जोधपुर:खींवसर विधानसभा सीट का उपचुनाव दो जाट नेताओं के बीच जबानी जंग का केंद्र बनता जा रहा है. एक तरफ मदेरणा परिवार की पूर्व विधायक दिव्या मदेरणा हैं तो दूसरी तरफ अपने दम पर राजनीति में जगह बनाने वाले हनुमान बेनीवाल है. दिव्या ने कुछ दिन पहले हनुमान के खिलाफ बयान देकर मोर्चा खोला था. बेनीवाल लगातार पलटवार किए जा रहे हैं. बुधवार रात को एक बार फिर उन्होंने दिव्या मदेरणा और पूरे परिवार पर निशाना साधते हुए कहा कि मैं अपने क्षेत्र में कभी घूमूं, किसी को क्या तकलीफ होनी चाहिए. दिव्या के घर तो आया नहीं. बेनीवाल ने दिव्या मदेरणा के दादा स्वर्गीय परसराम मदेरणा और पिता महिपाल मदेरणा को भी लपेट लिया और दिव्या को कुएं डूबकर मर जाने की बात कही.
बेनीवाल का यह वीडियो सामने आने के बाद खुद दिव्या ने इसे सोशल मीडिया पर शेयर कर किया और सहानूभूति कार्ड खेलते हुए लिखा, मैं भी समाज की बेटी हूं, इसलिए किसान वर्ग से पूछना चाहती हूं कि मैंने ऐसा क्या गुनाह किया कि मुझे कुएं में गिरकर मर जाना चाहिए?' इसके बाद से सोशल मीडिया पर दोनों के समर्थक भिड़ रहे हैं.
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ये कहा था बनीवाल ने:रालोपा प्रमुख बेनीवाल ने गत दिनों कहा था कि मैं अपने क्षेत्र में सुबह चार बजे घूमूं या तीन बजे, दिव्या को क्या तकलीफ है. वह क्यों नहीं घूमती खींवसर में कांग्रेस के उम्मीदवार के लिए. उन्होंने आरोप लगाया कि दिव्या भाजपा को वोट दिला रही है. हमेशा अपने दादाजी और पिताजी की ही बात करती रहती है. बेनीवाल ने आगे कहा,' लड़के आज भी याद करके सीडी चलाते हैं. इतना होने के बाद तो कुएं में डूब कर मर जाओ. दादाजी ने क्या किया कुछ करते तो समाज के बच्चों का भला होता.'
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दिव्या ने पूछा समाज से :'क्या मुझे कुएं में डूब कर मर जाना चाहिए? सार्वजनिक सभा में मेरे ही समाज के चुने हुए एक सांसद मेरे मरने की कामना कर रहे है. उन्हें अफ़सोस हो रहा है कि मैं ज़िंदा ही कैसे हूं. मैं भी समाज की बेटी हूं, बहन बेटी सबकी सांझी होती है. इसलिए संपूर्ण किसान वर्ग से पूछना चाहती हूं कि मैंने ऐसा क्या गुनाह किया कि मुझे कुएं में गिरकर मर जाना चाहिए? दिव्या ने लिखा कि मैंने पूरी ईमानदारी व श्रद्धा से ओसियां व राजस्थान के किसान वर्ग की हमेशा आवाज बुलंद की है. क्या यही मेरा गुनाह है? विकट पारिवारिक परिस्थिति में भी मैंने हार नहीं मानी, मैं घर नहीं बैठी, मैंने मेहनत की और जनता से संवाद व जुड़ाव रखा और कारवां बनता चला गया. मैंने संघर्ष किया और यह संदेश देने की कोशिश कि किसान वर्ग की बेटियां भी बखूबी राजनीतिक लड़ाइयां लड़ सकती है.