सागर।कभी आपने सुना है कि मंदिर में ब्राह्मण पूजा पाठ नहीं करवा सकता. शायद नहीं लेकिन हम आपको ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताएंगे जहां ब्राह्मण नहीं आदिवासी ही पूजा-पाठ करवा सकता है. अगर ऐसा नहीं किया तो कई अनहोनी हो जाती हैं. बुंदेलखंड के एक आदिवासी गांव में जंगल के बीच माता का ऐसा ही मंदिर है जिसकी पूजा सिर्फ आदिवासी पुजारी कर सकता है. इस परंपरा पर सवाल उठाते हुए मंदिर में ब्राह्मण पुजारी की नियुक्ति भी की जा चुकी है लेकिन उनके साथ कुछ ऐसा हुआ कि वह यहां से चले गए. वहीं दूसरी तरफ माता भक्तों की संतान प्राप्ति की मनोकामना पूरी करती हैं. सुबह माता को जंगल में मिलने वाली चिरौंजी का भोग लगाया जाता है तो संध्या आरती के बाद बेसन के लड्डू का भोग लगाया जाता है. माता के भक्त मध्य प्रदेश और देश में दूर-दूर तक फैले हुए हैं.
घने जंगल के बीच है झारखंडन माता का मंदिर
नेशनल हाईवे 44 पर स्थित देवरी विकासखंड के हथखोह गांव में जंगल के बीच झारखंडन माता का मंदिर है. माता के मंदिर की महिमा ऐसी है कि मध्य प्रदेश और देश के दूर-दूर से लोग यहां दर्शन करने पहुंचते हैं. स्थानीय लोग कोई भी मंगल या शुभ कार्य बिना माता की पूजा के शुरू नहीं करते हैं. चैत्र नवरात्रि के अवसर पर यहां विशाल मेला भरता है और मां की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. नवरात्रि के मेले में दूर-दूर से आने वाले लोगों को स्थानीय पंचायत द्वारा विशेष इंतजाम किए जाते हैं.
माता की पूजा नहीं करता ब्राह्मण पुजारी
घने जंगल के बीच आदिवासी गांव में बने मंदिर की एक अनोखी परंपरा है. मंदिर में माता की पूजा-अर्चना कोई ब्राह्मण पुजारी नहीं करता, बल्कि आदिवासी पुजारी ही माता की पूजा कर सकता है. कई सालों पहले इस परंपरा को लेकर विवाद हुआ और सभी की सहमति से मंदिर में ब्राह्मण पुजारी की नियुक्ति की गयी. पुजारी अपनी पत्नी के साथ मंदिर में रहकर माता की पूजा करने लगे लेकिन एक अमावस्या की रात पुजारी और उनकी पत्नी के साथ अनहोनी घट गयी. जब सुबह गांव के लोगों ने जाकर देखा तो पंडित और उनकी पत्नी घायल अवस्था में मंदिर में पड़े हुए थे. किसने उन पर हमला किया और क्यों किया, इसकी जानकारी उन्हें नहीं थी. स्थानीय लोग कहते हैं कि मंदिर की परंपरा बदले के जाने के कारण पुजारी जी को माता ने दंड दिया था. इस घटना के बाद फिर से मंदिर में आदिवासी पुजारी की नियुक्ति की गई और अब आदिवासी पुजारी ही माता की पूजा अर्चना करते हैं.
निसंतान दंपति की मन्नत होती है पूरी
कहा जाता है कि कोई भी निसंतान दंपति अगर सच्चे मन से मां से संतान प्राप्ति की कामना करें, तो इच्छा जरुर पूरी होती है और संतान के रूप में माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इसके लिए दंपति को मंदिर पहुंचकर माता की पूजा के बाद मंदिर के पीछे की दीवार पर हाथ का उल्टा छाप लगाना होता है. इस प्रक्रिया के बाद माता इच्छुक दंपतियों को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद देती हैं और संतान प्राप्ति होने के बाद मंदिर पहुंचकर विशेष रूप से सीधा हाथ का छापा लगाना होता है. ऐसा न करने पर माता कुपित हो जाती हैं और संतान के लिए कई तरह की समस्याएं होती हैं.