीच मानी जाती है.