नई दिल्ली:बांग्लादेशी की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को भारत द्वारा शरण दिए जाने के बाद भारत-बांग्लादेश संबंधों के भविष्य को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है. इसी बीच, बैंकर और नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस को मुख्य सलाहकार बनाए जाने के साथ नई अंतरिम सरकार के कार्यभार संभालने के बाद ढाका से भी सुलह की आवाजें उठ रही हैं.
अंतरिम सरकार के कार्यभार संभालने के एक सप्ताह से भी कम समय बाद पहली बार राजनयिक ब्रीफिंग के बाद नवनियुक्त विदेश मामलों के सलाहकार मोहम्मद तौहीद हुसैन ने सोमवार को कहा कि हसीना के भारत में रहने से ढाका और नई दिल्ली के बीच संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ेगा. उन्होंने कहा, 'किसी एक व्यक्ति के किसी देश में रहने से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.'
ढाका ट्रिब्यून ने बांग्लादेश के पूर्व विदेश सचिव तौहीद द्वारा राजनयिक ब्रीफिंग के बाद एक प्रश्न के उत्तर में कही गई बात को उद्धृत किया. उन्होंने कहा,'द्विपक्षीय संबंध बहुत बड़ी बात है और इसमें आपसी हित शामिल होते हैं. दोनों पक्षों के अपने हित हैं. भारत के अपने हित हैं और बांग्लादेश के अपने हित हैं.' तौहीद भारत में बांग्लादेश के उप उच्चायुक्त भी रह चुके हैं.
जनवरी में संसदीय चुनावों में लगातार चौथी बार प्रधानमंत्री के रूप में हसीना के निर्वाचित होने के बाद उनकी लोकप्रियता रेटिंग में गिरावट आ रही थी, क्योंकि लोगों ने उनकी कार्यशैली को निरंकुश माना था. वहीं, विपक्षी दलों ने शेख हसीना का बहिष्कार किया था. इस साल जून में बांग्लादेश में छात्रों द्वारा शुरू किया गया नौकरी कोटा विरोधी आंदोलन एक पूर्ण क्रांति में बदल गया, जिसमें हसीना की अवामी लीग सरकार के खिलाफ इस्लामी कट्टरपंथी तत्व शामिल हो गए. इसके कारण उन्हें 5 अगस्त को भारत भागने पर मजबूर होना पड़ा. रिपोर्टों के अनुसार हसीना और उनकी बहन रेहाना को दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में एक सुरक्षित घर में शरण दी गई है.
इस साल जनवरी में बांग्लादेश में हुए संसदीय चुनावों से पहले, उन्होंने लगातार विपक्षी दलों की मांग को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था कि चुनाव प्रक्रिया के दौरान अंतरिम सरकार स्थापित की जाए. हालांकि अमेरिका, यूरोपीय संघ और अन्य पश्चिमी शक्तियों ने उन्हें विपक्ष की मांग स्वीकार करने के लिए राजी किया, लेकिन उन्होंने इसे आंतरिक मामले में बाहरी हस्तक्षेप के रूप में खारिज कर दिया. इस दौरान भारत ने तटस्थ रुख बनाए रखा.
अंत में मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) सहित सभी विपक्षी दलों ने चुनावों का बहिष्कार किया जो अंततः हुए. बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी अतीत में सत्ता में रहने के दौरान अपनी भारत विरोधी नीतियों के लिए जानी जाती थी. परिणामस्वरूप, जब हसीना की अवामी लीग सत्ता में वापस आई, तो उसने वस्तुतः विपक्ष-रहित सरकार चलाना शुरू कर दिया. किसी भी लोकतंत्र को ठीक से काम करने के लिए, एक मजबूत विपक्ष की आवश्यकता होती है.
इससे व्यवस्था में हलचल मच गई. नतीजतन, नौकरी कोटा व्यवस्था के खिलाफ छात्रों के आंदोलन के रूप में शुरू हुआ आंदोलन अंततः हसीना की सरकार के खिलाफ इस्लामी ताकतों के साथ एक पूर्ण विद्रोह में बदल गया. इसके परिणामस्वरूप उन्हें सत्ता से बाहर होना पड़ा और 400 से अधिक लोगों की मौत हो गई.