Watch: देखें कैसे निकाला जाता है सर्प विष, आदिवासियों की आजीविका बना सांपों का जहर - World Snake Day - WORLD SNAKE DAY
इरुलर समुदाय के लोग सांप के जहर को सरकारी फार्म में बेचकर अपना जीवन यापन करते हैं. चूंकि सापों की संख्या तेजी से कम होती जा रही है, जिससे कई लोगों की आजीविका पर खतरा मंडराने लगा है. ऐसी स्थिति में तमिलनाडु सरकार के मार्गदर्शन में काम करने वाली इरुलर स्नेक कैचर्स इंडस्ट्रियल को-ऑपरेटिव सोसाइटी उनसे सांप लेती है और उन्हें उसकी कीमत देती है. सोसाइटी ने 3 साल में 5 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई की है.
सांपों का जहर निकालते हैं आदिवासी (फोटो - ETV Bharat Tamil Nadu)
ऐसे निकाला जाता है सांपों का जहर (फोटो - ETV Bharat Tamil Nadu)
चेन्नई: विश्व स्वास्थ्य संगठन (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन) के आंकड़ों के अनुसार, दुनिया में हर साल 1 लाख 38 हजार लोग सांप के काटने से मरते हैं, जिसमें भारत में हर साल 58 हजार लोग सांप के काटने से मरते हैं. भारत में सांप के काटने से होने वाली मौतों के मामले में तमिलनाडु दूसरे नंबर पर है. सांप के जहर से पीड़ित लोगों का इलाज उसी सांप के जहर से किया जाता है.
सांप के जहर के संग्रह को समन्वित और व्यवस्थित करने के लिए 1978 में इरुलर स्नेक कैचर्स इंडस्ट्रियल कोऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड का गठन किया गया था. तमिलनाडु उद्योग एवं वाणिज्य विभाग के सहयोग से, इलुरार स्नेक कैचर्स औद्योगिक सहकारी समिति ममल्लापुरम के बगल में वडानेमिली क्षेत्र में काम कर रही है.
राज्य सरकार के श्रम कल्याण विभाग का एक अधिकारी इस संघ के सचिव के रूप में जिम्मेदार है. स्नेक कैचर्स सहकारी समिति में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, 5 सदस्य और कार्यकारी समिति के सदस्य होते हैं. इस संघ के तहत एक स्नेक फार्म स्थापित और संचालित है. तमिलनाडु सरकार द्वारा जारी सरकारी आदेश के अनुसार हर साल इस स्नेक फार्म के लिए जरूरी सांपों को पकड़ा जाता है और उनका जहर निकाला जाता है.
जुलाई से 31 मार्च तक अनुमति प्राप्त सांपों को पकड़कर नॉर्थ नेमिली स्नेक फार्म को सौंप दिया जाता है. साल के 3 महीने सांप नहीं पकड़े जाते. वडानेमिली में संचालित इरुलर स्नेक कैचर्स कोऑपरेटिव एसोसिएशन के सचिव बालाजी ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि 'इस एसोसिएशन में 339 पुरुष और महिलाएं हैं, जिन्हें सांप पकड़ने का लाइसेंस मिला हुआ है और वे सांपों को पकड़कर फार्म को देते हैं. हम उनके द्वारा पकड़े गए सांप का भुगतान करते हैं और सांपों को ले लेते हैं.'
बालाजी ने बताया कि रसेल वाइपर और इंडियन कोबरा के 2,760 रुपये, कॉमन क्रेट को 1,020 रुपये और इचिस कैरिनैटस के लिए 360 रुपये मिलते हैं. इरुलर समुदाय के लाइसेंसधारी सदस्य तिरुवल्लूर, कांचीपुरम, चेंगलपट्टू, चेन्नई जैसे जिलों से सांपों को पकड़कर फार्म में देते रहे हैं. इस तरह से पकड़े गए सांपों को 22 दिनों तक फार्म में रखा जाता है और 4 दिनों में एक बार सांप से जहर निकाला जाता है.
उन्होंने बताया कि हम जहरीले सांप की पूंछ पर एक टैग लगाते हैं और उन सांपों को सुरक्षित तरीके से वापस उनके के रहने के लिए उपयुक्त स्थानों पर छोड़ देते हैं. जहरीले सांप की पहचान करने से थोड़े समय में ही उसका एंटीवेनम देने में मदद मिलती है. एक ही सांप का जहर बार-बार कम समय में निकालने से सांप के दांत खराब होने का डर रहता है.
बालाजी ने बताया कि इसलिए उसे विषैला सांप माना जाता है. ऐसे पकड़े गए सांपों से निकाला गया जहर भारत में विभिन्न दवा कंपनियों को बेचा जाता है. सांप का जहर पार्सल के जरिए दवा कंपनियों को भेजा जाता है. इस लिहाज से पिछले 3 सालों में 1807.150 ग्राम जहर निकालकर 5 करोड़ 43 लाख 53 हजार रुपये में बेचा गया. इसमें अकेले वडा नेमिल स्नेक फार्मिंग एसोसिएशन का शुद्ध लाभ 2.36 करोड़ रुपये है.
सांपों का संरक्षण क्यों किया जाना चाहिए?: सांप जैव-संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, खासकर कृषि भूमि में, चूहों को नियंत्रित करना किसानों के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण कार्य है. वे फसलों को नष्ट करते हैं और 20 गुना अधिक भोजन बर्बाद करते हैं. इन चूहों को नियंत्रित करने में सांप बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
क्या सभी सांप ज़हरीले होते हैं?: कोयंबटूर के वन पशु चिकित्सक अशोकन का कहना है कि सभी सांप ख़तरनाक रूप से ज़हरीले नहीं होते. दुनिया भर में सांपों की लगभग 3,500 प्रजातियां पहचानी गई हैं. सांपों की केवल 600 प्रजातियां ज़हरीली हैं. इनमें से केवल 200 प्रजातियां ही इतनी ज़हरीली हैं कि वे मनुष्यों को मार सकती हैं. जहां तक भारत का सवाल है, मानव आवास पर निर्भर सांपों में से केवल चार प्रजातियां ही इतनी ज़हरीली हैं कि वे मनुष्यों को मार सकती है.
उन्होंने आगे कहा कि 'सांपों की 14 प्रजातियां पहले ही पूरी तरह विलुप्त हो चुकी हैं. और भी ऐसे सांप हैं जो खतरे में हैं. सांपों की प्रजनन आयु तीन से चार साल होती है. एक सांप का बच्चा पैदा होता है और बड़ा होकर इतने सालों तक जीवित रहता है और फिर प्रजनन की संभावना बहुत कम होती है. इसलिए, सांपों की आबादी बढ़ने की संभावना बहुत कम है.'
उन्होंने कहा कि इसके अलावा जलवायु परिवर्तन सांपों के विलुप्त होने का मुख्य कारण है. सांपों में कैंसर ट्यूमर बहुत ही आम है. इसके अलावा, बैक्टीरिया जनित रोग भी सांपों पर हमला करते हैं. हमारे अनुभव में हमने ऐसे सांप देखे हैं जो भोजन की कमी के कारण कपड़े और कांच की बोतलें खा जाते हैं.'
अशोकन ने कहा कि 'भोजन की कमी के कारण सांप शहरी क्षेत्रों की ओर रुख करते हैं. ऐसे सांप वाहनों की चपेट में आकर मर जाते हैं. सांप आमतौर पर इंसानों से दूर रहने की कोशिश करते हैं. जैसे-जैसे ग्रामीण क्षेत्र विकसित होते गए और शहरी क्षेत्र बनते गए, सांपों की संख्या में कमी आई है.'
क्या सांप बदला लेते हैं?: इस सवाल के जवाब में अशोक ने कहा कि 'सांपों की याददाश्त बहुत अच्छी होती है. इस वजह से अगर सांप को पकड़कर दूसरी जगह ले जाया जाए तो भी वह फिर से पुरानी जगह पर लौट आता है. लोगों में यह गलत धारणा है कि सांप इंसानों से बदला लेने आते हैं.'
अगर आपको सांप काट ले तो क्या करें?: सांपों को पकड़ने और संभालने में माहिर अमीन कहते हैं कि 'सांपों से बचाव करना बहुत ज़रूरी है. तमिलनाडु में इंडियन कोबरा, कॉमन करैत, इचिस कैरिनैटस और रसेल वाइपर, सिर्फ़ 4 तरह के सांप ज़हरीले होते हैं. अगर आपको सांप दिखे तो उसे तुरंत नहीं मारना चाहिए.'
उन्होंने कहा कि 'अगर आपको रिहायशी इलाके में सांप दिखे तो आपको तुरंत इसकी सूचना वन विभाग या सांप पकड़ने वालों को देनी चाहिए. वे उसे जंगल में छोड़ देंगे. अगर आपको सांप काट ले तो आपको नज़दीकी सरकारी अस्पताल जाना चाहिए. आपको सांप के काटे हुए स्थान को रस्सी से बांधने जैसा काम नहीं करना चाहिए. अगर सांप होंगे तभी प्राकृतिक संतुलन बना रहेगा.'