नई दिल्ली: प्रधानमंत्री ने हाल ही में नवीन पटनायक के नेतृत्व वाली बीजू जनता दल (BJD) सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि पुरी में भगवान जगन्नाथ का मंदिर भी इस सरकार के हाथों में सुरक्षित नहीं है. इस दौरान उन्होंने गायब चाबियों पर चिंता व्यक्त की, जिनका पिछले छह साल से कोई अता-पता नहीं है. इतना ही नहीं पीएम ने कहा कि यह अफवाह है कि चाबियां तमिलनाडु ले जाई गई हैं.
इसके साथ ही बीजेपी के नेताओं इस मुद्दे को लेकर नवीन पटनायक सरकार पर हमलावर हो गए. वहीं, इस संबंध में बीजू जनता दल ने यह कहकर अपना बचाव किया कि जुलाई में रथ यात्रा के दौरान रत्न भंडार खोला जाएगा. पार्टी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर जज की अध्यक्षता में एक समिति वर्तमान में मंदिर के खजाने को फिर से खोलने पर काम कर रही है.
कब खुला जगन्नाथ मंदिर का रत्न भंडार
पिछली शताब्दी में जगन्नाथ मंदिर का रत्न भंडार केवल चार बार खोला गया है. इसे 1984, 1978, 1926 और 1905 में खोला गया था. इसके बाद 4 अप्रैल 2018 को सरकार ने भौतिक परीक्षण के लिए रत्न भंडार को फिर से खोलने का प्रयास किया, लेकिन सफलता नहीं मिली.
कहां गायब हैं चाबियां?
इससे पहले हाई कोर्ट के आदेश पर 16 सदस्यीय टीम ने रत्न भंडार की स्थिति की जांच के लिए इसमें प्रवेश किया. हालांकि, चाबियां नहीं मिलने के कारण उन्हें सर्चलाइट का उपयोग करके लोहे की ग्रिल के बाहर से इसके आंतरिक कक्षों का निरीक्षण करना पड़ा. पीटीआई ने सूत्रों के हवाले से बताया कि विभिन्न आयरन चेस्टों और बैंक लॉकरों की गहन तलाशी के बावजूद चाबियां नहीं मिलीं.
सार्वजनिक आक्रोश के चलते ओडिशा सरकार ने गायब चाबियों की तलाश के लिए उड़ीसा हाई कोर्ट के रिटायर जज रघुबीर दाश के तहत एक जांच आयोग नियुक्त किया. ओडिशा हाई कोर्ट के निर्देश के बाद इस साल की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज अरिजीत पशायत के अंतर्गत एक और पैनल का गठन किया गया था. हाई कोर्ट ने कहा कि पैनल रत्न भंडार में संग्रहीत आभूषणों सहित कीमती सामानों की सूची की प्रक्रिया की निगरानी करेगा.
जगनाथ मंदिर के 'रत्न भंडार' में क्या है?
श्री जगन्नाथ मंदिर नियम 1960 में कहा गया है कि रत्न भंडार के अंदर के आभूषणों का हर छह महीने में ऑडिट किया जाना चाहिए. नियम निर्दिष्ट करते हैं कि आभूषणों के लिए कौन जिम्मेदार है, ऑडिट कैसे किया जाना चाहिए और चाबियां किसके पास रहेंगी.
12वीं सदी के मंदिर की प्रथाओं और नियम पुस्तिका के अनुसार, आभूषणों को रत्न भंडार के इनर चैंबर में रखा जाता है, जिसे दो तालों से सील कर दिया जाता है. ये ताले केवल राज्य सरकार की विशेष अनुमति से ही खोले जा सकते हैं और चाबियां मंदिर प्रशासन को सरकारी खजाने में जमा करानी होती हैं.
त्योहारों के दौरान उपयोग किए जाने वाले आभूषणों वाले चैंबप को भी दो तालों से सुरक्षित किया जाता है. इसकी एक चाबी एसजेटीए मुख्य प्रशासक के पास होती है, और दूसरी मंदिर के मामलों के लिए जिम्मेदार अधिकारी पट्टाजोशी महापात्र के पास होती है. दैनिक अनुष्ठानों में उपयोग किए जाने वाले आभूषणों वाले कक्ष की चाबियां देवताओं के आभूषण और कपड़ों की देखभाल करने वाले भंडार मेकप के पास होती हैं.
रत्न भंडार में कितने आभूषण?
1978 के एक सर्वे का हवाला देते हुए ओडिशा सरकार ने कहा था कि रत्न भंडार में 149 किलोग्राम से अधिक सोने के गहने और 258 किलोग्राम चांदी के बर्तन थे. ओडिशा के तत्कालीन कानून मंत्री प्रताप जेना ने बताया कि रत्न भंडार के आंतरिक और बाहरी दोनों कक्ष खोले गए, और वहां संग्रहीत वस्तुओं की गिनती 15 मई, 1978 और 23 जुलाई, 1978 के बीच की गई थी. मंदिर प्रशासन ने इन वस्तुओं की एक सूची तैयार की .
जेना ने दावा किया कि रत्न भंडार में 12,831 भारी (एक भारी 11.66 ग्राम के बराबर) सोने के आभूषण थे, जिनमें कीमती पत्थर जड़े हुए थे. साथ ही 22,153 भारी चांदी के बर्तन और अन्य सामान थे. हालांकि, इन वस्तुओं के मूल्यांकन का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं था. इसके अलावा सोने और चांदी की 14 वस्तुओं का वजन उस समय नहीं किया जा सका और उन्हें 1978 की सूची में शामिल नहीं किया गया.
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