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Rajasthan: 350 वर्ष पुरानी परंपरा, आदिवासी समुदाय लूटेगा प्रभु का अन्नकूट भोग

नाथद्वारा श्रीनाथजी हवेली में वर्षों पुरानी पुष्टिमार्गीय परंपरा. विशेष भोग लगाया जाएगा. दीपावली पर आदिवासी समुदाय द्वारा अन्नकूट लूट की रीत निभाई जाएगी.

Annakoot Bhog in Shrinath Ji Temple
आदिवासी लूट ले जाते हैं प्रभु का भोग (ETV Bharat Rajsamand)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : 4 hours ago

राजसमंद: देश भर में दीपावली के मुहूर्त को लेकर चल रहे संशय के बीच श्रीजी की नगरी में 31 अक्टूबर को दीपावली पर्व मनाया गया. वहीं, 1 नवंबर को गोवर्धन पूजा व अन्नकूट का उत्सव मनाया जा रहा है. वर्षों से ये परंपरा रही है कि श्रीनाथजी के दर्शनों के समय श्रीजी के सामने ही भील आदिवासी समाज के लोग अन्नकूट के चावल और सारी भोग सामग्री लूट कर ले जाते हैं. करीब 352 वर्ष पूर्व श्रीनाथजी के नाथद्वारा आने के साथ से ही इस परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है. हर साल नाथद्वारा के आसपास के अंचलों से आदिवासी समुदाय के लोग पहुंचते हैं और श्रीजी का अन्नकूट लूटते हैं. इस परंपरा का आनंद लेने श्रद्धालु बाहर कतार लगाए खड़े रहते हैं. यह क्रम रात्रि 1 बजे तक चलता है.

क्या है अन्नकूट महोत्सव :अलग-अलग तरह की सब्जियों और अन्न के समूह को अन्नकूट कहा जाता है. अपने सामर्थ्य के मुताबिक इस दिन लोग अलग-अलग प्रकार की सब्जियां व चावल मंदिर में भेंट करते हैं और करीब सवा सौ मन पके चावल का भोग बनाया जाता है और इसे भगवान श्रीकृष्ण को चढ़ाते हैं. इसके अलावा तरह-तरह के अन्न के पकवान बनाए और छप्पनभोग श्रीकृष्ण को चढ़ाए जाते हैं.

यह आदिवासी समाज की मान्यता : आदिवासी समुदाय की मान्यता है कि प्रभु श्रीनाथजी के यह चावल साल भर घर में रखने से उनके घर धन-धान्य बना रहता है. वहीं, किसी भी बीमारी में इन चावलों का उपयोग आदिवासी समुदाय के ये लोग औषधि के रूप में करते हैं. हर वर्ष इसी भांति अन्नकूट महोत्सव मनाया जाता है. करीब 350 सालों से चली आ रही है. यह परंपरा इस वर्ष भी हर्षोल्लास से मनाई जाएगी.

पढ़ें :एक ऐसा मंदिर जहां आदिवासी लूट ले जाते हैं प्रभु का भोग, अनूठी है यह 350 साल पुरानी परंपरा

भोग औषधि के रूप में चावल का उपयोग : आदिवासी लोगों ने बताया कि इस चावल का उपयोग अपने सगे संबंधियों में बांटने और औषधि के रूप में करते हैं. इस चावल को वे अपने घर में रखते हैं और उनकी मान्यता है कि इससे घर में धन-धान्य बना रहता है और किसी प्रकार के कष्ट नहीं आते हैं. शुक्रवार को गोशाला से पधारी गायों को ग्वाल बालों द्वारा रिझाया और खेलाया जाएगा, फिर गौमाता गोवर्धन पूजा के लिए मंदिर के अंदर लाइ जाएंगी. वहां तिलकायत इंद्रदमन जी महाराज व युवाचार्य विशाल बावा ने उनका व गोवर्धन का पूजन किया और उनके कान में अगले साल जल्दी आने की विनती की.

गोवर्धन पूजा पर श्रीनाथजी का विशेष महत्व : दिवाली में गोवर्धन पूजा का प्रभु श्रीनाथजी के मंदिर में विशेष महत्व है. मान्यता है कि कृष्ण ने ग्वाल बालों से इंद्र की बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करने को कहा था और इंद्र का अभिमान तोड़ने के लिए गोवर्धन को उठाकर सभी की इंद्र से रक्षा भी की थी.

नाथद्वारा में दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा का उत्सव मनाया जाता है. इस दौरान गौ क्रीड़ा के दौरान ग्वाल-बाल गायों को रिझाते हैं. गौमाता भी ग्वाल-बाल को अपने पुत्र समान समझकर उनके साथ खेलती हैं. सैकड़ों लोगों की भीड़ के बीच होने वाले इस खेल में किसी दर्शक को आज तक चोट नहीं लगी है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि गौ माता सभी लोगों को पुत्र समान समझकर वात्सल्य स्वरूप उनके साथ खेलती हैं, लेकिन उन्हें चोट नहीं पहुंचाती है. इसके बाद वर्षों पुरानी परंपरा के अनुसार श्रीनाथजी को चावल और अन्य सामग्रियों का अन्नकूट भोग लगाया जाएगा.

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