नई दिल्ली: सैन्य सेवा के दौरान शहीद हुए एक सैनिक की विधवा को उदारीकृत पारिवारिक पेंशन के संबंध में न्यायालय में घसीटने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार के रवैये की अलोचना की. शीर्ष अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि निर्णय लेने वाले प्राधिकारी को सैनिक की विधवा के प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए थी.
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (एएफटी) के आदेश को चुनौती देने वाली अपील दायर करने के लिए केंद्र सरकार पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया. एएफटी ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद विरोधी पेट्रोलिंग के दौरान शहीद हुए एक सैनिक की विधवा को उदार पेंशन का आदेश दिया था.
पीठ ने कहा, "हमारे विचार में, इस तरह के मामले में प्रतिवादी को इस न्यायालय में नहीं घसीटा जाना चाहिए था, तथा अपीलकर्ताओं के निर्णय लेने वाले प्राधिकारी को सेवाकाल के दौरान जान गंवाने वाले शहीद सैनिक की विधवा के प्रति सहानुभूति दिखानी चाहिए थी. इसलिए, हम 50,000 रुपये का जुर्माना लगाने का प्रस्ताव करते हैं, जो आज से दो महीने की अवधि के भीतर प्रतिवादी (शहीद सैनिक की विधवा) को प्रदान किया जाएगा."
सुनवाई के दौरान, अतिरिक्त महाधिवक्ता विक्रमजीत बनर्जी ने बताया कि उदारीकृत पारिवारिक पेंशन (एलएफपी) का संचालन रक्षा मंत्रालय के निदेशक (पेंशन) द्वारा जारी 31 जनवरी 2001 के आदेश द्वारा होता है. उन्होंने इस तथ्य को अदालत के समक्ष रखा कि 31 जनवरी 2001 के आदेश के पैराग्राफ 4.1 की श्रेणी डी और ई में दर्ज परिस्थितियों में सशस्त्र बल कर्मियों की मृत्यु के मामले में एलएफपी प्रदान किया जाता है.