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EXCLUSIVE: उत्तराखंड के तपोवन में क्यों नहीं लगाना चाहिए जियोथर्मल पावर प्लांट, जोशीमठ से जुड़ा है मामला, जानिए बड़ी वजह? - Uttarakhand Geothermal Energy

Tapovan Geothermal Power Plant राज्य सरकार प्रदेश में मौजूद जियोथर्मल स्प्रिंग से जियोथर्मल एनर्जी पर काम करना चाहती है. लेकिन तपोवन में जियोथर्मल प्लांट लगाने को वैज्ञानिक सही नहीं मान रहे हैं. जिससे सरकार की इस योजना पर यहां संशय के बादल मंडरा सकते हैं.

Joshimath will be in danger from Tapovan Geothermal Power Plant
तपोवन जियोथर्मल पावर प्लांट से होगा जोशीमठ को खतरा (फोटो-ईटीवी भारत)

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jun 17, 2024, 2:11 PM IST

जियोथर्मल पावर प्लांट से होगा जोशीमठ को खतरा (वीडियो-ईटीवी भारत)

देहरादून: उत्तराखंड सरकार वैकल्पिक ऊर्जा पर जोर दे रही है ताकि बिजली आपूर्ति को पूरा किया जा सके. मुख्य रूप से उत्तराखंड सरकार प्रदेश में मौजूद जियोथर्मल स्प्रिंग से जियोथर्मल एनर्जी उत्पन्न करना चाह रही है. मौजूदा समय में सरकार तपोवन में स्थित जियोथर्मल स्प्रिंग्स पर पावर प्लांट लगाने पर जोर दे रही है, लेकिन वैज्ञानिक तपोवन में जियोथर्मल प्लांट लगाना पर्यावरण और जोशीमठ शहर के लिहाज से सही नहीं बता रहे हैं.

यही नहीं, वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर तपोवन में जियोथर्मल पावर प्लांट लगाया जाता है तो उससे जोशीमठ शहर के लिए और अधिक खतरा पैदा हो सकता है, क्योंकि जियोथार्मल पावर प्लांट से न सिर्फ काफी अधिक शोर होता है बल्कि उससे कंपन भी काफी अधिक होता है, जबकि जोशीमठ शहर पहले ही काफी संवेदनशील है.

पहले जानते हैं क्या होती है जियोथर्मल एनर्जी: ईटीवी भारत से एक्सक्लूसिव बातचीत करते हुए देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक डॉ समीर तिवारी ने बताया कि जियोथर्मल दो ग्रीक शब्द- जियो और थर्मल से मिलकर बना है. जियो का मतलब है अर्थ और थर्मन का मतलब है एनर्जी, यानी जियोथर्मल का मतलब है धरती की एनर्जी. ऐसे में जब धरती की एनर्जी सतह पर दिखाई देती है तो उसे जियोथर्मल कहते हैं. हिमालय की उत्पत्ति टेक्टोनिक प्लेट की एक्टिविटी के चलते 55 मिलियन साल पहले हुआ थी. लिहाजा हिमालय में बहुत सारे फ्रेक्चर्स और फॉल्ट हैं, और आज भी इंडियन और यूरेशियन प्लेट के बीच घर्षण जारी है जिसके चलते भूकंप भी आते हैं. साथ ही प्लेटों के घर्षण से एनर्जी भी उत्पन्न होती है, जिससे भूगर्भ का तापमान बढ़ता है, जिसे जियोथर्मल ग्रीडियंट कहते हैं.

जियोथर्मल स्प्रिंग्स से निकलने वाला गर्म पानी (फाइल फोटो)

कैसे बनते हैं जियोथर्मल स्प्रिंग्स: हिमालय में जियोथर्मल ग्रीडियंट का तापमान करीब 60°C प्रति किलोमीटर है, यानी जब एक किलोमीटर तक ड्रिल किया जाएगा तो 60°C का तापमान मिलेगा. हिमालय के जिन क्षेत्रों में क्रैक या फॉल्ट है उसके जरिए पानी भूमि के अंदर जाता है और जियोथर्मल ग्रीडियंट साथ मिलकर गर्म हो जाता है, जिसके चलते वापस गर्म पानी बाहर निकलने लगता है, ये प्रक्रिया लगातार जारी है, जिसे जियोथर्मल स्प्रिंग्स कहते हैं. उत्तराखंड राज्य में 40 जियोथर्मल स्प्रिंग्स हैं जो भूगर्भीय ऊर्जा का एक अच्छा सोर्स है और जो प्रकृति का एक अनमोल तोहफा है.

उत्तराखंड में कुछ ही जगहों पर ही जियोथर्मल स्प्रिंग्स क्यों है इस सवाल पर वैज्ञानिक डॉ समीर तिवारी बताते हैं कि प्रदेश के हिमालयी क्षेत्रों में मौजूद ये जियोथर्मल स्प्रिंग्स बहुत पुराने हैं और टेक्टोनिक एक्टिविटी से बने हैं. उत्तराखंड के चारों धामों पर गौर करे तो धामों में समीप जियोथर्मल स्प्रिंग्स मौजूद हैं यानी इन जियोथर्मल स्प्रिंग्स के आसपास भी मंदिर इसलिए भी बनाए गए ताकि इन क्षेत्रों में पड़ने वाली ठंड से श्रद्धालुओं और तपस्वियों को ठंड में रहने की सुविधा मिल सके.

केदारनाथ धाम के समीप गौरीकुंड में जियोथर्मल स्प्रिंग्स है. गंगीत्री धाम में भी माना जाता है कि लिटिल आइस एज (1350-1850 ई.) के समय झाला के समीप जियोथर्मल स्प्रिंग्स का सोर्स था, जो गंगनानी में है. इसी तरह यमुनोत्री और बदरीनाथ धाम के समीप जियोथर्मल स्प्रिंग्स मौजूद हैं.

जियोथर्मल पावर प्लांट पर सेमिनार ((फोटो- डॉ समीर तिवारी))

जियोथर्मल स्प्रिंग्स से निकलने वाले गर्म पानी का कर सकते हैं बेहतर इस्तेमाल: डॉ समीर तिवारी बताते हैं कि जियोथर्मल स्प्रिंग्स से निकलने वाला गर्म पानी का मौजूदा समय में कोई इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है. ऐसे में अगर सरकार चाहे तो इस नेचुरल गर्म पानी का बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है. क्योंकि जहां जियोथर्मल स्प्रिंग्स मौजूद हैं उसके नीचे बसावट है. ऐसे में स्प्रिंग्स में ड्रिल करके स्थानीय लोगों को आसानी से गर्म पानी उपलब्ध कराया जा सकता है. जबकि वर्तमान समय में गर्म पानी निकलकर नदियों में चला जा रहा है. ऐसे में इस गर्म पानी का सदुपयोग किया जा सकता है.

वाडिया वैज्ञानिक के अध्ययन का आइसलैंड ने किया इस्तेमाल: समीर तिवारी ने बताया कि साल 2023 में उनका एक शोध पत्र जियोथर्मल रिन्यूएबल एनर्जी पब्लिश हुआ था, जिसमें उन्होंने बताया है कि जियोथर्मल स्प्रिंग्स में कितना ड्रिल करने पर मैक्सिमम तापमान मिल सकता है. अध्ययन के दौरान उन्होंने पाया था कि करीब एक से दो किलोमीटर तक ड्रिल करेंगे तो 100 से 110°C तक तापमान मिल सकता है. इस शोध पत्र को उन्होंने आइसलैंड दौरे के दौरान आइसलैंड के वैज्ञानिकों के सामने भी रखा था, जिसके बाद आइसलैंड वैज्ञानिकों ने इस रिसर्च का इस्तेमाल किया और इस अध्ययन के अनुरूप आइसलैंड में काम भी किया गया.

ओएनजीसी लद्दाख के पूगा में लगा रहा है एक मेगावाट का पायलट प्रोजेक्ट: समीर तिवारी ने बताया कि ओएनजीसी (Oil And Natural Gas Corporation Ltd.) और आइसलैंड ज्वाइंट वेंचर कर लद्दाख के चंगथांग में स्थित पूगा घाटी में मौजूद जियोथर्मल स्प्रिंग्स पर एक मेगावाट का पायलट प्रोजेक्ट बना रहा है. इसी तरह उत्तराखंड राज्य में मौजूद जियोथर्मल स्प्रिंग्स से एनर्जी उत्पन्न की जा सकती है, क्योंकि यहां इसकी बहुत संभावनाएं हैं. उन्होंने अपने अध्ययन में पाया कि उत्तराखंड में मौजूद कई जियोथर्मल स्प्रिंग्स से एनर्जी पैदा की जा सकती है, जिसमें कुमाऊं क्षेत्र के मुनस्यारी में मादकोट, सेराघाट समेत दो-तीन ऐसी जगह हैं जहां पर जियोथर्मल पावर प्लांट लगाया जा सकता है, जिससे करीब 5 से 10 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जा सकता है.

जियोथर्मल वैज्ञानिक डॉ. समीर तिवारी की रिसर्च ((फोटो- डॉ समीर तिवारी))

जियोथर्मल पावर प्लांट के लिए कुमाऊं रीजन सबसे अच्छा: वैज्ञानिक दृष्टि से कुमाऊं रीजन जियोथर्मल पावर प्लांट्स को लिए बेहतर माना जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि ये रीजन प्लेन हैं. ऐसे में इस क्षेत्र में पावर प्लांट लगाने की संभावना काफी अधिक हैं क्योंकि, जियोथर्मल स्प्रिंग एक सोर्स ऑफ एनर्जी है ऐसे में इसे अधिक ट्रैवल नहीं कराया जा सकता. जिस स्प्रिंग में जियोथर्मल पावर प्लांट के लिए ड्रिल करेंगे उससे ज्यादा दूर प्लांट नहीं लगाया जा सकता है. ऐसे में स्प्रिंग्स के लगभग 100 से 200 मीटर में ही प्लांट लगाना होगा. छोटा प्लांट लगाने के लिए करीब एक हजार से दो हजार मीटर जमीन की जरूरत पड़ती है. साथ ही जगह भी प्लेन होनी चाहिए क्योंकि टरबाइन के साथ ही अन्य तमाम मशीनें लगानी होती है. इसके साथ ही जब पावर प्लांट सक्रिय होगा तो उससे काफी अधिक ध्वनि उत्पन्न होने के साथ ही कंपन भी होगा. ऐसे में प्लांट वहीं लगा सकते है जिस क्षेत्र में सिंकिंग (धंसाव) का मुद्दा न हो.

क्या तपोवन में जियोथर्मल पावर प्लांट लगाना जोशीमठ के लिए खतरा? उत्तराखंड सरकार ओएनजीसी के साथ मिलकर जोशीमठ में पहला जियोथर्मल पावर प्लांट लगाने पर जोर दे रही है. इस पर समीर ने बताया कि तपोवन में मौजूद जियोथर्मल स्प्रिंग्स पर सबसे पहले काम जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने 1970 में किया था. इसके लिए इस संस्था ने स्प्रिंग्स में 400 मीटर ड्रिल भी किया था, जिस दौरान 89 से 90°C तापमान मिला था. इसके बाद इस संस्था ने भी विद्युत उत्पादन के लिए निर्णय लिया था. हालांकि, उस दौरान लो टेंपरेचर टरबाइन का इजाद नहीं हुआ था, लेकिन बाइनरी पावर प्लांट के लिए भी मिनिमम 100°C तापमान की जरूरत होती है, जिसके चलते ये प्लान सफल नहीं हो पाया.

जियोथर्मल वैज्ञानिक डॉ. समीर तिवारी की रिसर्च ((फोटो- डॉ समीर तिवारी))

ऐसे में अगर अब जोशीमठ में प्लांट लगाया जाता है तो जोशीमठ की लैंड और अधिक डिस्टर्ब होगी क्योंकि पहले से ही जोशीमठ शहर में सिंकिंग हो रही है. उन्होंने बताया कि आइसलैंड दौरे के दौरान उन्होंने आइसलैंड के वैज्ञानिकों से भी तपोवन की भौगोलिक परिस्थितियों को बताते हुए जियोथर्मल पावर प्लांट लगाने पर चर्चा किया था, जिस पर आइसलैंड के वैज्ञानिकों ने इसे सुरक्षित नहीं बताया था.

हिमालय में मौजूद स्प्रिंग्स से मैक्सिमम 130°C तापमान मिलने की है संभावना: आइसलैंड में क्रस्ट की गहराई करीब तीन किलोमीटर तक की है. यानी स्प्रिंग्स में करीब तीन से चार किलोमीटर तक ड्रिल करेंगे तो 400°C तापमान मिल जाएगा. इसके साथ ही आइसलैंड में 90 फीसदी ऊर्जा, जियोथर्मल स्प्रिंग्स पर पावर प्लांट लगाकर पैदा करते हैं, क्योंकि आइसलैंड में जियोथर्मल पावर प्लांट लगाकर बिजली का उत्पादन काफी सुलभ है. हिमालय की बात करें तो हिमालय में हाइड्रोइलेक्ट्रिक की बहुत संभावना है लेकिन प्रकृति ने जियोथर्मल स्प्रिंग्स भी दिया है. लेकिन हिमालय का क्षेत्र लो टेंपरेचर फील्ड है. ऐसे में ड्रिल करने पर मैक्सिमम 100 से 130°C तापमान ही मिलेगा. ऐसे में सिर्फ बाइनरी पावर प्लांट लगाया जा सकता है.

जियोथर्मल वैज्ञानिक डॉ. समीर तिवारी ((फोटो- डॉ समीर तिवारी))

जियोथर्मल स्प्रिंग्स के बेहतर इस्तेमाल के लिए अभी से संरक्षित करने की जरूरत: उत्तराखंड राज्य में 40 जियोथर्मल स्प्रिंग्स मौजूद हैं, उनको सबसे पहले संरक्षित करना चाहिए. क्योंकि तमाम ऐसे जियोथर्मल स्प्रिंग्स हैं जिसका अनैतिक तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है. वाडिया इंस्टीट्यूट में सभी 40 जियोथर्मल स्प्रिंग्स पर अध्ययन कर चुका है. ऐसे में वाडिया इसकी जानकारी दे सकता है कि किस जियोथर्मल स्प्रिंग्स का क्या बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है. पूरे हिमालय की बात करें तो हिमालय में करीब 340 जियोथर्मल स्प्रिंग्स हैं, जिसका इस्तेमाल करके 10 मेगावाट बिजली का उत्पादन नहीं किया जा सकता बल्कि इन स्प्रिंग्स पर 10 हजार मेगावाट तक का थर्मल पावर इस्तेमाल कर सकते हैं. यानी करीब 2000 मेगावाट बिजली आसानी से उत्पन्न की जा सकती है.

जियोथर्मल वैज्ञानिक डॉ. समीर तिवारी ने प्लांट को बताया उपयोगिता ((फोटो- डॉ समीर तिवारी))

UNESCO ने समीर को दिया आइसलैंड में फैलोशिप करने का मौका: वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के जियोथर्मल वैज्ञानिक डॉ समीर तिवारी पिछले 15 सालों से जियोथर्मल यूटिलाइजेशन पर काम कर रहे हैं. यही नहीं, इनके बेहतर रिसर्च के चलते ही साल 2023 में यूनेस्को ने फेलोशिप के लिए आइसलैंड भेजा था. जियोथर्मल यूटिलाइजेशन फील्ड पर काम करने वाले समीर तिवारी देश के सातवें ऐसे वैज्ञानिक बन गए हैं जिसको यूनेस्को से फेलोशिप मिली. इस बदौलत समीर ने 6 महीने तक आइसलैंड में जियोथर्मल यूटिलाइजेशन पर किया. डॉ समीर तिवारी 28 मई 2023 से 20 नवंबर 2023 तक आइसलैंड में रहकर जियोथर्मल यूटिलाइजेशन पर अध्ययन किया था.

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