पलामू: लोकसभा चुनाव को लेकर झारखंड-बिहार सीमा पर नक्सलियों के खिलाफ कई स्तर पर अभियान चलाया जा रहा है. पलामू से सटे हुए बिहार के गया और औरंगाबाद में पहले चरण में ही वोटिंग होनी है. जबकि पलामू में 13 मई को वोटिंग होना है. झारखंड बिहार सीमावर्ती इलाका अति नक्सल प्रभावित माना जाता है. इन इलाकों में वोटिंग कराना एक बड़ी चुनौती होती है.
हालांकि पिछले पांच वर्षों में झारखंड बिहार सीमावर्ती इलाके में माओवादियों की संख्या बेहद ही काम हो गई है और उनके कई टॉप कमांडर मारे गए हैं या पकड़े गए हैं. लोकसभा चुनाव को लेकर एक बार फिर से इलाके में पुलिस एवं सुरक्षा बलों ने कई स्तर पर योजना को तैयार किया है. नक्सलियों के संभावित ठिकानों को झारखंड और बिहार की पुलिस ने मिलकर चिन्हित किया है. दोनों राज्यों की पुलिस ने ऐसे इलाकों को भी चिन्हित किया है जिसे माओवादी चुनाव के दौरान अपनी गतिविधि का इस्तेमाल कर सकते हैं. जिस इलाके को चिन्हित किया गया है वह माओवादियों का यूनिफाइड कमांड रहा छकरबंधा से सटा हुआ है.
कौन-कौन से इलाके को किया गया है चिन्हित और कैसा है इलाका
पलामू और बिहार के औरंगाबाद सीमा पर छूछिया, दुलारे, लंगूराही, करामलेवा, परसलेवा, शिकारपुर, कोठिला, कुल्हिया, पिथौरा, टंडवा पलामू और बिहार के गया सीमा पर सुवरा पहाड़, अकौनी, हुरमेठ, चौवा चट्टान, पनवा टांड, नवीगढ़, पलामू , चतरा और बिहार के गया सीमा पर चिनिया पहाड़, बांका पहाड़, पकड़ी, रहिया, अनगड़ा, करमा, झांती के जंगल शामिल है. यह पूरा इलाका अति नक्सल प्रभावित है और माओवादियों का रेड कॉरिडोर माना जाता है. यह माओवादियों का बिहार का छकरबंधा, बूढ़ापहाड़ और सारंडा कॉरिडोर का हिस्सा है.
150 किलोमीटर अधिक लंबा है सीमा, हो चुके है कई बड़े हमले
पलामू और चतरा का बिहार से सटा हुआ सीमावर्ती इलाका करीब 150 किलोमीटर लंबा है. 2009 के बाद से इस इलाके में विभिन्न चुनाव में कई बड़े नक्सली हमले हुए हैं. 2000 के बाद से इस इलाके में माओवादियों ने 70 से भी अधिक सरकारी भवनों को विस्फोट कर उड़ाया है. जबकि कई पुलिस के जवान भी शहीद हुए है.