नई दिल्ली :कोई भी राजनीतिक दल अपने घोषणापत्र में जो वादे करता है, जिनमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वित्तीय सहायता दी जाती है, उसे उम्मीदवार का भ्रष्ट आचरण नहीं माना जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में एक याचिका खारिज कर दी.
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि अदालत ने रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री का ध्यानपूर्वक अध्ययन किया है और याचिकाकर्ता शशांक जे. श्रीधर का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील को भी काफी विस्तार से सुना है.
पीठ ने 17 मई को पारित एक आदेश में कहा, 'विद्वान वकील का यह तर्क कि किसी राजनीतिक दल द्वारा अपने घोषणापत्र में की गई प्रतिबद्धताएं, जो अंततः बड़े पैमाने पर जनता को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वित्तीय सहायता प्रदान करती हैं, उस पार्टी के उम्मीदवार द्वारा भ्रष्ट आचरण के समान होंगी, बहुत दूर की कौड़ी है और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता.' आदेश हाल ही में शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड किया गया.
शीर्ष अदालत ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि वह इस मामले में इस तरह के प्रश्न पर विस्तृत रूप से विचार करने के लिए उत्सुक नहीं है. कोर्ट ने कहा 'किसी भी मामले में, इन मामलों के तथ्यों और परिस्थितियों में, हमें इस तरह के प्रश्न पर विस्तृत रूप से विचार करने की आवश्यकता नहीं है. तदनुसार, अपीलें खारिज की जाती हैं.' हालांकि, पीठ ने कानून के प्रश्न को खुला रखा, जिस पर उचित मामले में निर्णय लिया जा सकता है.