देहरादून/हरिद्वार: कांवड़ यात्रा 2024 के तहत उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश की सरकार ने आदेश दिया कि कांवड़ यात्रा मार्ग पर आने वाले व्यापारी अपनी पहचान सार्वजनिक करेंगे. सरकार ने तर्क दिया कि पहचान बताने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए. यह लोगों की आस्था, सुरक्षा और विवाद से जुड़ा मुद्दा है, इसलिए जरूरी है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश को ये कहते हुए पलट दिया कि व्यापारी का नाम लिखना जरूरी नहीं है. बल्कि भोजन या खाद्य सामग्री की विशेषता बतानी होगी.
सरकार के इस आदेश को एक तरफ हिंदू-मुस्लिम से जोड़कर खूब बल दिया गया. सोशल मीडिया से लेकर राजनीति तक लोगों ने आदेश पर जमकर प्रतिक्रिया दी. कुछ लोगों ने आदेश का समर्थन किया. जबकि कुछ लोग इसे हिंदू-मुस्लिम के बीच विवाद उत्पन्न करने का जरिया बताते रहे. सवाल ये भी उठा कि आखिर सरकार ने ये आदेश किस मंशा से जारी किया. खैर सरकार के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी है. इसके साथ ही लोगों के बीच फैला भ्रम भी खत्म हो गया है.
हिंदू-मुस्लिम की गंगा: भारत देश की खूबसूरती का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि गंगा जब गोमुख से निकलती है तो हरिद्वार और ऋषिकेश जैसे बड़े धार्मिक स्थलों पर हिंदुओं की आस्था का प्रतीक बनती है. हरिद्वार से निकलकर गंगा पिरान कलियर में जाती है तो मुस्लिम समाज के लोग इसी गंगा से वजू करते हैं. यानी एक गंगा कई समुदायों को अपने दामन में समेटे हुए है. वह बात अलग है कि कुछ लोग हिंदू-मुस्लिम करके विवाद खड़ा करना चाहते हैं. अगर उन लोगों को कौमी एकता की मिसाल देखनी है तो उन्हें कांवड़ मेला जरूर देखना चाहिए.
मुस्लिम समाज करता है कांवड़ मेला का इंतजार: कांवड़ यात्रा में कंधे पर कांवड़ रखकर चलने वाले शिव भक्तों की संख्या बेहद अधिक होती है. यात्रा के दौरान अलग-अलग प्रकार की कांवड़ जिसमें भागम भाग कांवड़, डाक कांवड़ आदि कांवड़ियों की संख्या सबसे अधिक रहती है. एक अनुमान के मुताबिक, हरिद्वार में लगभग सावन के महीने में 40 लाख से अधिक कंधे वाली कांवड़ बेची जाती है. जिसकी कीमत हर साल बढ़ रही है.
जानें दस सालों में कितने बढ़े कांवड़ के दाम:आज से लगभग 10 साल पहले छोटी से छोटी कांवड़ की कीमत 500 रुपए हुआ करती थी. लेकिन अब वही कांवड़ लगभग 1200 से 1300 रुपए में मिल रही है. हरिद्वार के ज्वालापुर, बहादराबाद, लक्सर समेत कई जगहों पर मुस्लिम समाज का एक बड़ा तबका कांवड़ बनाता है. सालों से मुस्लिम समाज के परिवार जिसमें बुजुर्ग, बच्चे, महिलाएं सभी इस कांवड़ यात्रा का बेसब्री से इंतजार करते हैं.
कई सालों से कांवड़ बना रहे मुस्लिम परिवार:हरिद्वार के कांवड़ मेले में कांवड़ का बाजार बेहद बड़ा है. करोड़ों रुपए का रोजगार इस मेले में होता है. टोलियों में 20 और 30 की संख्या में आने वाले शिव भक्ति हरिद्वार में दो से तीन दिन बिताते हैं. ऐसा नहीं है कि मुस्लिम समाज के लोग दो-चार साल से ही इस काम को कर रहे हैं. बल्कि कई मुस्लिम समाज के लोग 30 से 40 साल से कांवड़ बना रहे हैं.
कांवड़ मेले का रहता है बेसब्री से इंतजार:कांवड़ बनाने वाले सिकंदर लगभग 35 साल से कांवड़ मेले के लिए कांवड़ बना रहे हैं. उनके पास मुस्लिम कारीगर के अलावा हिंदू कारिगर भी हैं, जो कांवड़ बनाने का काम करते हैं. उनके साथ काम करने वाले मोहम्मद आमिर खान कहते हैं, मुझे यह काम करते हुए कई साल हो गए हैं. कांवड़ मेले का बेसब्री से इंतजार करते हैं. हमें अच्छा लगता है कि करोड़ों की संख्या में शिवभक्त हरिद्वार आते हैं. यह सभी हमारे भाई हैं और मुझे यह काम करके सुकून और तसल्ली मिलती है.
मोहम्मद सिकंदर की इस बात ने जीत लिया दिल: हरिद्वार के ही रहने वाले मोहम्मद सिकंदर पिछले 35 साल से कांवड़ बनाने का काम कर रहे हैं. उनके बड़े बुजुर्ग भी कांवड़ बनाने का काम करते थे. सिकंदर बताते हैं कि हमारा कांवड़ बनाने का काम रमजान से ही शुरू हो जाता है. हम रोजा रखते हैं और कांवड़ बनाते हैं. क्योंकि रमजान से ही सावन का महीना बहुत नजदीक रह जाता है. ऐसे में हमें अपने घरों को ही गोदाम बनाना पड़ता है. हम अपने घरों के अंदर कांवड़ को रखते हैं और खुद बाहर सोते हैं. क्योंकि यह आस्था की बात है. इसमें भगवान शिव और अन्य भगवानों की मूर्ति तस्वीर लगती है. हम नहीं चाहते कि इन्हें बाहर रखा जाए. हमें यह काम करके बहुत अच्छा लगता है.