आगरा:कभी उनको उनके प्राकृतिक आवास से दूर कर दिया गया था. उनके थूथन नुकीली रॉड से छेदे गए. पीटने के साथ उनको भूखा रखा गया. ताकि वे करतब सीख सकें, सड़कों पर तमाशा दिखा सकें. क्रूरता झेलते इन भालुओं के दुर्दिन एक दिन दूर हुए और उनको नया घर मिला. हम बात कर रहे हैं स्लॉथ भालुओं के दुनिया के सबसे बड़े पुनर्वास केंद्र की, जो कि आगरा के कीठम स्थित सूर सरोवर परिसर में है. यहां भालुओं आज 100 से अधिक भालू हैं. इनकी बेहतर केयरिंग और मेडिकल केयर से औसत उम्र भी बढ़ रही है. हर साल 23 मार्च को विश्व भालू दिवस मनाया जाता है. इस अवसर पर जानिए कि कैसे यह पुर्नवास केंद्र यातानाएं झेल रहे भालुओं के लिए स्वर्ग बन गया.
सन 1995 में वाइल्डलाइफ एसओएस की स्थापना की गई थी. संस्था का काम था, मनोरंजन के लिए सड़कों पर भालूओं को नचाने की क्रूर और बर्बर प्रथा को खत्म करना. शिकारियों के पकड़ने से ये भालू कलंदर तक पहुंचे. इसके बाद कलंदर उनके साथ क्रूरता करते. उनके नाजुक थूथन को लाल-गर्म लोहे की नुकीली रॉड से छेदा जाता और उन्हें पैसे कमाने के लिए प्रदर्शन करने को मजबूर किया जाता. भूखा भी रखा जाता. जबकि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत ये सब अवैध था.
2002 में आया यहां पहला भालू
स्लॉथ भालू पुर्नवास केंद्र में पहली बार सन 2002 में मादा भालू लाई गई थी. जिसका नाम रानी रखा गया. इसे भोपाल के जंगल से लाया गया था. उसका पैर शिकारी द्वारा लगाए गए फंदे में फंस गया था. इससे पैर खराब हो गया और बाद में सर्जरी करके उसे काटना पड़ा. इसके बाद कई भालुओं के शावकों को भी केंद्र पर लाया गया. जिनकी मां को शिकारियों ने जंगल में मार दिया था और शावकों को कलंदरों को बेच दिया था. इनमें एल्विश, मोगली, रॉन, डिजिट आदि शावक शामिल थे. आखिरी डांसिंग बियर 2009 में कलंदरों से मुक्त कराया गया था. आगरा के अलावा बेंगलुरु, भोपाल और पश्चिम बंगाल में भी केंद्र हैं.
सबसे ज्यादा उम्रदराज चमेली
संरक्षण केंद्र पर सबसे उम्रदराज भालू चमेली है, जिसकी उम्र लगभग 35 साल है. आमतौर पर जंगल में रहने वाले भालू की 15 से 20 साल में ही मृत्यु हो जाती है, लेकिन उचित देखभाल के कारण इस समय केंद्र में कई भालू 25 साल से अधिक उम्र के हैं.
628 स्लॉथ भालूओं को शोषण से मुक्त कराया