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ईरान में राष्ट्रपति चुनाव के लिए मुश्किल हुए हालात, वोटरों ने बनाई दूरी, उम्मीदवारों को कैसे मिलेगा बहुमत ? - Iran Presidential Elections

Iran Presidential Elections: ईरान में राष्ट्रपति पद के लिए 5 जुलाई को दोबारा चुनाव होंगे. इससे पहले कराए गए चुनाव में किसी उम्मीदवार को बहुमत नहीं मिला था.

IRAN PRESIDENTIAL ELECTIONS
ईरान में राष्ट्रपति चुनाव के लिए मुश्किल हुए हालात (ANI)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jul 2, 2024, 7:03 PM IST

दुबई: लगभग 20 साल से भी पहले ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने शुक्रवार की नमाज के दौरान असंतुष्ट वोटर्स को लेकर अमेरिका की निंदा की थी. खामेनेई ने 2001 में कहा था कि किसी भी देश के लिए यह शर्मनाक है कि वहां 35 प्रतिशत या 40 फीसदी मतदान हुआ. इससे यह स्पष्ट है कि उनके लोगों को अपनी राजनीतिक व्यवस्था पर भरोसा नहीं है.

अब दो दशक बाद ईरान भी इसी स्थिति का सामना कर रहा है, जिसका वर्णन अयातुल्ला ने किया था. ईरान में शुक्रवार को राष्ट्रपति पद के लिए दूसरे चरण का चुनाव होगा, जो 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद से देश में इस पद के लिए दूसरा चुनाव है. चुनाव के लिए पिछले सप्ताह केवल 39.9 फीसदी मतदाताओं ने ही मतदान किया था. हालांकि, चुनाव में कोई भी उम्मीदवार 50 प्रतिशत वोट हासिल नहीं कर सका. इसके अलावा बड़ा तादाद में लोग वोट नहीं कर रहे हैं, जो इस बात का संकेत है कि लोग मतदान करने के लिए बाध्य महसूस कर रहे हैं और वे सभी उम्मीदवारों को खारिज करना चाहते हैं.

इस बीच ईरान की अर्थव्यवस्था के कई सालों से निम्न स्तर पर जा रहा है, जिसके चलते लोगों में गुस्सा है, साथ ही असहमति पर खूनी दमन भी हो रहा है, जिसमें 2022 में महसा अमिनी की मौत के बाद भड़के विरोध प्रदर्शन भी शामिल हैं. बता दें कि पुलिस ने अमिनी को कथित तौर पर अपनी पसंद के अनुसार हिजाब नहीं पहनने के कारण हिरासत में लिया था. इसके अलावा ईरान का पश्चिम के साथ तनाव अभी भी बना हुआ है, क्योंकि ईरान यूरेनियम को पहले से कहीं अधिक हथियार-ग्रेड स्तरों के करीब समृद्ध कर रहा है.

लोगों को लगता है वोट की नहीं है अहमियत
ईरान में जारी राष्ट्रपति चुनाव में कट्टर माने जाने वाले पूर्व परमाणु वार्ताकार सईद जलीली का मुकाबला मसूद पेजेशकियन से है, जो एक हार्ट सर्जन हैं और जिन्हें राष्ट्रपति पद जीतने के लिए संभवतः व्यापक मतदान की जरूरत है. पेजेशकियन के समर्थक जलीली के शासन में आने वाले काले दिनों की चेतावनी दे रहे हैं. वहीं, कुछ लोगों को यकीन नहीं है कि उनके वोट का कोई महत्व भी है. उनको लगता है कि उनके वोट की कोई अहमियत नहीं है.

ग्राफिक डिजाइन का अध्ययन करने वाली 23 वर्षीय यूनिवर्सिटी छात्रा लीला सैय्यदी ने कहा, "मैंने वोट नहीं दिया और मैं नहीं दूंगी, क्योंकि महसा और उसके बाद युवाओं के सामने आने वाली परेशानियों के लिए किसी ने माफी नहीं मांगी, न तो सुधारवादियों ने और न ही कट्टरपंथियों ने."

ग्राफिक डिजाइन की पढ़ाई कर रही 23 साल की यूनिवर्सिटी छात्रा लीला सैय्यदी ने कहा, "मैंने वोट नहीं दिया और मैं नहीं दूंगी, क्योंकि महसा और उसके बाद युवाओं के सामने आने वाली परेशानियों के लिए किसी ने माफी नहीं मांगी, न ही सुधारवादियों ने और न ही कट्टरपंथियों ने."

50 फीसदी से अधिक वोट प्राप्त करना जरूरी
ईरानी चुनाव कानून के अनुसार राष्ट्रपति चुनाव में किसी भी उम्मीदवार को जीतने के लिए 50 फीसदी से अधिक वोट प्राप्त करना आवश्यक है. शनिवार को जारी पहले चरण के परिणामों में पेजेशकियन को 10.4 मिलियन वोट मिले, जबकि जलीली को 9.4 मिलियन वोट मिले. संसद के अध्यक्ष मोहम्मद बाघेर कलीबाफ 3.3 मिलियन वोट के साथ तीसरे स्थान पर रहे, जबकि शिया धर्मगुरु मुस्तफा पूरमोहम्मदी को 206,000 से अधिक वोट मिले. इसके चलते अब दोसरा रनऑफ शुक्रवार को दूसरा रनऑफ करवाया जाएगा.

विश्लेषकों का कहना है कि ईरान के अर्धसैनिक क्रांतिकारी गार्ड के पूर्व जनरल और राष्ट्रीय पुलिस प्रमुख कलीबाफ के अधिकांश मतदाता, जो छात्रों के खिलाफ कार्रवाई और भ्रष्टाचार के आरोपों के लिए जाने जाते हैं, कलीबाफ की ओर से उनका समर्थन किए जाने के बाद वे जलीली के पक्ष में मतदान करेंगे. इसके चलके 58 साल के जलीली रनऑफ के लिए अग्रणी स्थान पर आ गए हैं.

वहीं, ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर बातचीत के दौरान पश्चिमी राजनयिकों के बीच उनकी अड़ियल छवि के साथ-साथ उनके विचारों को लेकर घर में चिंता भी है. उदारवादियों के साथ खुद को जोड़ने वाले एक राजनेता, ईरान के पूर्व सूचना और संचार प्रौद्योगिकी मंत्री मोहम्मद जावेद अजारी जहरोमी ने जलीली और पेजेशकियन के बीच चुनाव को लेकर कहा कि वह ईरामन को तालिबान के हाथ में नहीं आने देंगे.

लोगों को चुनाव में नहीं दिलचस्पी
उन्होंने सोशल प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, "हम ईरान को तालिबान के हाथों में नहीं आने देंगे." हालांकि, ऐसी भयावह चेतावनियों का भी कोई असर नहीं हुआ. 28 जून को मतदान के बाद तेहरान की सड़कों पर कई लोगों ने एसोसिएटेड प्रेस से कहा कि उन्हें चुनाव की कोई परवाह नहीं है.

27 साल के छात्र अहमद ताहेरी ने कहा, "मैंने मतदान नहीं किया, क्योंकि पूर्व राष्ट्रपति अपने वादों को पूरा करने में विफल रहे. मैं इस आने वाले शुक्रवार को भी मतदान नहीं करूंगा." 43 साल के इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर और दो बच्चों के पिता मोहम्मद अली रोबती ने कहा कि लोगों ने आर्थिक दबावों के चलते मतदान नहीं किया. रोबती ने कहा, "कई वर्षों की आर्थिक कठिनाइयों के बाद, मुझे राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है." हालांकि उन्होंने शुक्रवार को मतदान करने की संभावना से इनकार किया.

विश्व शक्तियों के साथ ईरान के 2015 के परमाणु समझौते के समय उसकी मुद्रा का एक्सचेंज रेट 32,000 रियाल प्रति 1 डॉलर थी. आज, यह 617,000 रियाल प्रति 1 डॉलर है. वहीं, सितंबर 2022 में अमिनी की मौत पर लोगों का गुस्सा बरकरार है. उसकी मौत के लिए संयुक्त राष्ट्र के जांचकर्ताओं ने कहा कि ईरान सरकार को जिम्मेदार ठहराया था. अमिनी के मौत के बाद ईरान में महीनों तक विरोध प्रदर्शन हुए. इस दौरान 500 से अधिक लोग मारे गए और 22,000 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया.

सरकार की नीतियों से लोगों में नाराजगी
न्यूयॉर्क स्थित सौफन सेंटर थिंक टैंक ने सोमवार को एक विश्लेषण में कहा, "मतदाताओं की भागीदारी का स्तर और खाली मतपत्र शासन की नीतियों, विशेष रूप से आलोचकों और महिलाओं पर कार्रवाई को दर्शाते हैं, जो पूरे सिर को ढकने की आवश्यकता वाले कानूनों का पालन करने से इनकार करती हैं." पेजेशकियन ने एक्स पर लिखा है कि उनकी सरकार इंटरनेट पर प्रतिबंधों के साथ-साथ हिजाब के पुलिस प्रवर्तन का विरोध करेगी. फिलहाल शुक्रवार को मतदाता पेजेशकियन की बात मानेंगे या नहीं, यह सवाल बना हुआ है.

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