देहरादून: पेशावर कांड की आज 94वीं बरसी है. इस मौके पर उत्तराखंड के राजनेताओं और इतिहासकारों ने पेशावर कांड के महानायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली को याद किया और उन्हें श्रद्धांजलि दी. पेशावर कांड 23 अप्रैल 1930 को घटित हुआ था. इसी दिन दुनिया का एक वीर सैनिक से परिचय हुआ था, जिनका नाम वीर चंद्र सिंह गढ़वाली था, जो उत्तराखंड के पौड़ी जिले के रहने वाले थे. जिन्होंने पेशावर में अपनी मांगों के लिए प्रदर्शन करने वाले निहत्थे पठानों पर गोली चलाने से इनकार कर दिया था. इतना ही नहीं वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ने साम्राज्यवादी अंग्रेजों की जड़ें तक हिलाकर रख दी थीं.
वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का परिचय: वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का जन्म 25 दिसंबर 1891 में हुआ था. वीर चंद्र के पूर्वज गढ़वाल की राजधानी चांदपुरगढ़ के थे. तीन सितंबर 1914 को वीर चंद्र सिंह ब्रिटिश सेना में भर्ती हुए थे. वीर चंद्र सिंह ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 1917 में मेसोपोटामिया के युद्ध में हिस्सा लिया था, जिसमें अंग्रेजों की जीत हुई थी. इसके बाद वीर चंद्र सिंह ने 1918 में बगदाद की लड़ाई में हिस्सा लिया था.
गांधी जी से मिलने के बाद जागी देश भक्ति: प्रथम विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजों ने कई सैनिकों को निकाल दिया था. वहीं कई सैनिकों के पदों को भी कम कर दिया था, जिनमें वीर चंद्र सिंह गढ़वाली भी थे. चंद्र सिंह गढ़वाली को भी हवलदार से सैनिक बना दिया गया था, जिस कारण चंद्र सिंह गढ़वाली ने सेना छोड़ने का मन बना लिया था. हालांकि ब्रिटिश सेना के अधिकारियों ने समझाने पर वो रुक गए थे और उन्हें कुछ समय का अवकाश दे दिया गया था. तभी चंद्र सिंह गढ़वाली महात्मा गांधी के संपर्क में आए थे. तब चंद्र सिंह गढ़वाली में देश भक्ति का जज्बा पैदा हो गया था. अंग्रेजों को ये रास नहीं आया और उन्होंने चंद्र सिंह गढ़वाली को खैबर दर्रा के पास भेज दिया था. उस समय तक चंद्र सिंह गढ़वाली मेजर हलवदार के पद पर पहुंच चुके थे.
आंदोलनकारियों पर गोली चलाने से गढ़वाली ने कर दिया था इंकार: उस समय पेशावर में स्वतंत्रता संग्राम की लौ पूरे जोरशोर से जल रही थी, जिसको अंग्रेज कुचलना चाहते थे. इस काम का जिम्मा अंग्रेजों ने मेजर हलवदार चंद्र सिंह गढ़वाली को दिया. 23 अप्रैल 1930 को अंग्रेजों ने चंद्र सिंह गढ़वाली को पेशावर भेजा. ब्रिटिश आर्मी के अधिकारियों ने चंद्र सिंह गढ़वाली को निहत्थे आंदोलनकारियों पर गोली चलाने का आदेश दिया, लेकिन चंद्र सिंह गढ़वाली ने निहत्थे आंदोलनकारियों पर गोली चलाने से साफ इंकार कर दिया, जिसे पेशावर कांड के नाम से जाना गया. इसी के बाद से चंद्र सिंह को चन्द्र सिंह गढ़वाली का नाम मिला और इनको पेशावर कांड का नायक माना जाने लगा.