नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को झारखंड सरकार की उस याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई, जिसमें बांग्लादेश से राज्य में अवैध प्रवास के आरोपों की जांच के लिए एक फैक्ट-फाइंडिंग कमेटी गठित करने के हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई है. कमेटी में केंद्र सरकार के अधिकारियों को भी शामिल किया गया है.
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने मामले की सुनवाई 8 नवंबर को निर्धारित की है. पीठ ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा दायर अपील एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाती है और अदालत को फाइलों की सावधानीपूर्वक जांच करने के लिए समय चाहिए.
राज्य सरकार के वकील ने जोर देकर कहा कि झारखंड सीमावर्ती राज्य नहीं है और अदालत का आदेश नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों में भाषणों का विषय बन गया है. राज्य ने शीर्ष अदालत में अपनी अपील में कहा कि तथ्य-खोजी समिति (Fact-Finding Committee) का गठन अवैध प्रवास के मुद्दे से निपटने की उसकी स्वायत्तता और शक्ति में हस्तक्षेप होगा.
शीर्ष अदालत ने झारखंड हाई कोर्ट के हस्तक्षेप पर सवाल उठाते हुए कहा कि राज्य सरकार के पास इस समस्या से निपटने के लिए कानून के तहत स्वतंत्र शक्तियां हैं.
राज्य सरकार का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पीठ से झारखंड हाई कोर्ट द्वारा पारित आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध किया.
झारखंड हाई कोर्ट ने सितंबर में केंद्र सरकार द्वारा दायर हलफनामे के आधार पर आदेश पारित किया था, जिसमें दावा किया गया था कि घुसपैठ होने का पता लगाया गया है.
केंद्र का दावा आंकड़ों पर आधारित नहीं...
राज्य सरकार ने केंद्र सरकार के दावों को चुनौती देते हुए कहा था कि यह दावा आंकड़ों पर आधारित नहीं है. सुनवाई के दौरान सिब्बल ने पूछा कि क्या हाई कोर्ट द्वारा पारित आदेश उसके समक्ष प्रस्तुत किसी ठोस डेटा पर आधारित है और आदेश पर रोक लगाने की मांग की. दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, पीठ ने इस सप्ताह के अंत में मामले की सुनवाई निर्धारित की.
छह जिलों में घुसपैठ का आरोप
उच्च न्यायालय ने दानयाल दानिश द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर आदेश पारित किया था, जिसमें गोड्डा, जामताड़ा, पाकुड़, दुमका, साहिबगंज और देवघर के छह जिलों में बड़े पैमाने पर अवैध प्रवास और घुसपैठ का आरोप लगाया गया था. राज्य सरकार द्वारा दायर अपील में तर्क दिया गया कि हाई कोर्ट का आदेश जमीनी स्तर पर वर्तमान स्थिति को नहीं दर्शाता, बल्कि यह वर्ष 1961 और 2011 से संबंधित जनसंख्या के आंकड़ों पर आधारित है.
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