रतलाम :आदिवासी जिन सब्जियों का सेवन करते हैं उनमें मिनरल्स और आयुर्वेदिक गुणों की अधिकता रहती हैं. इन सब्जियों के सेवन से ग्रामीण वर्षभर निरोगी और ताकत से भरपूर रहते हैं. यह सब्जियां खेत में उगाई नहीं जाती हैं बल्कि खरपतवार की तरह खेत और खाली पड़ी जगह में अपने आप ऊग जाती हैं. फुंहाड़िया, करंजड़ा और किंकोड़ा ऐसी ही तीन जंगली सब्जियां हैं. जिनका प्रयोग आदिवासी और ग्रामीण अपने भोजन में प्रचुर मात्रा में करते हैं.
आदिवासियों की ताकत का राज हैं ये सब्जियां
फुहाड़ियां एक प्रकार की खरपतवार है जो खाली पड़ी जगह और खेतों में उग जाती है. इसके पत्तों में गजब के औषधीय गुण मौजूद होते हैं. इसके पत्ते अंडाकार होते हैं और इसमें दुर्लभ किस्म के मिनरल्स मौजूद होते ही हैं. इतना ही नहीं यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ ही मोटापा और जोड़ों का दर्द काम करने का काम भी करती है. आदिवासी किसान प्रेम सिंह गामड़ कहते हैं, '' इसके पत्तों को उबाल कर पालक और मैथी की तरह इसकी सब्जी बनाई जाती है, जिससे गजब की ताकत मिलती है.''
आयरन से भरपूर है करंजड़ा
करंजड़ा भी एक प्रकार की खरपतवार है जो सोयाबीन की फसल में बहुत मात्रा में उगता है. इसके चौड़े और गोल पत्तों में आयरन बड़ी मात्रा में होता है. सेमलिया गांव के बुजुर्ग किसान बद्रीलाल जरांधला कहते हैं, '' इस पौधे में कृमि नाशक तत्व भी होते हैं जिससे पेट के कीड़ों की समस्या में राहत मिलती है. पेट संबंधी अन्य रोगों में भी करंजड़ा कारगर औषधि है. इसके पत्तों को तोड़कर पालक और मैथी की तरह ही सब्जी बनाई जाती है. जिसका सेवन ग्रामीण अंचलों में बड़ी मात्रा में लोग करते हैं.''