देहरादून: उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्यों में पर्यावरण बचाने के साथ ही जल को सुरक्षित रखना एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है. यही वजह है कि वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी पर्यावरण को संरक्षित करने पर जोर दे रहा है. इसके लिए वाडिया इंस्टीट्यूट कार्बन डाइऑक्साइड से ब्राउन हाइड्रोजन का उत्पादन करने के साथ ही तमाम अन्य उत्पाद निर्माण पर जोर दे रहा है. ऐसे में पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन में सरकारों और जनता की क्या भागीदारी होनी चाहिए? पर्वतीय क्षेत्रों में विकास की क्या अवधारणा हो? प्रदेश में मौजूद नेचुरल रिसोर्सेज का इस्तेमाल कर किस तरह से वैकल्पिक ऊर्जा पर किया जा सकता है, इन तमाम बिदुओं पर ईटीवी भारत ने वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक डॉ कालाचंद साईं से खास बातचीत की.
सवाल - उत्तराखंड के पहाड़ कमजोर बताए जाते रहे हैं, आखिर इसके पीछे की वजह क्या है?
जवाब- उत्तराखंड में हिमालय के कमजोर होने के कई कारण हैं. हिमालय की उत्पत्ति यूरेशियन और इंडियन प्लेट के बीच घर्षण से हुई है. अभी भी दोनों प्लटों के बीच घर्षण जारी है. इसके साथ ही पहाड़ों के अंदर हो रही हलचलों के चलते पहाड़ नाजुक बने हुए हैं. इसके अलावा पहाड़ों के टूटने, दरारें पड़ने और बारिश के साथ ही पर्यावरण पर भी बड़ा फर्क पड़ा है, जिसके चलते कुछ जगहों पर पहाड़ काफी संवेदनशील तो कुछ जगह पर अति संवेदनशील भी हैं.
सवाल- किसी भी चुनाव के दौरान विकास का मुद्दा काफी अहम रहता है, लेकिन पर्वतीय क्षेत्रों में विकास की असल अवधारणा क्या होनी चाहिए?
जवाब- पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की इच्छा रहती है कि उनके क्षेत्र का विकास हो. उत्तराखंड रीजन में तमाम नेचुरल रिसोर्स मौजूद हैं, जिनका बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है. लेकिन जो नेचुरल रिसोर्सेस मौजूद हैं, अगर उसका साइंटिफिक वे में इस्तेमाल करते हैं, तो बेहतर ढंग से विकास किया जा सकता है.
साथ ही उन्होंने कहा कि सड़क व्यवस्थित हो, टनल बने, रोपवे का निर्माण हो, माइक्रो इंडस्ट्री लगे, खेती हो, ऊर्जा के क्षेत्र में नए काम जैसी तमाम अपॉर्चुनिटी उत्तराखंड के पास हैं, जिस पर काम किया जाना चाहिए.
सवाल- उत्तराखंड राज्य पर्यावरण के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है. बावजूद इसके अभी तक ऐसा कोई रोड मैप नहीं बन पाया, जिसके जरिए पर्यावरण का संरक्षण और संवर्धन किया जा सके?
जवाब-क्लाइमेट चेंज बड़ी गंभीर समस्या बनी हुई है, जो लगातार पर्यावरण पर असर डाल रही है. ऐसे में जब भी सरकार पर्वतीय क्षेत्र के लिए कोई योजना या कोई प्रोजेक्ट तैयार करती है तो उसको धरातल पर उतरने से पहले जियोलॉजिकल और जिओ फिजिकल स्टडी करनी चाहिए. ताकि इसकी जानकारी मिल सके कि किस क्षेत्र में संबंधित प्रोजेक्ट को करना है या फिर कितने बड़े स्केल पर करना है. कुल मिलाकर प्रोजेक्ट को धरातल पर उतरने से पहले इंपैक्ट एसेसमेंट किया जाना चाहिए. अगर पर्वतीय क्षेत्रों पर विकास के कार्य करने हैं तो उन्हें बैलेंस वे में किया जाना चाहिए. ताकि क्षेत्र का विकास भी हो जाए और पर्यावरण को नुकसान भी ना हो.
सवाल- पर्यावरण के संरक्षण और संवर्धन में आम जनता की क्या भागीदारी होनी चाहिए?
जवाब- पर्यावरण के संरक्षण और संवर्धन के लिए सभी लोगों का एक बड़ा रोल होता है. लिहाजा आम जनता को वैज्ञानिकों की रिसर्च और पॉलिसियों की जानकारी दी जानी चाहिए, ताकि उन्हें यह पता चल सके कि क्या करना है और क्या नहीं करना है.
मुख्य रूप से अगर पर्वतीय क्षेत्रों पर रह रहे हैं तो हिमालय स्पेसिफिक गाइडलाइन को फॉलो किया जाना चाहिए. एक ही जगह पर कई मंजिला बिल्डिंग बनाने के बजाय सैटेलाइट टाउन की तरह पर्वतीय क्षेत्रों को विकसित करना चाहिए. साथ ही जंगल और पानी के महत्व के प्रति लोगों को जागरूक करना चाहिए. इसके साथ ही लोगों को इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि पर्वतीय क्षेत्रों पर फेंका गया प्लास्टिक पर्यावरण के लिए काफी नुकसानदायक है. इसके साथ ही बच्चों के सिलेबस में भी पर्यावरण, आपदा संबंधित टॉपिक को समाहित करने की जरूरत है.
सवाल- उत्तराखंड राज्य देश की आधी आबादी को शुद्ध हवा और पानी मुहैया कराता है, लेकिन प्रदेश के तमाम गांवों में पानी की किल्लत हो जाती है जिसकी मुख्य वजह यही है कि हमारे जब पारंपरिक स्रोत हैं वो सूखते जा रहे हैं, जिन्हें पुनर्जीवित करने को लेकर क्या पहल करने की जरूरत है?
जवाब- ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज की वजह से उत्तराखंड के ग्लेशियर पिघल रहे हैं. लिहाजा वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी इस ओर भी लगातार स्टडी कर रहा है. ताकि बारिश का पानी वेस्ट न होकर कर धरती के अंदर जाए, जिससे ग्राउंड वाटर का लेवल बढ़ सके.
यही नहीं प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में तमाम स्प्रिंग्स ऐसे हैं, जो डेड हो गए हैं. साथ ही कुछ डेड होने की कगार पर हैं. ऐसे में वाडिया इंस्टीट्यूट इस पर फोकस कर रहा है कि किस तरह से इन सभी स्प्रिंग्स को पुनर्जीवित किया जा सके.
सवाल- उत्तराखंड राज्य हर साल आपदा का दंश झेलता है. आपदा के दौरान बड़ी मात्रा में जान माल का नुकसान होता है, लेकिन अभी तक हम वह तकनीक डेवलप नहीं कर पाए हैं, जिससे आपदा का पूर्वानुमान लगाया जा सके?