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जज को उसके पद से कौन और कैसे हटा सकता है? जानें पूरा प्रोसेस

VHP के प्रोग्राम में भाषण देने वाले जस्टिस शेखर कुमार यादव के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने मांग उठने लगी है.

जज को उसके पद से कौन और कैसे हटा सकता है?
जज को उसके पद से कौन और कैसे हटा सकता है? (सांकेतिक तस्वीर)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : 6 hours ago

Updated : 4 hours ago

नई दिल्ली: इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक जज के विवादास्पद भाषण ने राजनीतिक विवाद को जन्म दे दिया है, जिसमें विपक्षी दलों ने मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना से इस मुद्दे पर संज्ञान लेने का आग्रह किया है. दरअसल, बीते रविवार शेखर कुमार यादव प्रयागराज में विश्व हिंदू परिषद (VHP) के विधिक प्रकोष्ठ के क्षेत्रीय सम्मेलन में शामिल हुए थे.

इस दौरान उन्होंने समान नागरिक संहिता (CAA) पर बोलते हुए भारत में बहुसंख्यकों के शासन और अल्पसंख्यक समुदाय के बारे में कई विवादास्पद टिप्पणियां कीं. उनका यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. वीडियो में उन्हें कथित तौर पर अपशब्दों का इस्तेमाल करते सुना जा सकता है.

इस घटना के बाद जस्टिस यादव के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने मांग उठने लगी. इतना ही नहीं कुछ लोगों ने उनकों बर्खास्त करने की डिमांड तक कर डाली. ऐसे में सवाल है कि क्या ऐसा संभव है?

क्या है जज को हटाने की प्रक्रिया?
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) हाई कोर्ट में किसी गलत काम करने वाले जज की भूमिका की जांच करने के लिए एक समिति गठित कर सकते हैं या न्यायाधीश जांच अधिनियम, 1968 के तहत संबंधित कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को किसी मौजूदा जज के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई का प्रस्ताव भी दे सकते हैं. हालांकि, अगर किसी जज को दुर्व्यवहार करते या अक्षम पाया जाता है तो केवल भारत के राष्ट्रपति ही उनको उनके पद से हटा सकता हैं.

न्यायाधीश जांच अधिनियम के तहत जज के खिलाफ संसद के किसी भी सदन में महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है. जज के खिलाफ कार्यवाही शुरू करने के लिए लोकसभा के कम से कम 100 सदस्य स्पीकर को हस्ताक्षरित नोटिस दे सकते हैं या राज्यसभा के कम से कम 50 सदस्य भी चेयरमैन को हस्ताक्षरित नोटिस दे सकते हैं.

इसके बदले में स्पीकर या चेयरमैन उनसे परामर्श कर सकते हैं और नोटिस से संबंधित रेलेवेंट मैटेरियल की जांच कर सकते हैं. इसके आधार पर वह प्रस्ताव को स्वीकार करने या अस्वीकार करने का निर्णय ले सकते हैं. अगर प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है, तो स्पीकर या चेयरमैन (जो इसे प्राप्त करते हैं) शिकायत की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन करेंगे. इसमें एक सुप्रीम कोर्ट के जज, एक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित ज्यूरिस्ट शामिल होंगे.

समिति जज के खिलाफ आरोप तय करेगी, जिसके आधार पर जांच की जाएगी. आरोपों की एक कॉपी जज को भेजी जाएगी, जो लिखित बचाव प्रस्तुत कर सकते हैं. जांच पूरी करने के बाद, समिति स्पीकर या चेयरमैन को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी, जो फिर संसद के संबंधित सदन के समक्ष रिपोर्ट पेश करेंगे.

यदि रिपोर्ट में दुर्व्यवहार या अक्षमता का पता चलता है, तो हटाने के प्रस्ताव पर विचार किया जाएगा और उस पर बहस की जाएगी. दोनों सदनों में प्रस्ताव पारित होने के बाद, इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा, जो जज को हटाने का आदेश जारी करेंगे.

राजनीति दलों में शामिल होते रहें हैं जज
गौरतलब है कि जजों के राजनीतिक दलों में शामिल होने के खिलाफ कोई नियम नहीं है - अधिकारियों के विपरीत - पद से रिटायर होने वाले अधिकांश जज राजनीतिक दलों में शामिल होते हैं. पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई को 2020 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा कथित तौर पर भाजपा के कहने पर राज्यसभा के लिए नामित किया गया था.

1980 के दशक में पूर्व सीजेआई रंगनाथ मिश्रा रिटायरमेंट के बाद कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए थे और 1998 से 2004 तक कांग्रेस पार्टी से राज्यसभा के सदस्य रहे. जस्टिस केएस हेगड़े ने सुप्रीम कोर्ट में जज के पद से इस्तीफा देने के बाद जनता पार्टी में शामिल हो गए और बैंगलोर दक्षिण निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा सीट जीती.

जस्टिस बहारुल इस्लाम, जो सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश थे,वह भी रिटायर होने के बाद कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए थे. इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति विजय बहुगुणा कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने. इसके बाद वे भाजपा में शामिल हो गए.

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Last Updated : 4 hours ago

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