नई दिल्ली : हाल के दिनों में चल रहे एक अभियान की नवीनतम अभिव्यक्ति में, नेपाल की राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) ने मांग की है कि देश को एक हिंदू राज्य के रूप में बहाल किया जाए और संवैधानिक राजतंत्र बहाल की जाए.
काठमांडू पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, आरपीपी ने बुधवार को नेपाल के प्रधान मंत्री पुष्प कमल दहल को जो 40-सूत्रीय मांग पत्र सौंपा. पार्टी ने साथ ही यह भी घोषणा की कि वह नेपाल में संवैधानिक राजशाही की बहाली के लिए एक शांतिपूर्ण अभियान शुरू करेगी.
काठमांडू के विभिन्न हिस्सों में सैकड़ों पार्टी कार्यकर्ताओं की ओर से रैलियां आयोजित करने के बाद आरपीपी नेतृत्व ने मांगों का चार्टर सौंपने के लिए प्रधान मंत्री दहल से मुलाकात की. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इस दौरान पार्टी अध्यक्ष राजेंद्र लिंगडेन ने कहा कि राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी शांतिपूर्ण प्रदर्शन जारी रखेगी लेकिन अगर सरकार उदासीन रही, तो वह एक मजबूत क्रांति का विकल्प चुनेगी.
2015 में, नेपाल एक नए संविधान के अधिनियमन के साथ औपचारिक रूप से एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य में परिवर्तित हो गया. इसके बाद साल 2008 की शुरुआत में, संविधान सभा के उद्घाटन सत्र के दौरान नेपाल को आधिकारिक तौर पर एक गैर-हिंदू राज्य घोषित किया गया था. इस घोषणा के साथ ही राजशाही अतीत का किस्सा हो गई थी.
तो, आरपीपी क्या है और यह नेपाल को हिंदू राज्य के रूप में घोषित करने और संवैधानिक राजशाही की बहाली की मांग क्यों कर रही है? आरपीपी, नेपाल की एक राजनीतिक पार्टी, खुद को संवैधानिक राजतंत्र और हिंदू राष्ट्रवाद के साथ जोड़ती है. इसकी स्थापना 1990 में राजशाही के उन्मूलन से पहले पूर्व प्रधानमंत्रियों सूर्य बहादुर थापा और लोकेंद्र बहादुर चंद ने की थी.
पार्टी ने 1997 में थापा और चंद के नेतृत्व में दो गठबंधन सरकारों का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया. इसके अतिरिक्त, थापा और चंद दोनों को 2000 के दशक में तत्कालीन राजा ज्ञानेंद्र की ओर से प्रधान मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था. 2002 में चंद और 2003 में थापा प्रधानमंत्री बने थे. 2022 के आम चुनाव के बाद, जहां आरपीपी ने 14 सीटें हासिल कीं, जिससे यह 275 सीटों वाली प्रतिनिधि सभा में पांचवीं सबसे बड़ी पार्टी बन गई. साथ ही यह चुनाव आयोग की ओर से धोषित आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त सात राष्ट्रीय पार्टियों में से एक बन गई.
चुनाव के बाद थोड़े समय के लिए सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा होने के बावजूद, पार्टी 25 फरवरी, 2023 को विपक्ष में चली गई. यह एकमात्र राजनीतिक दल है जिसने लगातार हिंदू राज्य और संवैधानिक राजतंत्र के लिए वकालत की है. हालांकि, कई अन्य समूह भी हैं जो हाल के दिनों में इसी तरह की मांग कर रहे हैं. इनमें कुछ हिंदू समूह और पूर्व राजघराने शामिल हैं.
मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस के रिसर्च फेलो और नेपाल के मुद्दों के विशेषज्ञ निहार आर नायक के अनुसार, यह अभियान काफी समय से चल रहा है. नायक ने ईटीवी भारत को बताया कि 2008 में राजशाही के उन्मूलन के बाद से राजशाही के समर्थक यह मांग कर रहे हैं. हालांकि, हाल के वर्षों में कुछ हिंदू समूह भी ये मांगें उठाते रहे हैं. अगस्त 2021 में, 20 हिंदू धार्मिक संगठनों ने कथित तौर पर तनाहुन जिले के देवहाट में एक 'संयुक्त मोर्चा' बनाया और कहा कि वे हिंदू राज्य की बहाली की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन करेंगे.