लखनऊ: भले ही केंद्र और प्रदेश की सरकारों में सत्तारूढ़ भाजपा परिवारवाद को चुनावी मुद्दा बनाती रही हो, लेकिन उत्तर प्रदेश में परिवारवाद की राजनीति खूब फल-फूल रही है. कई नेताओं और नौकरशाहों की नई पीढ़ियां राजनीति में आ चुकी हैं और जीत की ख्वाहिश से बेकरार हैं. एनडीए के सहयोगी दल भी अपनी पीढ़ियों को राजनीति में मुकाम दिलाने के लिए जी-जान से लगे हुए हैं.
यह बात और है कि मुख्य विपक्षी दल सपा पर परिवारवाद की राजनीति के खूब आरोप लगते हैं. सैफई कुनबे के चार नेता लोकसभा चुनाव मैदान में हैं, तो वहीं भाजपा के सहयोगी अपना दल, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और निषाद पार्टी भी इसी डगर चल पड़े हैं. यदि सपाई कुनबे की बात करें, तो सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के परिवार से चार प्रत्याशी मैदान में हैं. मैनपुरी से मुलायम सिंह यादव की बहू डिंपल यादव, फिरोजाबाद से अखिलेश यादव के चचेरे भाई अक्षय यादव, आजमगढ़ से मुलायम के भतीजे धर्मेंद्र यादव और बदायूं से मुलायम के भाई शिवपाल यादव के पुत्र आदित्य यादव के नाम शामिल हैं.
वहीं कुर्मी नेता रहे सोनेलाल पटेल का परिवार भी दो धड़ों में बटकर राजनीति में सक्रिय है. अपना दल (कमेरावादी) की अध्यक्ष कृष्णा पटेल और उनकी पुत्री पल्लवी पटेल भी चुनाव लड़ने का एलान कर चुकी हैं. हालांकि उन्होंने अभी सीटों की घोषणा नहीं की है, लेकिन यह तय माना जा रहा है कि वह पूर्वांचल की किसी सीट से मैदान में उतरेंगी. सोनेलाल पटेल की छोटी बेटी और अपना दल (सोनेलाल) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल भी मिर्जापुर से चुनाव मैदान में हैं. उनके पति आशीष पटेल राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं.
अनुप्रिया पटेल भी मोदी सरकार के दोनों कार्यकाल में केंद्रीय राज्य मंत्री के पद पर रही हैं. यदि वह चुनाव जीतती हैं, तो यह उनकी तीसरी पारी होगी. भाजपा के एक और सहयोगी दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर, जो प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री भी हैं, ने अपने बेटे अरविंद राजभर मऊ जिले की घोसी संसदीय सीट से प्रत्याशी बनाया है. वह पिछले पांच साल से भी अधिक समय से अपने बेटों के भविष्य को लेकर खासा चिंतित थे. इसी कारण उन्होंने पहले भाजपा का साथ छोड़ा. फिर सपा के साथ आए. सपा में बेटे का भविष्य न देख दोबारा भाजपा में लौट आए और अंतत: भाजपा ने उनकी इच्छा भी पूरी कर दी.