नई दिल्ली: बांग्लादेश में हालिया हिंसक प्रदर्शन के बाद शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और देश छोड़कर भागना पड़ा. फिलहाल उन्होंने भारत में शरण ले रखी है. वहीं, बांग्लादेश में नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार देश चलाएगी. बांग्लादेश में जो भी कुछ हुआ कुछ लोग उसे तख्तापलट मानते हैं. इस बीच कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद विवादित बयान देते हुआ कहा कि जो हालात आज बांग्लादेश में बने हुए हैं वह भारत में भी हो सकते हैं.
सलमान खुर्शीद के बयान के बाद सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) कांग्रेस पर हमलावर हो गई है. बीजेपी ने कहा कि कांग्रेस देश को अराजकता की स्थिति में धकेलना चाहती है. बीजेपी ने पूछा कि क्या कांग्रेस चाहती है कि भारत में भी ऐसे ही हालात बने जैसे कि बांग्लादेश में हैं.
हालांकि, सवाल यह है कि जिस तरह की स्थिति बांग्लादेश में देखने को मिली क्या वह भारत में संभव है. इसका एक सीधा जवाब है- नहीं. दरअसल, जिन देशों में लोकतंत्र मजबूत होता है, वहां पर सेना की शक्तियां सीमित रहती है. इन देशों की सेना राजीनित में ज्यादा दखल नहीं देती और वह सरकार के अनुसार ही काम करती है.
लक्ष्मण रेखा पार नहीं करती भारतीय सेना
भारतीय सेना में अनुशासन सर्वोपरि है. साथ ही इंडियन आर्मी के सिद्धांत पश्चिमी देशों से प्रभवित हैं. जैसा कि हम जानते हैं कि अंग्रेजों ने भारत पर राज किया था. ऐसे में आजादी के बाद उनकी तमाम पॉलिसी का देश पर गहरा प्रभाव रहा है. ऐसे में सेना भी इससे अलग नहीं रह पाई. देश की आजादी के बाद से अब तक कभी ऐसा नहीं लगा कि सेना के अंदर भी बगावत हो सकती है. इतना ही नहीं सेना ने कभी भी अपनी लक्ष्मण रेखा पार नहीं की. इसमें कोई शक नहीं के भारतीय सेना काफी ताकतवरहै, लेकिन फिर भी वह सरकार के अधीन है.
जवाहर लाल नेहरू ने स्पष्ट की शक्तियां
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान ही सेना की शक्तियां स्पष्ट कर दी थीं. उन्होंने यहां तक साफ कर दिया था कि देश में सरकार ही सुप्रीम रहेगी. बता दें कि नेहरू ने पीएम बनने के बाद कमांडर एंड चीफ पद खत्म कर दिया था. उनका मानना था कि सेना, नौसेना और वायुसेना की अहमियत बराबर है. इसलिए तीनों सेनाओं का अलग-अलग प्रमुख होना चाहिए. इतना ही नहीं नेहरू ने यह भी साफ कर दिया कि देश में रक्षा मंत्री का पद सबसे बड़ा रहेगा और तीनों ही सेना प्रमुख रक्षा मंत्री को रिपोर्ट
युद्ध और सिक्योरिटी तक सीमित सेना
माना जाता है कि तख्तापलट वहीं होता है जहां पर राजनीति अस्थिरता रहती है और पॉलिटिकल पार्टियां खुद से कोई फैसला नहीं ले पातीं, लेकिन भारत में कभी भी ऐसी स्थिति नहीं आई. अगर कभी उतार-चढ़ाव आया भी तो उसका सियासी समाधान निकाला गया. इसके चलते सेना का इस्तेमाल सिर्फ युद्ध और इंटरनल सिक्योरिटी तक ही सीमित रहा.
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