बाकू: अजरबैजान में चल रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन सीओपी29 (COP29) का आरंभिक सत्र कई अहम विवादों के कारण देरी से शुरू हुआ. विकासशील देशों विशेषकर चीन और भारत ने सम्मेलन के एजेंडा में 'एकतरफा व्यापार उपायों' जैसे कि यूरोपीय संघ के कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) को शामिल करने पर जोर दिया. वहीं, अमीर देशों ने इसका विरोध किया. इस विवाद ने सम्मेलन की औपचारिक शुरुआत में विलंब पैदा किया और पहले दिन का माहौल गर्मा गया.
सीबीएएमविवाद क्या है?
सीबीएएम (CBAM) यूरोपीय संघ द्वारा प्रस्तावित एक कर है. ये उन ऊर्जा-गहन उत्पादों जैसे लोहा, इस्पात, सीमेंट, उर्वरक, और एल्युमीनियम पर लगाया जाएगा जो भारत, चीन जैसे देशों से आयातित होते हैं. यह कर उन कार्बन एमिशन पर आधारित होगा जो इन उत्पादों के उत्पादन के दौरान हुए हैं.
यूरोपीय संघ का तर्क है कि सीबीएएम का उद्देश्य घरेलू उत्पादकों को समान प्रतिस्पर्धा का अवसर देना है, क्योंकि उन्हें कड़े पर्यावरणीय मानकों का पालन करना पड़ता है. इसके अतिरिक्त इस कर से आयातित वस्तुओं से होने वाले उत्सर्जन को नियंत्रित करने में भी मदद मिलेगी.
हालांकि, विकासशील देशों का मानना है कि सीबीएएम जैसी नीतियां उनके उद्योगों पर आर्थिक बोझ डाल सकती हैं. साथ ही यूरोप के साथ व्यापारिक लागत को अत्यधिक महंगा बना सकती है. भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले महीने सीबीएएम को 'एकतरफा और मनमाना' बताते हुए कहा था कि यह भारतीय उद्योगों के लिए हानिकारक साबित हो सकता है और अंतरराष्ट्रीय व्यापार संतुलन को प्रभावित कर सकता है.
दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) के अनुसार सीबीएएम के तहत भारत से यूरोप को निर्यात किए गए कार्बन-गहन उत्पादों पर 25फीसदी अतिरिक्त कर लगाया जाएगा. ये भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 0.05 प्रतिशत बोझ पैदा करेगा.
वित्तीय एजेंडा पर तनाव
सीओपी29 (COP29) के पहले दिन का आरंभिक सत्र बहुत देर से शुरू हुआ क्योंकि विकसित और विकासशील देशों के बीच सीबीएएम (CBAM) को लेकर तीखी बहस छिड़ी रही. इस बैठक में सीओपी29 के मेजबान अजरबैजान ने सभी देशों से आग्रह किया कि वे लंबित मुद्दों का शीघ्रता से समाधान करें.
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र का फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के प्रमुख साइमन स्टीएल ने कहा कि जलवायु को लेकर वित्त को हर देश की 'स्वार्थ-सिद्धि' के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि सिर्फ किसी दान के रूप में. उन्होंने जोर देकर कहा कि यह समझौता हर देश के हित में है.