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COP29 में CBAM पर टकराव: विकासशील और विकसित देशों में व्यापारिक नीतियों पर मतभेद

अजरबैजान की राजधानी बाकू में वार्षिक संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन का आोजन किया गया है. पढ़ें पर्यावरणविद डॉ. सीमा जावेद की रिपोर्ट...

COP29 Climate Summit
अजरबैजान के बाकू विश्व जलवायु शिखर सम्मेलन (AP)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 12, 2024, 2:17 PM IST

बाकू: अजरबैजान में चल रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन सीओपी29 (COP29) का आरंभिक सत्र कई अहम विवादों के कारण देरी से शुरू हुआ. विकासशील देशों विशेषकर चीन और भारत ने सम्मेलन के एजेंडा में 'एकतरफा व्यापार उपायों' जैसे कि यूरोपीय संघ के कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) को शामिल करने पर जोर दिया. वहीं, अमीर देशों ने इसका विरोध किया. इस विवाद ने सम्मेलन की औपचारिक शुरुआत में विलंब पैदा किया और पहले दिन का माहौल गर्मा गया.

सीबीएएमविवाद क्या है?
सीबीएएम (CBAM) यूरोपीय संघ द्वारा प्रस्तावित एक कर है. ये उन ऊर्जा-गहन उत्पादों जैसे लोहा, इस्पात, सीमेंट, उर्वरक, और एल्युमीनियम पर लगाया जाएगा जो भारत, चीन जैसे देशों से आयातित होते हैं. यह कर उन कार्बन एमिशन पर आधारित होगा जो इन उत्पादों के उत्पादन के दौरान हुए हैं.

यूरोपीय संघ का तर्क है कि सीबीएएम का उद्देश्य घरेलू उत्पादकों को समान प्रतिस्पर्धा का अवसर देना है, क्योंकि उन्हें कड़े पर्यावरणीय मानकों का पालन करना पड़ता है. इसके अतिरिक्त इस कर से आयातित वस्तुओं से होने वाले उत्सर्जन को नियंत्रित करने में भी मदद मिलेगी.

हालांकि, विकासशील देशों का मानना है कि सीबीएएम जैसी नीतियां उनके उद्योगों पर आर्थिक बोझ डाल सकती हैं. साथ ही यूरोप के साथ व्यापारिक लागत को अत्यधिक महंगा बना सकती है. भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले महीने सीबीएएम को 'एकतरफा और मनमाना' बताते हुए कहा था कि यह भारतीय उद्योगों के लिए हानिकारक साबित हो सकता है और अंतरराष्ट्रीय व्यापार संतुलन को प्रभावित कर सकता है.

दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) के अनुसार सीबीएएम के तहत भारत से यूरोप को निर्यात किए गए कार्बन-गहन उत्पादों पर 25फीसदी अतिरिक्त कर लगाया जाएगा. ये भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 0.05 प्रतिशत बोझ पैदा करेगा.

वित्तीय एजेंडा पर तनाव
सीओपी29 (COP29) के पहले दिन का आरंभिक सत्र बहुत देर से शुरू हुआ क्योंकि विकसित और विकासशील देशों के बीच सीबीएएम (CBAM) को लेकर तीखी बहस छिड़ी रही. इस बैठक में सीओपी29 के मेजबान अजरबैजान ने सभी देशों से आग्रह किया कि वे लंबित मुद्दों का शीघ्रता से समाधान करें.

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र का फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के प्रमुख साइमन स्टीएल ने कहा कि जलवायु को लेकर वित्त को हर देश की 'स्वार्थ-सिद्धि' के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि सिर्फ किसी दान के रूप में. उन्होंने जोर देकर कहा कि यह समझौता हर देश के हित में है.

ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन ने एक प्रस्ताव के माध्यम से सीओपी29 (COP29) के एजेंडे में एकतरफा व्यापार उपायों को शामिल करने का अनुरोध किया. चीन की ओर से इस प्रस्ताव को रखते हुए कहा गया कि यह नीति न केवल सीबीएएम के खिलाफ है, बल्कि इसके जरिए विकसित देशों की औद्योगिक नीतियों को लेकर भी व्यापक चिंता व्यक्त की गई है.

विशेषज्ञों की राय
चीन क्लाइमेट हब के निदेशक ली शुओ ने कहा कि बेसिक समूह (ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन) देशों का का यह प्रस्ताव दर्शाता है कि कई विकासशील देशों के लिए सीबीएएम जैसी नीतियां उनके औद्योगिक हितों के लिए हानिकारक साबित हो सकती है.

उनका मानना है कि यह नीति यूरोप और अमेरिका जैसे देशों के उन औद्योगिक उपायों का हिस्सा है जिनमें वे अपने घरेलू बाजार को सस्ती हरित उत्पादों जैसे कि इलेक्ट्रिक वाहनों और सोलर पैनल से भरने के प्रयास में लगे हैं.

थर्ड वर्ल्ड नेटवर्क की मीना रमन ने सीओपी29 में फाइनेंस के मुद्दे पर जोर देते हुए कहा कि विकसित देश जलवायु वित्त के बजाय अन्य मुद्दों पर चर्चा का ध्यान खींचने का प्रयास कर रहे हैं. उनका कहना था कि इस संवाद का मुख्य फोकस विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के खिलाफ मदद देने के लिए वित्तीय सहायता पर होना चाहिए.

क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने इसे 'फाइनेंस पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अहम परीक्षा' बताया. उन्होंने कहा कि क्लाइमेट फाइनेंस पर प्रगति सीओपी29 का असली लिटमस टेस्ट है. उनका मानना है कि यह सम्मेलन इस बात का उत्तर देगा कि क्या विकसित देश अपने वादों को पूरा करेंगे और विकासशील देशों के लिए ठोस वित्तीय मदद का रास्ता खोलेंगे.

सीबीएएमका भविष्य और सीओपी29में आगे की राह
सीओपी29में सीबीएएमपर जारी इस विवाद से यह स्पष्ट हो गया है कि जलवायु परिवर्तन की लड़ाई में केवल उत्सर्जन कटौती ही नहीं, बल्कि वैश्विक व्यापार और आर्थिक संतुलन की भी आवश्यकता है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर सीबीएएम जैसी नीतियों को उचित वैश्विक सहयोग के साथ नहीं लागू किया गया, तो यह नीति विकासशील देशों की आर्थिक प्रगति और जलवायु वित्त व्यवस्था में असंतुलन पैदा कर सकती है.

यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सीओपी29 में विकसित और विकासशील देशों के बीच इस विवाद का क्या नतीजा निकलता है और क्या सीबीएएमके खिलाफ उठाए गए कदम विकासशील देशों की चिंताओं को दूर कर पाएंगे. सीओपी29 में इस मुद्दे पर बनी सहमति न केवल पर्यावरण बल्कि वैश्विक व्यापार और आर्थिक नीतियों के लिए भी ऐतिहासिक सिद्ध हो सकती है.

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