भागलपुर :विश्व साड़ी दिवस पर ईटीवी भारत आपको बिहार की शान यानी कि भागलपुरी सिल्क के बारे में बताने जा रहा है. भारत में साड़ी को आप एक तरह से अघोषित राष्ट्रीय परिधान भी कह सकते हैं. जब भी कोई खास अवसर या त्योहार होता है, लड़कियां और महिलाएं अधिकांश साड़ी पहनना ही पसंद करती हैं. इसीलिए साड़ी महज़ एक परिधान नहीं, हमारी परंपरा है.
भागलपुर की अनोखी साड़ी:साड़ी के महत्व और खूबसूरती को दर्शाने के लिए 21 दिसंबर का दिन दुनियाभर में इस भारतीय परिधान के लिए निश्चित है. भारत देश में साड़ी की हजारोंं वैरायटी उपलब्ध है. बनारसी सिल्क,भागलपुरी सिल्क, कांजीवरम, चंदेरी, माहेश्वरी, पोचमपल्ली, तांतकी, पैठणी सहित हर प्रांत की अपनी खास साड़ी होती है. अगर आपको भी रेशमी कपड़े पसंद हैं, तो आपको भागलपुरी सिल्क जरूर पसंद आएगी.
"तसर साड़ी पर कट वर्क डिजाइन ज्यादा अब पसंद किया जा रहा है. ये साड़ी अपने मनपसंद कपड़े, रंग और प्रिंट की साड़ियां आपको कुछ सौ रुपये से लेकर लाखों तक में मिल जाएगी. इसे पहनने के भी सैंकड़ों तरीके हैं. खास अवसर या त्योहार होता पर लड़कियां और महिलाएं अधिकांश ये साड़ी पहनना ही पसंद करती हैं."-हेमंत कुमार,बुनकर
भागलपुरी सिल्क की दुनिया दीवानी:आपको बता दें कि भागलपुरी सिल्क का नाम बिहार के एक शहर भागलपुर के नाम पर रखा गया है. यही नहीं भागलपुर को भारत का रेशम नगरी भी कहा जाता है. भारत में पाए जाने वाले एन्थेरिया पफिया नामक एक रेशमकीट कोकून का इस्तेमाल भागलपुरी रेशम बनाने के लिए होता है.
तसर रेशम की साड़ियों की खासियत: इन रंग-बिरंगे धागों को तसर कोकून से उत्पादित रेशम से बनाया जाता है. जिसके बाद इन्हीं धागों से सुंदर और डिजाइनदार भागलपुरी रेशम साड़ियां तैयार की जाती हैं. भागलपुरी रेशम का एक नाम तसर रेशम भी है. यही वजह है कि यहां की साड़ियों को तसर रेशम साड़ियां भी कहते हैं.
अहिंसक तरीके से तैयार होती है साड़ी: वहीं इन रेशम से बने कपड़ों को अन्य कपड़ों से बेहतर माना जाता है. हालांकि आजकल कई तरह के कपड़े बाजारों में मिलते हैं, जिससे इसकी डिमांड पहले के मुताबिक कम हो गई है. लेकिन पहले इन रेशमी कपड़ों को काफी मान्यता दी जाती थी. आपको बता दें कि इस कला का एक मिशन किसी भी रूप में एनिमल क्रुएलिटी को कम करना भी है. यह प्रकृति के अनुकूल है, जिसमें बिना किसी क्रूरता के रेशम का उत्पादन किया जाता है. इसी कारण से भागलपुर को "द पीस सिल्क" भी कहा जाता है.
"हैंडलूम और पावर लूम में अलग-अलग धागे का उपयोग होता है. मजबूत धागे से ही पावर लूम में साड़ियां तैयार की जा सकती हैं. जबकि हैंडलूम में दोनों तरह के धागे मजबूत और कमजोर धागे से भी साड़ी बनाया जा सकता है. धीरे-धीरे अब फिर से हैंडलूम की ओर लोगों का रुझान बढ़ा है और हैंडलूम की साड़ियां अधिक पसंद की जाने लगी है."- आलोक कुमार, बुनकर
100 करोड़ से ज्यादा का व्यवसाय:भागलपुरी रेशम अपनी बेहतर गुणवत्ता और सुंदरता के कारण पहचानी जाती है. भागलपुर में हर साल करीब 100 करोड़ से ज्यादा का व्यवसाय होता है, जिसमें 50 प्रतिशत स्थानीय बाजार से और 50 प्रतिशत निर्यात बाजार से आता है. कोकून से रेशम के धागे निकालने और कपड़े की बुनाई के लिए सूत कातने का काम लगभग दस लाख लोग करते हैं.
भागलपुरी रेशम का दूसरा बड़ा निर्माता भारत:भागलपुरी रेशम कई शैलियों में आती है, इनमें कटिया, एरी, शहतूत और गिचा शामिल हैं. भागलपुर के रेशम का रंग दूसरों की तुलना में हल्का सुनहरा होता है, जिस कारण इसे ज्यादातर शादियों और पार्टियों में भी पहना जाता है. चीन के बाद भारत भागलपुरी रेशम का दूसरा सबसे बड़ा निर्माता है. दूसरे रेशमी कपड़ों के तुलना में भागलपुर रेशम ज्यादा बेहतर होता है, जिससे कि यह गर्मी के मौसम में ज्यादा आरामदायक साबित होता है.