अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) का प्रस्ताव जुलाई 1944 में ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में रखा गया था. यह मुख्य रूप से हैरी डेक्सटर व्हाइट और जॉन मेनार्ड कीन्स के विचारों पर आधारित था. IMF की स्थापना 44 सदस्य देशों द्वारा की गई थी. इसका मकसद आर्थिक सहयोग के लिए एक रूपरेखा बनाना था. यह उत्पादकता, रोजगार सृजन और आर्थिक कल्याण को बढ़ाने के लिए वित्तीय स्थिरता और मौद्रिक सहयोग को बढ़ावा देने वाली आर्थिक नीतियों का समर्थन करके अपने लक्ष्य को हासिल करता है. इसके साथ ही यह अपने सभी 190 सदस्य देशों के लिए सतत विकास और समृद्धि प्राप्त करने के लिए भी काम करता है.
विकास बैंकों के विपरीत, IMF विशिष्ट परियोजनाओं के लिए ऋण नहीं देता है. इसके बजाय, IMF संकटग्रस्त देशों को आर्थिक स्थिरता और विकास को बहाल करने वाली नीतियों को लागू करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है. यह संकटों को रोकने में मदद करने के लिए एहतियाती वित्तपोषण भी प्रदान करता है. देशों की बदलती जरूरतों को पूरा करने के लिए IMF ऋण को लगातार परिष्कृत भी करता है.
आईएमएफ के तीन महत्वपूर्ण मिशन
- अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक सहयोग को आगे बढ़ाना
- व्यापार और आर्थिक विकास के विस्तार को प्रोत्साहित करना
- समृद्धि को नुकसान पहुंचाने वाली नीतियों को हतोत्साहित करना
वर्तमान समय में संकटों के कारण विविध और जटिल हैं. यह घरेलू और बाहरी दोनों में से एक या दोनों हो सकते हैं. घरेलू कारकों में अनुचित राजकोषीय और मौद्रिक नीतियां शामिल हैं. जिनकी वजह से चालू खाते और राजकोषीय घाटे बढ़ते हैं. इसके अलावा उच्च सार्वजनिक ऋण स्तर भी एक कारक है.
इसके अलावा आईएमएफ मानता है कि एक अनुचित स्तर पर तय की गई विनिमय दर, जो प्रतिस्पर्धा को नष्ट कर सकती है अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी नहीं होती है. एक कमजोर वित्तीय प्रणाली, जो आर्थिक उछाल और मंदी पैदा कर सकती है के बारे में भी आईएमएफ देशों को चेतावनी जारी करता रहता है. राजनीतिक अस्थिरता और कमजोर संस्थान भी संकटों को ट्रिगर कर सकते हैं.
बाहरी कारकों में प्राकृतिक आपदाओं से लेकर कमोडिटी की कीमतों में बड़े उतार-चढ़ाव तक के झटके शामिल हैं जो संकटों के सामान्य कारण हैं, खासकर कम आय वाले देशों के लिए. यहां तक कि मजबूत बुनियादी ढांचे वाले देश भी आर्थिक संकटों और नीतियों से गंभीर रूप से प्रभावित हो सकते हैं, जैसा कि वर्ष 2008 में अमेरिका में हुआ था.
कोविड-19 महामारी दुनिया भर के देशों को प्रभावित करने वाले बाहरी झटके का एक उदाहरण थी, IMF ने सबसे कमजोर देशों की रक्षा करने और आर्थिक सुधार के लिए मंच तैयार करने में मदद करने के लिए अभूतपूर्व वित्तीय सहायता की. भुगतान संतुलन की समस्या तब होती है जब कोई देश आवश्यक आयातों के लिए भुगतान करने या अपने बाहरी ऋण की सेवा करने में असमर्थ होता है. भारत को दिवंगत प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के समय में एक गंभीर संकट का सामना करना पड़ा, अंततः भारत को उस बुरे दौर से उबारने के लिए ग्रेट ब्रिटेन के पास सोना गिरवी रखना पड़ा था.
IMF अपने ज्ञान को वित्त मंत्रालयों, केंद्रीय बैंकों, सांख्यिकीय एजेंसियों, वित्तीय पर्यवेक्षी एजेंसियों और राजस्व प्रशासन जैसे सरकारी संस्थानों के साथ व्यावहारिक सलाह के माध्यम से साझा करता है. हाल के वर्षों में कई देश राजकोषीय चुनौतियों का सामना कर रहे हैं ऐसे में राजकोषीय विकास की बहुपक्षीय निगरानी IMF की जिम्मेदारियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई है. IMF आर्थिक और वित्तीय मुद्दों पर ज्ञान के लिए एक वैश्विक केंद्र के रूप में कार्य करता है. पिछले आठ दशकों में, इसने विश्व स्तर पर अग्रणी विशेषज्ञता और अनुभव का भंडार विकसित किया है. जिसके माध्यम से हमें पता चलता है कि कौन सी नीतियां कारगर होती हैं, वे विकास को क्यों बढ़ावा देती हैं और उनका सर्वोत्तम क्रियान्वयन कैसे किया जाए.
आईएमएम समय समय पर सरकारों को सलाह देता है कि राजस्व कैसे जुटाए जाएं. इसके साथ ही कर तथा सीमा शुल्क नीतियों, बजट निर्माण, घरेलू और विदेशी ऋण, तथा सामाजिक सुरक्षा जाल सहित व्यय का प्रभावी प्रबंधन पर भी देशों को आईएमएफ से मदद मिलती है.