तेहरान: ईरान में बीते मंगलवार को इजराइली आसमान में मिसाइलों की बौछार की, जिससे कट्टर दुश्मन पूरी तरह युद्ध के कगार पर पहुंच गए. हालांकि यह कोई रहस्य नहीं है कि ईरान इजराइल का कट्टर दुश्मन है, लेकिन कई लोगों को यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि एक समय में दोनों के बीच बहुत करीबी संबंध थे. यहां तक कि दोनों देशों ने एक साझा दुश्मन के खिलाफ सेना भी बनाई थी.
इसके अलावा दोनों देशों ने1970 के दशक में एक गुप्त परियोजना पर सहयोग किया था, जिसे 'प्रोजेक्ट फ्लावर' के नाम से जाना जाता है. मिसाइल टेक्नोलॉजी को संयुक्त रूप से विकसित करने के उद्देश्य से अरबों डॉलर का यह मिशन दो देशों के बीच एक दुर्लभ साझेदारी थी.
ईरान ने इजराइल की संप्रभुता को स्वीकार किया
द्वितीय विश्व युद्ध और उपनिवेशवाद के खत्म होने के बाद जब संयुक्त राष्ट्र ने 1947 में फिलिस्तीन के ब्रिटिश शासनादेश के लिए विभाजन योजना प्रस्तावित की, तो ईरान उन 13 देशों में से एक था, जिन्होंने इसके खिलाफ मतदान किया. इतना ही नहीं 1949 में ईरान ने संयुक्त राष्ट्र में सदस्य के रूप में इजराइल के प्रवेश के खिलाफ भी मतदान किया. इसके बाद 1950 में ईरान ने इजराइल की संप्रभुता को स्वीकार किया. इसके साथ ही तुर्की के बाद ईरान ऐसा करने वाला दूसरा मुस्लिम बहुल देश बन गया.
ईरान और इजराइल की पार्टनरशिप
1953 में कथित सीआईए द्वारा रचित तख्तापलट के बाद ईरान में शाह के शासन की वापसी के बाद ईरान-इजराइल संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया. मोहम्मद रजा शाह पहलवी के सत्ता में लौटने के साथ, ईरान और इजराइल ने एक करीबी और बहुआयामी गठबंधन बनाना शुरू कर दिया. ईरान ने 1950 में आधिकारिक तौर पर इजराइल को मान्यता दी. उस समय, ईरान में पश्चिम एशिया में सबसे बड़ी यहूदी आबादी रहती थी.
पहलवी शासन ने इजराइल को एक स्वाभाविक सहयोगी के रूप में देखा, खासकर जमाल अब्देल नासर के मिस्र और बाथिस्ट इराकी गणराज्य जैसे आम विरोधियों के सामने. आपसी लाभ से प्रेरित गठबंधन ने ईरान और इजराइल के बीच आर्थिक, सैन्य और खुफिया सहयोग देखा.उन्होंने कम्युनिस्ट यूएसएसआर को पश्चिम एशिया से बाहर रखने के साझा हितों के आधार पर एक करीबी रिश्ता भी बनाया, क्योंकि दोनों पूंजीवादी अमेरिका द्वारा समर्थित थे.
तेल के बदले हथियार
अरब न्यूज के छपे एक आर्टिकल के अनुसार, नवगठित यहूदी राज्य ने अपना 40 फीसदी तेल ईरान से खरीदा, बदले में हथियारों, तकनीक और कृषि वस्तुओं का व्यापार किया. ईरान से तेल इजराइल की इंडस्ट्री और सैन्य जरूरतों के लिए महत्वपूर्ण था, जबकि शत्रुतापूर्ण अरब देशों ने यहूदी राज्य पर तेल प्रतिबंध लगा रखा था.1968 में स्थापित ईलाट-अश्केलोन पाइपलाइन कंपनी एक महत्वपूर्ण संयुक्त परियोजना थी, जिसने मिस्र के अधीन स्वेज नहर को दरकिनार करते हुए ईरानी तेल को इजराइल तक पहुंचाने की अनुमति दी.
बदले में इजराइल ने 1980 के दशक में इराक के खिलाफ अपने युद्ध में लड़ने के लिए ईरान को आधुनिक सैन्य इक्विपमेंट और हथियार प्रदान किए. टाइम्स ऑफ इजराइल के अनुसार ईरानियों ने इजराइल से एडवांस मिसाइल सिस्टम, एम-40 एंटीटैंक गन, उजी सबमशीन गन और विमान इंजन भी आयात किए. ईरान के शाह ने अपने पड़ोसियों के खिलाफ सैन्य सफलता के कारण इजराइल की प्रशंसा भी की.
मिसाइलों के विकास के लिए फ्लावर प्रोजेक्ट
प्रोजेक्ट फ्लावर का बुनियादी लक्ष्य सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइलों का विकास और संशोधन करना था, जो संभावित रूप से परमाणु वारहेड से लैस होने में सक्षम हों. दोनों देशों ने मिसाइलों के को-प्रोडक्शन के लिए समझौते पर अप्रैल 1977 में तेहरान में हस्ताक्षर किए गए.
हालांकि, परियोजना के परमाणु पहलू को कभी आगे नहीं बढ़ाया गया क्योंकि इजराइलियों को एहसास हुआ कि ईरान के साथ परमाणु हथियार एक खतरा बन सकते हैं. इसके बजाय, ईरानी सेना की पारंपरिक मिसाइल क्षमताओं को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया. प्रोजेक्ट फ्लावर के तहत सहयोग 1979 में इस्लामी क्रांति के साथ अचानक रुक गया, जिसने शाह के शासन को उखाड़ फेंका और अयातुल्ला खामेनई के नेतृत्व में इस्लामी गणराज्य की स्थापना की.