इस्लामाबाद : फरवरी को पाकिस्तान के मतदाता अपने पसंदीदा उम्मीदवारों और उस पार्टी को वोट देने के लिए कतार में खड़े होंगे, जिसे वे अगले पांच वर्षों तक देश चलाते देखना चाहते हैं. सरकार बनाने वाली किसी भी पार्टी को भारत, ईरान, अफगानिस्तान, चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित अपने पड़ोसियों के संबंधों के संदर्भ में कुछ बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा.
पाकिस्तान ने हाल ही में अफ़ग़ानिस्तान और ईरान के साथ बढ़ते तनाव के कारण आतंकवाद की समस्याएं बढ़ती देखी हैं. पाकिस्तान का भारत के साथ लंबे समय से सीमा विवाद चल रहा है और चीन के साथ उसके रिश्ते तथा अमेरिका के साथ समानांतर संचार शर्तें भी देश की चिंता का हिस्सा हैं.
पिछले चुनावों में ऐसे कई मुद्दे रहे हैं, जो चुनाव अभियानों के दौरान राजनीतिक नेताओं के सार्वजनिक भाषणों का हिस्सा बनकर रह गए हैं. सीमा विवाद और कश्मीर विवाद की प्रासंगिकता में भारत का उल्लेख हमेशा हर राजनीतिक नेता के हर भाषण का हिस्सा रहा है, जिसका उपयोग जनता से समर्थन जुटाने के लिए किया जाता है. चुनाव में राजनीतिक दल भारत का उल्लेख नहीं कर रहे हैं. उनका ध्यान गरीबी, मुद्रास्फीति, वृद्धि और विकास से संबंधित मुद्दों पर केंद्रित है.
देश की मौजूदा परिस्थितियों में घरेलू चुनौतियां बहुत अधिक महत्व रखती हैं. देश की भावी विदेश नीति और प्रमुख क्षेत्रीय एवं वैश्विक शक्तियों के साथ उसके संबंधों को प्रस्तुत करने को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. पाकिस्तान दशकों से अफगानिस्तान में युद्ध के दौरान अमेरिकी सहायता प्राप्त करने वाला अग्रणी देश रहा है. लेकिन स्लामाबाद द्वारा अपनी धरती और सीमा पार आतंकवादी समूहों के खिलाफ कार्रवाई की कमी के कारण वाशिंगटन को इसके समर्थन पर संदेह है. इमरान खान के कार्यकाल में पाक-अमेरिका संबंधों में और अधिक कड़वाहट आ गई, क्योंकि उन्होंने अमेरिका की आलोचना की व चीन के साथ और अधिक मेलजोल बढ़ाने की कोशिश की.