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ये है दुनिया का सबसे बड़ा भालुओं का घर, मदारियों के चंगुल से छूटे 100 स्लॉथ बियर्स का स्वर्ग - Wildlife SOS Agra

कभी उनको उनके प्राकृतिक आवास से दूर कर दिया गया था. उनके थूथन नुकीली रॉड से छेदे गए. पीटने के साथ उनको भूखा रखा गया. ताकि वे करतब सीख सकें, सड़कों पर तमाशा दिखा सकें.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Mar 23, 2024, 9:28 AM IST

आगरा:कभी उनको उनके प्राकृतिक आवास से दूर कर दिया गया था. उनके थूथन नुकीली रॉड से छेदे गए. पीटने के साथ उनको भूखा रखा गया. ताकि वे करतब सीख सकें, सड़कों पर तमाशा दिखा सकें. क्रूरता झेलते इन भालुओं के दुर्दिन एक दिन दूर हुए और उनको नया घर मिला. हम बात कर रहे हैं स्लॉथ भालुओं के दुनिया के सबसे बड़े पुनर्वास केंद्र की, जो कि आगरा के कीठम स्थित सूर सरोवर परिसर में है. यहां भालुओं आज 100 से अधिक भालू हैं. इनकी बेहतर केयरिंग और मेडिकल केयर से औसत उम्र भी बढ़ रही है. हर साल 23 मार्च को विश्व भालू दिवस मनाया जाता है. इस अवसर पर जानिए कि कैसे यह पुर्नवास केंद्र यातानाएं झेल रहे भालुओं के लिए स्वर्ग बन गया.

सन 1995 में वाइल्डलाइफ एसओएस की स्थापना की गई थी. संस्था का काम था, मनोरंजन के लिए सड़कों पर भालूओं को नचाने की क्रूर और बर्बर प्रथा को खत्म करना. शिकारियों के पकड़ने से ये भालू कलंदर तक पहुंचे. इसके बाद कलंदर उनके साथ क्रूरता करते. उनके नाजुक थूथन को लाल-गर्म लोहे की नुकीली रॉड से छेदा जाता और उन्हें पैसे कमाने के लिए प्रदर्शन करने को मजबूर किया जाता. भूखा भी रखा जाता. जबकि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत ये सब अवैध था.

2002 में आया यहां पहला भालू

स्लॉथ भालू पुर्नवास केंद्र में पहली बार सन 2002 में मादा भालू लाई गई थी. जिसका नाम रानी रखा गया. इसे भोपाल के जंगल से लाया गया था. उसका पैर शिकारी द्वारा लगाए गए फंदे में फंस गया था. इससे पैर खराब हो गया और बाद में सर्जरी करके उसे काटना पड़ा. इसके बाद कई भालुओं के शावकों को भी केंद्र पर लाया गया. जिनकी मां को शिकारियों ने जंगल में मार दिया था और शावकों को कलंदरों को बेच दिया था. इनमें एल्विश, मोगली, रॉन, डिजिट आदि शावक शामिल थे. आखिरी डांसिंग बियर 2009 में कलंदरों से मुक्त कराया गया था. आगरा के अलावा बेंगलुरु, भोपाल और पश्चिम बंगाल में भी केंद्र हैं.

सबसे ज्यादा उम्रदराज चमेली

संरक्षण केंद्र पर सबसे उम्रदराज भालू चमेली है, जिसकी उम्र लगभग 35 साल है. आमतौर पर जंगल में रहने वाले भालू की 15 से 20 साल में ही मृत्यु हो जाती है, लेकिन उचित देखभाल के कारण इस समय केंद्र में कई भालू 25 साल से अधिक उम्र के हैं.

628 स्लॉथ भालूओं को शोषण से मुक्त कराया

बता दें कि वाइल्डलाइफ एसओएस ने 628 स्लॉथ भालूओं को कलंदर या शिकारियों से मुक्त कराया है. जिसमे आखिरी भालू को 2009 में सड़कों पर तमाशा दिखाने से बचाया गया था. इसके लिए संस्था पूरे भारत में चार स्लॉथ भालू बचाव और पुनर्वास केंद्र संचालन शुरू किए थे. जिसमें आगरा भालू संरक्षण केंद्र अपनी तरह का सबसे बड़ा है. आगरा भालू संरक्षण केंद्र अभी लगभग 100 भालू हैं. यहां पर भालुओं को समर्पित पशु चिकित्सकों और पशु केयर कर्मचारी विशेष देखभाल करते हैं.

दिन की दलिया से शुरुआत

वाइल्डलाइफ एसओएस के सह-संस्थापक कार्तिक सत्यनारायण बताते हैं कि आगरा भालू संरक्षण केंद्र में भालुओं के दिन की शुरुआत दलिया के पौष्टिक भोजन के साथ होती है. इसके बाद फल और शाम को फिर से दलिया परोसा जाता है. जिससे उनके शरीर और दिमाग को तीव्र रखता है. भालूओं को उनके जंगली बाड़ों में विभिन्न एनरिचमेंट में रखा जाता है. जिससे उनके जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए प्राकृतिक व्यवहार को बढ़ावा मिलता है. वाइल्डलाइफ एसओएस की सह-संस्थापक गीता शेषमणि कहती हैं कि हम भालुओं के साथ काम करके उनकी प्रजातियों के संरक्षण पर काम कर रहे हैं. हम एक बेहतर दुनिया के लिए प्रयास करना जारी रखेंगे. जहां सह-अस्तित्व संभव हो.

मिल रहा भालुओं को नया जीवन

वाइल्डलाइफ एसओएस के डॉयरेक्टर कंज़रवेशन प्रोजेक्ट्स बैजूराज एमवी बताते हैं कि हम आहार संबंधी देखभाल के साथ ही भालुओं को उनके समग्र स्वास्थ्य और शक्ति के लिए मल्टीविटामिन और लिवर टॉनिक भी देते हैं. जिससे उन्हें पूरा पोषण मिल सकेगा. इसकी वजह से ही वाइल्डलाइफ एसओएस एक ओर जहां भालुओं को शोषण देने के साथ ही पीड़ा से मुक्त करने का काम हो रहा है. जो उन्हें एक जीवन दे रहा है.

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