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सरिस्का को बाघ, पैंथर ही नहीं सांभर ने भी दिलाई खास पहचान, अलवर का नामकरण भी इसी से हुआ - Sambar deer in Sariska - SAMBAR DEER IN SARISKA

Sambar deer in Sariska, सरिस्का में आमतौर पर पर्यटक बाघ-पैंथर की साइटिंग के लिए जाते हैं. हालांकि, सरिस्का की पहचान केवल इन्हीं वन्यजीवों से नहीं बल्कि सांभर से भी है. पूर्व में हुई गणना के अनुसार सरिस्का में सबसे ज्यादा सांभर थे. कभी अलवर जिले का नाम ही सांभर रखा गया था. पढ़िए ये रिपोर्ट.

सरिस्का टाइगर रिजर्व में सांभर
सरिस्का टाइगर रिजर्व में सांभर (ETV Bharat GFX)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jun 3, 2024, 6:33 AM IST

वन्यजीव प्रेमी लोकेश खंडेलवाल (ETV Bharat Alwar)

अलवर. सरिस्का टाइगर रिजर्व से अलवर को देश दुनिया में ख्याति मिली है. बाघ और पैंथरों के साथ सांभरों की बड़ी संख्या ने भी सरिस्का की ख्याति बढ़ाई है. देश में पूर्व में हुई वन्यजीव गणना में पैंथरों की संख्या के चलते सरिस्का देश में दूसरे और सांभर के मामले में पहले पायदान पर रहा. हर चार साल में देश भर के टाइगर रिजर्व में होने वाली वन्यजीव गणना के आंकड़ों में यह उजागर हुआ है.

देश में सबसे ज्यादा सांभर सरिस्का में : वन्यजीव प्रेमी लोकेश खंडेलवाल ने बताया कि साल 2018 की वन्यजीव गणना के अनुसार सरिस्का में एक वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 22 से 23 सांभर पाए गए, जो कि देश के किसी भी राष्ट्रीय पार्क, टाइगर रिजर्व या अन्य वन क्षेत्र में सबसे ज्यादा हैं. इस बार भी देश में सबसे ज्यादा सांभर के सरिस्का में मिलने की उम्मीद जताई जा रही है. वन्यजीवों के लिए सरिस्का का जंगल उपयुक्त है, इसलिए यहां वन्यजीवों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी दर्ज हो रही है. वर्तमान में सरिस्का में सांभर की संख्या 22 हजार से ज्यादा होने की उम्मीद है.

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अलवर काे सांभर नाम दिया गया :लोकेश खंडेलवाल ने कहा कि करीब 7 साल पहले राज्य की 33 प्रजातियों को बचाने के लिए हर जिले को किसी न किसी वन्यजीव (पशु या पक्षी) का नाम दिया गया था. तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की अध्यक्षता में राज्य वन्यजीव बोर्ड की बैठक में अलवर जिले काे सांभर नाम दिए जाने के प्रस्ताव काे मंजूरी दी गई. वन्यजीव को बचाने, उन्हें संरक्षित करने और लाेगाें को भावनात्मक रूप से जोड़ने के लिए यह कदम उठाया गया था.

इन जिलों को इस वन्यजीव से मिली पहचान :राज्य वन्यजीव बोर्ड के प्रस्ताव अनुसार अजमेर को खड़मौर, अलवर को सांभर, बांसवाड़ा को जलपीपी, बांरा को मगर, बाड़मेर को मरू लोमड़ी, भरतपुर को सारस, भीलवाड़ा को मोर, बीकानेर को भट्टतीतर, बूंदी को सुर्खाब, चित्तौरगढ़ को चौसिंगा, चूरू को काला हिरण से पहचान मिली है. वहीं, दौसा को खरगोश, धौलपुर को पंछीरा, डूंगरपुर को जंगली धोक, जयपुर को चीतल, जैसलमेर को गोडावन, जालोर को भालू, झालावाड़ को गगरोरनी तोता, जोधपुर को खूरजा, करौली को घड़ियाल, कोटा को उदबिलाव, नागौर को राजहंस से पहचान मिली. इसी प्रकार पाली को तेंदुआ, राजसमंद को भेड़िया, प्रतापगढ़ को उड़नगिलहरी, सवाई माधोरपुर को बाघ, श्रीगंगानगर को चिंकारा, सीकर को शाहीन, सिरोही को जंगली मुर्गी, टोंक को हंस और उदयपुर को बिज्जू के नाम की पहचान दी गई.

देखें पिछले सालों में कितने सांभर सरिस्का में थे (ETV Bharat GFX)

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टाइगर रिजर्व के लिए खास है सांभर :वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार देश में सर्वाधिक सांभराें की संख्या सरिस्का में है. एक वर्ग किलाेमीटर में इनकी संख्या 22 से 23 है. यहां सर्वाधिक घनत्व है. सांभर टाइगर का प्रिय भाेजन है. मिड साइज का हाेने के कारण टाइगर के लिए एक सांभर का शिकार तीन-चार दिन का पर्याप्त भाेजन है. लोकेश खंडेलवाल ने बताया कि सांभर का पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण याेगदान रहा है. पेड़, पाैधाें और वनस्पति काे खाने के बाद जंगल में मीगणी के जरिए खाद के साथ बीज फैलता है. इससे नई वनस्पति उगती है.

सरिस्का में इसलिए ज्यादा है सांभरों की संख्या :जनसंख्या घनत्व के हिसाब से विश्व में सरिस्का में सर्वाधिक सांभरों की संख्या है. सांभर पहाडी क्षेत्र काे पसंद करता है और पानी के समीप रहता है. सरिस्का में घनी झाडियां और घास होने से सांभर को पर्याप्त भाेजन और छिपने की जगह मिल पाती है. इस कारण सरिस्का में सांभर की संख्या निरंतर बढ़ रही है.

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