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'आरक्षण विरोधी है सरकार', RJD का संसद में हंगामा, 65 फीसदी रिजर्वेशन कोटे को 9वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग - RJD protests in Parliament - RJD PROTESTS IN PARLIAMENT

RJD Protests In Parliament: 65 फीसदी आरक्षण वाले कानून को लेकर बिहार सरकार को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा और कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. इसके बावजूद विपक्ष इस मुद्दे को लेकर हंगामा कर रहा है. आरजेडी के सांसदों ने संसद में इसे 9वीं सूची में शामिल करने की मांग को लेकर मोर्चा खोल दिया है. वहीं मनोज झा ने केंद्र सरकार को आरक्षण विरोधी करार देते हुए जमकर हमला किया.

RJD का संसद में हंगामा
RJD का संसद में हंगामा (Photo Credit: ETV Bharat)

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Aug 1, 2024, 12:54 PM IST

RJD का संसद में हंगामा (Video Credit: ETV Bharat)

पटना:बिहार में65 प्रतिशत आरक्षणको भारतीय संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर आरजेडी सांसदों ने गुरुवार को संसद में विरोध प्रदर्शन किया. RJD सांसद मीसा भारती ने कहा, सरकार बढ़ाए गए आरक्षण कोटे को 9वीं अनुसूची में शामिल करें ताकि दलितों, आदिवासियों, अतिपिछड़ों को उनका अधिकार मिल सके.

आरक्षण की मांग को लेकर RJD का संसद में हंगामा: आरजेडी सांसद मीसा भारती ने कहा, 'हम इसलिए प्रदर्शन कर रहे हैं क्योंकि जब बिहार में महागठबंधन की सरकार थी, तब नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव और लालू यादव ने जातीय जनगणना की मांग की थी. आरजेडी सांसद संजय यादव कहते हैं, "बिहार में तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन सरकार ने जाति आधारित सर्वेक्षण कराया था. हमने संख्या को देखते हुए आरक्षण को 65% तक बढ़ाया.

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"बिहार में जातीय जनगणना हुई, हम चाहते हैं कि उसके अनुपात में हमने दलितों, आदिवासियों, अतिपिछड़ों का जो आरक्षण बढ़ाया था उसे सुरक्षा मिले. सरकार उसे 9वीं अनुसूची में शामिल करें ताकि उनका अधिकार उन्हें मिल सके."- मीसा भारती, आरजेडी सांसद

"प्रस्ताव को दिसंबर 2023 को केंद्र सरकार को भेजा गया, 7-8 महीने हो गए हैं. यह डबल इंजन की सरकार है.अब केंद्र सरकार कह रही है कि यह मामला संविधान के प्रावधानों के अनुसार राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है'.डबल इंजन सरकार को जवाब देना चाहिए."-संजय यादव,आरजेडी सांसद

मनोज झा ने क्या कहा?:वहीं RJD सांसद मनोज झा ने कहा कि हमारी मांग बिल्कुल सहज और सरल है. बिहार में जब तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार साथ थे तो सामाजिक न्याय बलवती हुआ और 65 प्रतिशत आरक्षण कोटा बढ़ाया गया. तेजस्वी कैबिनट से पास करके इसे केंद्र के पास भेजा गया कि नौवीं अनुसूची में इसे शामिल किया जाए.

"हालात ये हैं कि कल मैंने जब एक सवाल पूछा तो केंद्र की सरकार कहती है कि ये राज्य का मामला है. कोई एक झूठ बोल रहा है. आप (मोदी सरकार) सामाजिक न्याय के विरोधी हैं. जातिगत जनगणना के विरोध हैं, आरक्षण के विरोधी हैं. इसलिए हमारा ये विरोध है.- "- मनोज झा, आरजेडी सांसद

महागठबंधन की सरकार का था फैसला: बता दें कि बिहार में पिछले साल जाति गणना रिपोर्ट के बाद राज्य की तत्कालीन महागठबंधन सरकार ने ओबीसी, एससी और एससी-एसटी वर्गों के आरक्षण को बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने की घोषणा की थी. साथ ही इसे नौवीं अनुसूची में शामिल करने की केंद्र सरकार से मांग की थी. बाद में नीतीश कुमार महागठबंधन से अलग हो गए और एनडीए में वापसी कर गए.

सुप्रीम कोर्ट से भी झटका: वहीं बिहार में बढ़ाए गए आरक्षण पर पहले पटना हाईकोर्ट ने रोक लगा दी. अब 29 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने भी बिहार सरकार को झटका देते हुए पटना हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. वहीं केंद्र सरकार ने भी इस आरक्षण कोटे को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल नहीं किया है.

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तमिलनाडु में 69% रिजर्वेशन: तमिलनाडु में 69% आरक्षण लागू है और उसके बारे में कहा जाता है कि उसे भी नौवीं अनुसूची में शामिल किया गया है. तमिलनाडु की तरह ही बिहार सरकार भी चाहती है कि यहां के कानून को नौवीं अनुसूची में शामिल किया जाए जिससे न्यायालय में उसे चुनौती नहीं दी जा सके.

किस वर्ग को कितना आरक्षण?:अत्यंत पिछड़ा के लिए 18 प्रतिशत से बढ़ाकर इसे 25 प्रतिशत किया. वहीं ओबीसी को 12 से 18 प्रतिशत, अनुसूचित जाति को 16 से 20. अनुसूचित जनजाति को एक से 2 प्रतिशत किया गया है. बढ़ा हुआ आरक्षण प्रदेश में लागू हो गया था, लेकिन पटना हाईकोर्ट के फैसले के बाद फिर से अत्यंत पिछड़ा वर्ग के लिए 18 प्रतिशत, ओबीसी के लिए 12 फीसदी, अनुसूचित जाति के लिए 16 प्रतिशत, अनुसूचित जाति को 16 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति के लिए एक प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था लागू हो जाएगी.

क्या है नौवीं अनुसूची?: संविधान की नौवीं अनुसूची में केंद्रीय और राज्य कानून की एक सूची है, जिनहें अदालत में चुनौती नहीं दा जा सकती है. वर्तमान में संविधान की नौवीं अनुसूची में कुल 284 कानून हैं, जिन्हें न्यायिक समीक्षा संरक्षण प्राप्त है. इन्हें अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है.

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