हैदराबाद: तेलंगाना के सूर्यपेट जिले के हरे-भरे लैंडस्केप में बसे अडागुदुर गांव में सुरेश नाम का एक युवक पर्यावरण संरक्षण के लिए आशा की किरण बनकर उभरा है. हरे-भरे खेतों और ग्रामीण इलाकों की ताजी हवा से घिरे हुए, सुरेश हमेशा प्रकृति से गहराई से जुड़े रहे. उनका मानना है कि अगर हम प्रकृति की रक्षा करेंगे, तो बदले में वह हमारी रक्षा करेगी.
इसके चलते ऑर्गेनिक फार्मिंग और प्लास्टिक प्रदूषण से पर्यावरण की रक्षा करना उनके जीवन का मिशन बन गया. छोटी उम्र से ही, सुरेश ने प्राकृतिक आपदाओं के विनाशकारी प्रभावों को देखा, जिनमें बढ़ते तापमान और भूकंप शामिल हैं. इन घटनाओं ने उनके भीतर गहरी चिंता जगाई और उन्हें तत्काल एक्शन आवश्यकता का एहसास हुआ.
अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद सुरेश ने खुद को पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित करने का फैसला किया. उन्होंने समझा कि हम जो खाना खाते हैं और जिस हवा में हम सांस लेते हैं, वह रसायनों और विषाक्त पदार्थों से तेजी से प्रदूषित हो रही है. इसके चलते सुरेश ने ऑर्गेनिक खेती का प्रैक्टिस करके शुरुआत की.
माता-पिता का विरोध
अपने माता-पिता के विरोध के बावजूद, जो कृषि में उनके प्रवेश को लेकर झिझक रहे थे, सुरेश दृढ़ निश्चयी थे. उन्होंने अपने माता-पिता को सस्टेनिबल फार्मिंग के महत्व के बारे में समझाया और जैविक तरीकों का उपयोग करके ड्रैगन फ्रूट जैसी लाभदायक व्यावसायिक फसलें उगाने का विकल्प चुना. उनके प्रयास सिर्फ खेती तक ही सीमित नहीं थे. सुरेश ने अपने गांव में हरियाली बहाल करने की चुनौती भी ली.
प्लास्टिक के व्यापक उपयोग से परेशान थे सुरेश
सुरेश प्लास्टिक के व्यापक उपयोग से परेशान थे, जिसे वे पर्यावरण क्षरण में प्रमुख योगदानकर्ता मानते थे. उन्होंने गांव में सुबह-सुबह सैर के दौरान सड़क किनारे फेंकी गई प्लास्टिक की बोतलें और थैलियां इकट्ठी करनी शुरू कर दीं. अपने दोस्तों और स्थानीय बच्चों की मदद से उन्होंने इन प्लास्टिक की वस्तुओं को अस्थायी गमलों में बदल दिया, उनमें लाल मिट्टी और आम, इमली, नींबू और नीम सहित विभिन्न पेड़ों के बीज भर दिए.