ASHADHI EKADASHI DEDICATED BHAGWAN VISHNU:जुलाई का महीना चल रहा है और जुलाई के इस महीने में आषाढ़ी एकादशी भी पड़ने वाली है. भगवान विष्णु को समर्पित इस एकादशी पर भगवान विष्णु शयन के लिए चले जाते हैं. इस दौरान संसार का संचालन भगवान शिव करते हैं. देवशयनी एकादशी का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है. आखिर ये कब है, और इसका क्या महत्व है. पूजा करने का शुभ मुहूर्त कब है, पूजा करने में किन बातों का ख्याल रखना है. आखिर आषाढ़ी एकादशी इतनी खास क्यों होती है. जानते हैं ज्योतिष आचार्य पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री से.
कब है आषाढ़ी एकादशी?
ज्योतिष आचार्य पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री बताते हैं कि ''अषाढ़ शुक्ल पक्ष की जो एकादशी होती है, इसे आषाढी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. देवशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. यह एकादशी 17 जुलाई 2024 को पड़ रही है. इस दिन से सभी तरह के शुभ काम शादी ब्याह सब बंद हो जाएंगे और इसी दिन से चतुर्मास भी लग जाता है.''
इस मुहूर्त में ऐसे करें पूजन
ज्योतिष आचार्य पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री कहते हैं कि, ''आषाढी एकादशी या देवशयनी एकादशी का पूजन करने के लिए ब्रह्म मुहूर्त में उठे स्नान करें और प्रातः कालीन भगवान विष्णु और अन्य देवी देवताओं की विधि विधान से मन लगाकर पूजा पाठ करें, भोग लगाएं. इसके बाद विष्णु जी को वहीं पर लिटा दें और उनका सूक्ष्म पूजन करते रहें, और अपने-अपने घर में शिवजी का मंदिर हो मूर्ति हो या घर में शिवलिंग हो तो पूर्ण रूप से उसकी प्रतिष्ठा करें. विधि विधान से पूजा करें. क्योंकि अब 4 महीने शिवजी की कृपा ही बरसेगी, भगवान विष्णु शयन के लिए जाएंगे और संपूर्ण अधिकार भगवान विष्णु इस दौरान शिव जी को देकर जाते हैं. इसलिए विशेष तौर पर चार महीने भगवान भोलेनाथ की अलग-अलग तरह से पूजा पाठ की जाती है.''
आषाढ़ी एकादशी विशेष योग और शुभ मुहूर्त
ज्योतिष आचार्य पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री कहते हैं, आषाढी एकादशी में दो तरह के योग पड़ रहे हैं, एक शुभ योग है और एक स्वामी योग बन रहा है. जो बहुत ही विशेष है. बात शुभ मुहूर्त की करें, तो सुबह 6:00 बजे से लेकर 8:00 के बीच में पूजन का मुहूर्त है. सुबह जैसे ही प्रदोष काल में सूर्योदय के समय पूजन शुरू कर दें, और दोपहर में 11:00 बजे से लेकर के एक बजे के बीच पूजन करें. शाम के समय दिन डूबने से 10 मिनट पहले पूजन शुरू कर दें, और जब तक तारामंडल उदय ना हो जाए तब तक के बीच में पूजन करें, जिसको प्रदोष काल कहा जाता है.