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क्या मौत से बदतर है सियाचिन ग्लेशियर में इन 4 सैनिकों की जिंदगी?, सर्वाइवल ड्रामा में देखें इनके संघर्ष की कहानी - SIACHEN A TALE OF SURVIVAL AND HOPE

सियाचिन: एक फिक्शनल टेल ऑफ सर्वाइवल एंड होप एक ऐसी कहानी है जो ग्लेशियर पर जवानों की जिंदगी के संघर्षों को दिखाती है.

Siachen: A Fictional tale of survival and hope
सियाचिन: एक फिक्शनल टेल ऑफ सर्वाइवल एंड होप (Special Arrangement)

By Seema Sinha

Published : Feb 24, 2025, 2:22 PM IST

Updated : Feb 24, 2025, 3:06 PM IST

हैदराबाद:सियाचिन ग्लेशियर पर फंसे चार भारतीय सैनिकों की जिंदगी पर आधारित है 'सियाचिन: ए फिक्शनल टेल ऑफ सर्वाइवल एंड होप'. इस ड्रामा प्ले को दर्शक बहुत पसंद कर रहे हैं, इसीलिए थिएटर खचाखच भरे हुए हैं. कहानी में एक भयानक बर्फीले तूफान में सब कुछ बह जाने के बाद बेस से किसी तरह का संपर्क नहीं होता, लेकिन वहां फंसे हुए सैनिकों को उम्मीद है कि वे बाहर जरूर निकलेंगे. स्क्रीन और स्टेज के दिग्गज मकरंद देशपांडे द्वारा निर्देशित, आदित्य रावल द्वारा लिखी हुई यह कहानी आपको सैनिकों की जिंदगी के संघर्षों से रूबरू कराती है, लेकिन इससे भी बड़ा सवाल ये है कि क्या सच में इस संघर्ष की जरुरत है?

आदित्य रावल ने नाटक के लिए इतना जटिल सब्जेक्ट क्यों चुना?

'मुझे हमेशा से जियो पॉलीटिक्स और इतिहास में दिलचस्पी रही है और मेरे लिए सियाचिन एक बेहतरीन सब्जेक्ट रहा है, क्योंकि ये एक ऐसी जगह है, जहां आम लोग नहीं रह सकते. 21,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस जगह पर भारत पाकिस्तान युद्ध विराम के बाद से एक गोली भी नहीं चली, लेकिन यहां सैनिक गोलियों से नहीं चोटी पर खराब मौसम के कारण जान गंवा देते हैं. हालांकि दोनों देशों ने इस ग्लेशियर से अपने सैनिक हटाने की इच्छा जाहिर की है, लेकिन एक दूसरे पर भरोसे की कमी के चलते ऐसा हो नहीं सका. रावल आगे कहते हैं, 'हमारे नाटक को देखने आए बहुत से सेना के लोगों ने इस रिसर्च की सराहना की है, बेस कैंप की प्रैक्टिस, भाषा, बीमारी, हाथ का नीला हो जाना जैसी बेसिक चीजें दिखाती है कि रिसर्च अच्छी की है.

सियाचिन: एक फिक्शनल टेल ऑफ सर्वाइवल एंड होप (Special Arrangement)

बर्फीले तूफान के बाद जिंदगी की जंग

लेफ्टिनेंट तन्मय बोस का किरदार निभाने वाले जहान कपूर कहते हैं, 'हमारी कहानी में वे चार हैं और कहानी उनके वहां उन्हें भेजे जाने के छह महीने बाद शुरू होती है, आम तौर पर, तीन महीने का टाइम होता है और वे बेस कैंप में वापस आ जाते हैं और फिर अपने दूसरे कमीशन या जो भी ड्यूटी उन्हें करनी होती है, उसके लिए जाते हैं, लेकिन एक बार में तीन महीने में ग्लेशियर आउटपोस्ट पर तैनाती होती है, क्योंकि इससे ज्यादा समय तक वहां जिंदा रहना बहुत मुश्किल है. लेकिन दुर्भाग्य से, तीन महीने पूरे होने के बाद, एक भयानक बर्फीला तूफान आता है और सब कुछ उजड़ जाता है. इस तूफान में चारों बच तो जाते हैं, लेकिन वे सोच नहीं पाते कि अब क्या करे, नौकरी छोड़ दें या अपने कर्तव्य को निभाए.

सियाचिन: एक फिक्शनल टेल ऑफ सर्वाइवल एंड होप (Special Arrangement)

सियाचिन रिश्तों की कहानी है. यह बहुत ही अनोखे तरह के रिश्ते हैं. यह अधिकार और अनुशासन का रिश्ता है, लेकिन यह उन लोगों का रिश्ता भी है, जो आपकी देखभाल में जुटे हैं. ये एक गंभीर विषय है, लेकिन इसमें डार्क ह्यूमर के साथ हल्कापन भी जोड़ा गया है.

निर्देशक मकरंद देशपांडे कहते हैं कि वे इसे सरल लेकिन नाटकीय बनाना चाहते थे, जो उनके लिए एक बड़ा चैलेंज था. थिएटर और नाटक में इसे बनाना कोई छोटा काम नहीं है. जब आप करोड़ों रुपये खर्च करके कोई बड़ा प्रोडक्शन कर रहे होते हैं, तो एक बड़ी फिल्म बनाना और डिजाइन करना अलग होता है, लेकिन जब आप प्लास्टिक का इस्तेमाल करके पहाड़ बनाते हैं तो ये थोड़ा कठिन हो जाता है, लेकिन मुझे मजा आया कि आप सियाचिन में हैं और साथ ही एक सैनिक के घर को भी दिखा रहे हैं और उसकी पत्नी के बारे में उसके दिमाग में क्या चल रहा है, यह भी दिखा रहे हो. आदित्य नाटक में सैनिक की अंतरात्मा की आवाज को आवाज देने में सफल रहे हैं'.

रावल और कपूर ने इस नाटक पर तब काम शुरू किया था, जब हंसल मेहता की 'फराज' पर दोनों के बीच शानदार गठजोड़ देखा गया था. उन्होंने बताया, 'जहान और मैं फराज की वर्कशॉप और रीडिंग के दौरान मिले थे, फिर कोविड 19 आ गया और लॉकडाउन के दौरान ही हमने दूसरी चीजें बनाने का फैसला किया, फिर हम दोनों ही थिएटर में रुचि रखते हैं, उन रीडिंग और मीटिंग्स के जरिए, हमें लगा कि हमारे आइडिया एक जैसे हैं'. कपूर ने कहा, 'आदित्य और मैं साथ में अच्छा काम करते हैं क्योंकि हम दोनों का काम करने का नजरिया बहुत हद तक एक जैसा है. हम दोनों ही थिएटर और सिनेमा दोनों को लेकर बेहद इमोशनल हैं'.

यह नाटक चार भारतीय सैनिकों के इर्द-गिर्द घूमता है, जो सियाचिन ग्लेशियर में फंसे हुए हैं. जिसे धरती का सबसे ठंडा युद्धक्षेत्र माना जाता है, इसमें चित्रांश पवार, निकेतन शर्मा, जतिन सरीन, गिरीश शर्मा और रोहित मेहरा भी अहम रोल में हैं. 80 मिनट के इस नाटक का हिंदी में अनुवाद राघव दत्त ने किया है.

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Last Updated : Feb 24, 2025, 3:06 PM IST

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