बालोद : छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में एक गांव की रहने वाली युवती ने अपने किसान पिता के सपनों को उड़ान दे दी. पिता चाहते थे कि बेटी पढ़ाई के बाद किसी अच्छे घर में शादी के बाद चली जाए.लेकिन बेटी ने भी ठान रखा था कि वो अपने पिता और परिवार के लिए कुछ ऐसा करेगी,जिससे एक दिन पूरे गांव को उस पर गर्व हो.आखिरकार वो दिन आ गया, जब बेटी कुछ बनकर वापस गांव में लौटी. गांव में कदम रखते ही हर कोई बेटी पर फूलों की बौछार कर उसका स्वागत कर रहा था.ये कहानी है जमरुवा गांव की वीणा साहू की, जिसने अपनी मेहनत और लगन से ये साबित किया कि परिस्थितियां कितनी भी मुश्किल भरी क्यों ना हो,यदि आपका संकल्प दृढ़ है तो आपको कामयाबी जरूरत मिलती है, चाहे राह कितनी भी कठिन क्यों न हो.
गांव की बेटी बनीं पहली नर्सिंग लेफ्टिनेंट :बालोद जिले के एक छोटे से गांव जमरूवा की रहने वाली वीणा साहू भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट नर्सिंग अफसर बनी हैं.वीणा ने नर्सिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद घर बैठने या छोटी जगह पर नौकरी करने के बजाए कुछ बड़ा करने की ठानी.इसी दौरान उसे पता चला कि भारतीय सेना में नर्सिंग की वैकेंसी निकली है.बस फिर क्या था वीणा ने दिन रात एक कर तैयारी की और पहले ही अटेम्प्ट में लेफ्टिनेंट के लिए सेलेक्ट हो गईं.वीणा साहू अब मिलिट्री हॉस्पिटल अंबाला में देश के जवानों और उनके परिजनों को स्वास्थ्य सेवाएं दे रही हैं.वीणा के मुताबिक उन्होंने पहले ही ठान लिया था कि कुछ करना है.
गांव में संसाधन सीमित होते हैं.लोगों के लिए ज्यादा बड़े सपने देखने का मौका नहीं होता.पहले मुझे नहीं पता था कि बीएससी नर्सिंग करके भी सेना में जाया जा सकता है.पिछले साल जनवरी में मैंने इसके लिए एग्जाम दिया था.जिसका रिजल्ट मार्च में आ गया.मेरा सेलेक्शन हुआ और ट्रेनिंग के बाद मैं अंबाला मिलिट्री हॉस्पिटल में सेवा दे रही हूं.मेरा समाज को यही संदेश है कि बेटियों को सिर्फ शादी करने तक ही सीमित नहीं रखे.उनके भी कुछ सपने होते हैं,उसे पूरा करने में मदद करें - वीणा साहू, नर्सिंग लेफ्टिनेंट
क्यों गांव की बेटियां रहती हैं पीछे :सेना में लेफ्टिनेंट बनने वाली वीणा साहू ने ईटीवी भारत को बताया कि आखिर क्यों गांवों आज भी मानसिकता नहीं बदली है. वीणा साहू की माने तो गांव में काफी स्ट्रगल है. गांव में ऐसा होता है कि लिमिटेड गांव में हम बड़े सपने नहीं देख पाते.या तो घर से सपोर्ट नहीं मिल पाता है बच्चों को या तो लोगों की सोच संकीर्ण होती जाती है.इसकी वजह से हम बड़ा नहीं सोच पाते हैं.और लड़कियों का एक बेसिक सी चीज रहती है कि जैसे ही उन्होंने अपनी बारहवीं की पढ़ाई पूरी की तो शादी कर दी जाती है.लेकिन ये सोच मेरी नहीं थी मेरा सपना था कि पढ़ाई पूरी करके शादी नहीं करना है.मुझे मेरे माता पिता गांव का नाम रोशन करना है.अपने गांव के लिए कुछ अच्छा करना है.इसलिए मैंने अपनी पढ़ाई के दौरान ही ये लक्ष्य निर्धारित किया था कि मुझे कुछ ऐसा करना है कि मेरा नाम तो हो ही साथ ही साथ माता पिता और गांव का भी मान बढ़े.