नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 2024 के आम चुनाव के लिए डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार के रूप में उपराष्ट्रपति कमला हैरिस को पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ कमान सौंप दी है, जिससे दुनिया का ध्यान अमेरिका की ओर गया कि चुनाव किसके जीतने की संभावना है?
निश्चित रूप से इसका जवाब 5 नवंबर के बाद परिणाम घोषित होने के बाद ही मिलेगा. तब तक, दुनिया कई पेशेवर मतदान संगठनों द्वारा किए गए सर्वे को बेसब्री से देखेगी. इन सर्वों में अनुमान लगाने का प्रयास किया जाएगा कि अगर आज चुनाव होते हैं तो कौन सा उम्मीदवार आगे रहता है.
स्टैटिस्टिक्स हमें बताते हैं कि किसी जनसंख्या से एकदम रैंडमली लिया गया सैंपल पूरी जनसंख्या के व्यवहार को सटीक रूप से दर्शा सकता है. यह सिद्धांत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग से लेकर स्वास्थ्य सेवा और विनिर्माण तक हर मानवीय प्रयास में काम आता है.
स्टैटिस्टिक्स साइंस हमें बताती है कि अगर एक छोटा सा सैपंल, मान लीजिए, बोल्टों का 1फीसदी - लगभग 100 बोल्ट - पूरी तरह से रैंडम तरीके से लिया जाए और इनमें से हर एक निरीक्षण में पास हो जाता है, तो सभी 10,000 बोल्ट स्वीकार्य गुणवत्ता के होने की संभावना है. अगर 100 में से दो बोल्ट भी दोषपूर्ण पाए जाते हैं, तो आगे की जांच आवश्यक है. फिर फैक्ट्री को यह तय करना होता है कि पूरे 10,000 बोल्ट को फेंक दिया जाए या उनमें से अच्छे टुकड़े चुने जाएं, दोनों ही तरह से यह बहुत महंगा प्रोसेस होता है.
पॉलिटिकल पॉलिंग
यही सिद्धांत मतदान पर भी लागू होता है, लेकिन सर्वे बेहद अप्रत्याशित हो सकते हैं. यह हमने भारत में हाल ही में संपन्न आम चुनावों में भी देखा. कुछ संगठनों ने भविष्यवाणी की थी कि भाजपा संसद में 320 से ज़्यादा सीटें जीतेगी. जब चुनाव आयोग ने नतीजे घोषित किए, तो भाजपा ने सिर्फ 240 सीटें जीती थीं, जो बहुमत से बहुत कम थीं.
क्या गलत हुआ?
शायद जनता के मूड का आकलन करने के लिए सर्वे के प्रश्न भ्रामक थे या सर्वे ने एक समूह (भाजपा-झुकाव वाले राज्यों में बहुत अधिक मतदाता) को अधिक सैंपल किया, या सर्वे ने दूसरों की तुलना में एक डेटा कलेक्शन मैथड पर जोर दिया. अगर चुनाव-पूर्व सर्वे और चुनाव के दिन के नतीजों के बीच गलतियां बड़ी हैं, तो जनता का मतदान पर से भरोसा उठ सकता है. लोकतंत्र में यह एक विनाशकारी परिणाम होगा.
अमेरिका में चुनाव
अमेरिका में सटीक मतदान अविश्वसनीय रूप से जटिल हैं. मतदान के नमूने जो एक तरफ झुकते हैं, वे दिखा सकते हैं कि कमला हैरिस जीत रही हैं, जो दूसरी तरफ झुकते हैं, वे दिखा सकते हैं कि ट्रंप जीत रहे हैं. रजिस्टर्ड मतदाताओं (आधिकारिक मतदाता सूची में शामिल) और उन लोगों का सवाल भी है जो मतदान करने की संभावना रखते हैं और जिन्हें पोलस्टर अपने सर्वे में शामिल करते हैं. एक बड़े लोकतंत्र के लिए, अमेरिका में मतदाता भागीदारी बहुत कम है. 2016 में सभी पात्र मतदाताओं में से केवल 55 प्रतिशत मतदान करने गए. भारत में भी 2024 में यह संख्या 66 फीसदी थी.
अमेरिकी चुनावों में एक अनोखी बात यह है कि यहां चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग जैसा कोई केंद्रीय प्राधिकरण नहीं है. यहां चुनाव राज्य दर राज्य का मामला है. प्रत्येक राज्य के अपने नियम हैं - समय से पहले मतदान के लिए, चुनाव के दिन मतदान केंद्र कितने समय तक खुला रहता है, डाक से भेजे जाने वाले मतपत्रों के लिए नियम, मतदाता पहचान पत्र के नियम, और वोटों की गिनती, सारणीबद्धता और रिपोर्टिंग कैसे की जाती है.
भारत के विपरीत, जहां बहुमत पार्टी के सांसद प्रधानमंत्री चुनते हैं, अमेरिकी राष्ट्रपति को सीधे मतदाता चुनते हैं और भारत के विपरीत लोकप्रिय वोट - कमला हैरिस या डोनाल्ड ट्रंप द्वारा जीते गए राष्ट्रीय वोटों की कुल संख्या बहुत मायने नहीं रखती, यहां जो मायने रखता है वह है इलेक्टोरल कॉलेज जीतना, जो अमेरिकी चुनावों की एक और अनूठी विशेषता है.