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'मस्जिद में 'जय श्री राम' के नारे लगाना अपराध कैसे है', याचिका पर SC ने पूछा सवाल - JAI SHRI RAM SLOGAN INSIDE MOSQUE

सीनियर एडवोकेट कामत ने तर्क दिया कि हाई कोर्ट ने एफआईआर दर्ज होने के 20 दिनों के भीतर जांच पर रोक लगा दी थी.

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सुप्रीम कोर्ट (ANI)

By Sumit Saxena

Published : Dec 16, 2024, 4:32 PM IST

नई दिल्ली :सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जानना चाहा कि मस्जिद के अंदर 'जय श्री राम' का नारा लगाना कैसे अपराध है. हालांकि कोर्ट कर्नाटक हाई कोर्ट द्वारा 13 सितंबर, 2024 को पारित आदेश को चुनौती देने वाली याचिका की जांच करने के लिए सहमत हो गया, जिसमें नारा लगाने के लिए दो लोगों के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया गया था.

यह मामला न्यायमूर्ति पंकज मिथल और संदीप मेहता की पीठ के समक्ष आया. पीठ ने कहा कि वह शिकायतकर्ता हैदर अली सी एम द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी नहीं करेगी और उनके वकील वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत से कहा कि वह याचिका को राज्य के वकील को सौंप दें. पीठ ने मामले की अगली सुनवाई जनवरी में तय की है.

सुनवाई के दौरान कामत ने तर्क दिया कि हाई कोर्ट ने एफआईआर दर्ज होने के 20 दिनों के भीतर जांच पर रोक लगा दी थी. इस पर पीठ ने कहा, "आरोपी धार्मिक प्रार्थना कर रहे थे, क्या यह अपराध है?"

कामत ने दलील दी कि यह आईपीसी की धारा 153ए के तहत अपराध है. कामत ने जोर देकर कहा कि सवाल यह है कि क्या इस तरह की हरकत की अनुमति है? पीठ ने पूछा कि शिकायत किसने दर्ज कराई और आरोपियों की पहचान कैसे हुई? पीठ को बताया गया कि सीसीटीवी में आरोपी देखे गए थे. पीठ ने आगे पूछा कि अगर आरोपी आसपास पाए गए, तो क्या इसका मतलब है कि वे इसमें शामिल थे?

पीठ कर्नाटक में एक मस्जिद के अंदर ‘जय श्री राम’ के नारे लगाने के आरोपी दो लोगों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी.

हैदर अली ने अधिवक्ता जावेदुर रहमान के माध्यम से याचिका दायर कर दलील दी कि हाई कोर्ट का आदेश सुप्रीम कोर्ट के उन फैसलों के विपरीत है, जिसमें शिकायत/एफआईआर में प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराधों के होने का खुलासा होने पर जांच पूरी होने से पहले ही आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की निंदा की गई थी.

याचिका में कहा गया है, "हाई कोर्ट ने आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने में बहुत ही पांडित्यपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया है, जिसमें केवल इस बात की जांच की गई है कि एफआईआर में वर्णित अपराधों के तत्व मौजूद थे या नहीं."

याचिका में कहा गया है कि यह अत्यंत सम्मानपूर्वक प्रस्तुत किया गया है कि हाई कोर्ट द्वारा इस तरह की अनावश्यक और अनुचित टिप्पणियों से असामाजिक तत्वों को बढ़ावा मिलेगा, जो हाल के दिनों में देश भर में अल्पसंख्यकों पर भीड़ द्वारा हत्या और टॉरगेट हमलों जैसे जघन्य अपराधों को सही ठहराने के लिए इस तरह के धार्मिक और भक्तिपूर्ण मंत्रों का सहारा लेते देखे गए हैं.

याचिका में कहा गया है कि हाई कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणी कि 'जय श्रीराम' के नारे लगाने से किसी भी वर्ग की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंच सकती. वर्तमान मामले के तथ्यों में पूरी तरह से अनुचित है.

याचिका में कहा गया है, "हाई कोर्ट की यह टिप्पणी कि 'जय श्रीराम' के नारे लगाने से किसी भी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचेगी और इस घटना से किसी भी तरह की धार्मिक भावना को ठेस नहीं पहुंच सकती, अपने आप में यह दर्शाती है कि घटना के घटित होने से इनकार नहीं किया जा सकता, कम से कम इस स्तर पर तो नहीं."

यह मामला सितंबर 2023 में दक्षिण कन्नड़ के बदरिया जुमा मस्जिद में हुई घटना से जुड़ा है, जहां कथित तौर पर दो लोगों ने मस्जिद परिसर में प्रवेश किया और ‘जय श्री राम’ का नारा लगाया. यह दावा किया गया है कि उन्होंने मुस्लिम समुदाय के सदस्यों को धमकाते हुए कहा कि वे “बेयरी (या बयारी, एक मुस्लिम समुदाय) को शांति से रहने नहीं देंगे.” भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 447, 295ए, 505 और 506 के तहत एक प्राथमिकी दर्ज की गई, जिसमें आपराधिक अतिचार, धार्मिक भावनाओं का जानबूझकर अपमान, सार्वजनिक उपद्रव और आपराधिक धमकी जैसे आरोप शामिल हैं.

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