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लखनऊ यूनिवर्सिटी प्रोफेसर विमल जायसवाल के खिलाफ जांच के आदेश पर हाइकोर्ट ने लगायी रोक - PROFESSOR VIMAL JAISWAL

कोर्ट ने शासन की ओर से जांच करने के आदेश को अमान्य घोषित किया.

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प्रोफेसर विमल जायसवाल को बड़ी राहत (Photo Credit- ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 28, 2025, 9:46 PM IST

लखनऊ: लखनऊ विश्वविद्यालय के एप्लाइड इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर विमल जायसवाल को हाईकोर्ट से राहत मिल गई है. प्रो जायसवाल के खिलाफ शासन की ओर से गठित जांच कमिटी के आदेश को हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया है. प्रो जायसवाल की ओर से हाईकोर्ट में रिट दायर की गई थी. इस पर कोर्ट ने कहा कि चूंकि विश्वविद्यालय ऑटोनॉमस बॉडी है, ऐसे में शासन को सीधे कार्रवाई का अधिकार नहीं है. ऐसे में विश्वविद्यालय के वीसी प्रो आलोक राय की अध्यक्षता में अब जो कमेंटी जांच कर रही थी, उस पर भी रोक लग गई है.

शासन के उच्च शिक्षा विभाग के विशेष सचिव गिरिजेश कुमार त्यागी की ओर से आठ जनवरी को आदेश जारी किया गया था. इसमें प्रो जायसवाल पर गलत तरह से ओबीसी नॉन क्रीमी लेयर संवर्ग में नियुक्ति और शिक्षक नियुक्तियों में की गई अनियमितता और शोधार्थियों के शोषण जैसे गंभीर आरोप में हुई शिकायत पर चार सदस्यीय जांच समिति गठित की थी. इसमें एलयू वीसी प्रो अलोक कुमार राय को कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया था, जिसकी एक बैठक भी हो चुकी है.

इसके खिलाफ प्रोफेसर विमल जायसवाल की ओर से हाईकोर्ट में अपील की गई थी. इस पर सोमवार को सुनवाई के दौरान दोनो पक्षों का मामला सुना गया. चूंकि विश्वविद्यालय ऑटोनॉमस बॉडी है, ऐसे में शिक्षकों पर कार्रवाई का अधिकार विश्वविद्यालय की कार्यपरिषद को है. जबकि एलयू वीसी की ओर से इस मामले में कोई जांच नहीं की गई है. न ही कार्यपरिषद में मामला गया है. इसी आधार पर कोर्ट की ओर से शासन की ओर से गठित जांच समिति के आदेश को निरस्त कर दिया गया. अब विश्वविद्यालय के स्तर पर इस मामले में जांच की जा सकती है.

यह था पूरा मामला: प्रो विमल जायसवाल की नियुक्ति साल 2005 में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर ओबीसी नॉन क्रीमी लेयर संवर्ग में हुई थी. इस पहले एक एडवोकेट की ओर से लोकायुक्त में शिकायत की गई. साथ ही विधायक अभय सिंह की ओर से विधानसभा में भी मामले की शिकायत की गई. इन शिकायतों में कहा गया है कि प्रो विमल के पिता सियाराम जायसवाल एलयू के कॉमर्स में ही हेड रहे थे और उच्च शिक्षा आयोग के अध्यक्ष भी रहे.

ऐसे में वह नॉन क्रीमी लेयर के तहत नहीं आते हैं और गलत तरह से उनकी इस संवर्ग में नियुक्ति की गई. यह भी आरोप लगाया गया है कि उनका प्रफेसर के पद पर प्रमोशन भी गलत तरह से किया गया है. निर्धारित मानकों को पूरा किये बिना प्रमोट किया गया. इसके अलावा शिकायत में विभिन्न प्रशासनिक पदों पर रहते हुए अनियमित्ताओं के भी कई आरोप लगाए गए हैं.


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