हैदराबादःनवरात्रि का हर दिन माता दुर्गा के एक खास अवतार/ स्वरूप को समर्पित होता है. माता के भक्त हर दिन के हिसाब से विशिष्ट रंग का पोशाक पहनते हैं. नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना की जाती है. घट स्थापन में शुभ-मुहूर्त का ध्यान रखना काफी जरूरी है. नवरात्रि उत्सव के दौरान घटस्थापना सबसे प्रमुख व अति महत्वपूर्ण अंग है. नवरात्रि के प्रथम दिवस पर वैदिक मंत्रोचारण के बीच घटस्थापना कर देवी माता का आवाहन किया जाता है. इसके बाद नवरात्रि का पूजन व व्रत रखा जाता है. मान्यता है कि शैलपुत्री की पूजा से चंद्र ग्रह से जुड़े नकरात्मक प्रभावों से मां रक्षा करती हैं. चमेली का फूल देवी शैलपुत्री को काफी प्रिय है.
देवी माता के शैलपुत्री रूप में उन्हें दो भुजाओं के साथ देखा जा सकता है. उनके एक हाथ (दाहिने) में त्रिशूल होता है. वहीं दूसरे (बायें) हाथ में उन्हें कमल पुष्प के साथ देख सकते हैं. माना जाता है कि सौभाग्य प्रदान करने वाले चंद्रमा, माता शैलपुत्री के द्वारा शासित हैं.
द्रिक पंचांग के अनुसार देवी सती के रूप में आत्मदाह करने के बाद, माता पार्वती ने हिमालय (पर्वतराज) की पुत्री के रूप में जन्म लिया. संस्कृत में शैल का शाब्दिक अर्थ पर्वत होता है. माता के प्रथम स्वरूप यानि पर्वत की पुत्री को शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है. बैल, देवी शैलपुत्री का वाहन है. इस कारण उन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है. माता के शैलपुत्री रूप की विशेषता के कारण नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की प्रथा है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पूर्व जन्म में देवी सती की तरह माता शैलपुत्री का विवाह भी प्रभु शिव के साथ हुआ था.
मां शैलपुत्री की पूजा के समय, ऊं ऐं ह्नीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:, मंत्र का उच्चारण किया जाता है.
नवरात्रि की नौ रातों के दौरान माँ दुर्गा के अलग-अलग रूप:
शक्ति: शुरुआत के तीन दिनों में उन्हें 'शक्ति' के रूप में पूजा जाता है, जो शक्ति की देवी हैं.