तिरुमाला (आंध्र प्रदेश): तिरुपति वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर भारत के सबसे प्रतिष्ठित तीर्थ स्थलों में से एक है, जहां हर साल लाखों लोग दर्शन करने के लिए आते हैं. मंदिर में प्रसाद के रूप मिलने वाले लड्डू का भक्तों के बीच काफी महत्व है. यह परंपरा से परे आध्यात्मिक अनुभव का हिस्सा बना हुआ है.
तिरुपति बालाजी मंदिर में प्रसाद चढ़ाने की परंपरा 15वीं शताब्दी में वड़ा के साथ शुरू हुई, जो बाद में 19वीं शताब्दी में मीठी बूंदी और 1940 तक लड्डू में बदल गई. आज मंदिर की रसोई में 803 किलोग्राम कच्चे माल का उपयोग करके प्रतिदिन 3.5 लाख से अधिक लड्डू तैयार किए जाते हैं.
लड्डू बनाने की प्रक्रिया में मंदिर के बाहर बूंदी बनाना शामिल है, जिसे लड्डू बनाने के लिए कन्वेयर बेल्ट के माध्यम से रसोई में ले जाया जाता है. मंदिर श्री रामानुजाचार्य द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करते हुए प्राचीन परंपराओं का पालन करता है.
लड्डू के लिए सामग्री की मात्रा का निर्धारण
लड्डू बनाने में इस्तेमाल होने वाली सामग्री की मात्रा निर्धारित है. इसका निर्धारण पहली बार 1950 में किया गया था. वर्तमान में 2001 के संशोधित निर्देश के अनुसार लड्डू का निर्माण किया जा रहा है. इसमें 51 वस्तुएं मिली होती हैं.
तिरुमाला मंदिर के गर्भगृह के दक्षिण-पूर्व में स्थित रसोई में तैयार लड्डू प्रसाद को पहले वकुलमाता को दिखाया जाता है और फिर भगवान को चढ़ाया जाता है.
शुरुआती दिनों में लड्डू मिट्टी चूल्हे पर लकड़ी को जलाकर बनाए जाते थे. मंदिर में अधिक धुआं होने के कारण अब गैस चूल्हे का उपयोग किया जा रहा है. बूंदी बाहर बनाई जाती है और कन्वेयर बेल्ट द्वारा मंदिर में ले जाई जाती है तथा परिसर परिसर में लड्डू तैयार किए जाते हैं. बाद में ट्रे को कन्वेयर बेल्ट के माध्यम से मंदिर के बाहर लड्डू केंद्र में ले जाया जाता है.