देहरादून: उत्तराखंड के पर्वतीय जनपदों में हजारों लैंडस्लाइड जोन मौजूद हैं. कुछ क्षेत्र भूस्खलन के आकार और प्रभाव के लिहाज से बेहद संवेदनशील हैं तो कई पॉइंट्स हल्के लैंडस्लाइड वाले भी हैं. हाल ही में मानसून आते ही उत्तराखंड के कुछ जिलों से भूस्खलन की बेहद डराने वाली तस्वीर आई हैं. ये बड़े लैंडस्लाइड वाले इलाके थे जहां भूस्खलन से एक बड़ा इलाका प्रभावित रहता है. उत्तराखंड में भूस्खलन इतने बड़े पैमाने पर क्यों होता है? चमोली जिले का एक क्षेत्र अक्सर भूस्खलन की चपेट में क्यों दिखाई देता है? इसी को लेकर वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र विशेष पर भी शोध किया है.
साल 1930 में प्रोफेसर हेमन्स नेंसन ने पर्वतारोही के रूप में अपनी टीम के साथ चमोली जिले के एक बड़े इलाके का विस्तृत अध्ययन किया. इस दौरान उन्होंने इस इलाके की जयोलॉजी को बारीकी से देखा. यह इलाका पीपलकोटी से जोशीमठ और तपोवन तक का था, जिसे अपने अध्ययन के दौरान उन्होंने भूस्खलन के लिहाज से हाईली सेंसेटिव जोन मार्क किया. इसके अलावा प्रदेश में कुछ और इलाके भी ऐसे हैं लेकिन यह क्षेत्र सबसे ज्यादा सेंसटिव माना गया है.
इसी तरह 1985 में इस इलाके में लैंडस्लाइड को लेकर शोध करने वाले भू वैज्ञानिक एमपीएस बिष्ट भी यहां की जियोलॉजी को देखकर बेहद हैरान थे.. भू वैज्ञानिक एमपीएस बिष्ट कहते हैं इस क्षेत्र में करीब 50 से ज्यादा मेजर लैंडस्लाइड ज़ोन मौजूद हैं. इन लैंडस्लाइड ज़ोन का डाइमेंशन काफी बड़ा है. यहां होने वाले लैंडस्लाइड का प्रभाव भी बहुत ज्यादा होता है.
वैसे तो हिमालय में लगातार भूगर्भीय हलचल बनी रहती है. इसके कारण कई तरह की प्राकृतिक घटनाएं भी हिमालय क्षेत्र में देखने को मिलती हैं. यदि वैज्ञानिकों के शोध के बाद लैंडस्लाइड के लिए हाई सेंसिटिव ज़ोन माने जाने वाले चमोली जिले के इस इलाके को देखे तो यहां पर भूगर्भीय गतिविधियां बाकी क्षेत्र से काफी ज्यादा रिकॉर्ड की जाती हैं. भूवैज्ञानिकों का मानना है कि ये इलाका टेकटोनिक एक्टिविटीज के लिहाज से बेहद एक्टिव है. वैज्ञानिक इस क्षेत्र को मेन सेंट्रल थ्रस्ट के रूप में देखते हैं, यानी ऐसा क्षेत्र जहां हिमालय के भीतर इंडियन प्लेट में हलचल रहती है. इसके कारण इस इलाके में ऊर्जा का उत्सर्जन काफी ज्यादा होता है. जिसके कारण भूकंप जैसी घटनाएं भी अक्सर इस क्षेत्र के आसपास रिकॉर्ड की जाती हैं.