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देश में चांद पर पहुंचने की हो रही कोशिश, उत्तराखंड में आज भी कंधे पर अस्पताल पहुंच रहे मरीज - Patients Carry On Dandi Kandi

Villagers Problems in Uttarakhand उत्तराखंड ने भले ही इन 24 सालों में 10 मुख्यमंत्रियों के चेहरे देख लिए हों, लेकिन आज भी पहाड़ों की तस्वीर नहीं बदल पाई है. आज भी ग्रामीण अंचलों में लोग मूलभूत सुविधाओं के अभाव से जूझ रहे हैं. आए दिन कहीं न कहीं से ऐसी तस्वीरें सामने आ जाती है, जो दावों की पोल खोलने के साथ ही कई सवालिया निशान छोड़ जाती है. जिनमें सबसे बेबसी और दर्द भरी तस्वीरें कंधों पर लदे मरीजों या घायलों की होती है.

Bad Health System Uttarakhand
पहाड़ के लोगों का दर्द (फोटो- ETV Bharat GFX)

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Sep 26, 2024, 7:38 PM IST

Updated : Sep 26, 2024, 10:03 PM IST

देहरादून (उत्तराखंड): आज इंसान अपने आविष्कार से धरती से लेकर अंतरिक्ष तक का सफर तय कर चुका है, लेकिन उत्तराखंड में आज भी मरीज और घायल कंधे पर अस्पताल पहुंच रहे हैं. उत्तराखंड राज्य को बने 25 साल होने जा रहे हैं. अगले साल राज्य अपना सिल्वर जुबली मनाएगा, लेकिन अभी भी पहाड़ के हालात ज्यादा कुछ नहीं बदले हैं. आज भी रहवासी मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहे हैं. आए दिन कहीं न कहीं से ऐसी तस्वीरें सामने आ जाती है, जो सरकार और सिस्टम की पोल खोल जाती हैं.

पहाड़ में कब सुधरेंगे हालात? खासकर पहाड़ों में आज भी हालात ज्यादा नहीं बदले हैं. पहले भी मरीजों और घायलों के लिए डंडी कंडी का सहारा था, आज भी वही हालात हैं. सड़क और स्वास्थ्य सुविधाएं की कमी के चलते कई लोग असमय ही जान गंवा चुके हैं, लेकिन सरकार और उनके नुमाइंदे दावा करते हैं कि कोने-कोने तक तमाम मूलभूत सुविधाएं पहुंचा दी गई है, लेकिन उन दावों की पोल कंधों और पीठ लदे मरीजों की तस्वीरें खोल देती है.

कंधे पर अस्पताल पहुंच रहे मरीज (वीडियो सोर्स- Villagers)

सूबे में सबसे ज्यादा कमी स्वास्थ्य और सड़क सुविधा की खलती है. पहाड़ों में अगर कोई बीमार या घायल हो जाए या फिर कोई गर्भवती महिला हो तो उसे अस्पताल पहुंचाना सबसे बड़ी चुनौती होती है. पहले तो डंडी कंडी, डोली, कुर्सी का इंतजाम करना पड़ता है, फिर उन्हें अस्पताल पहुंचाने के लिए युवाओं को इकट्ठा करना पड़ता है. कई गांवों में तो युवाओं के रोजगार या नौकरी की तलाश में बाहर जाने की वजह से मरीजों और घायलों को अस्पताल पहुंचाने में परेशानी होती है.

ग्रामीण पैदल ही कई किलोमीटर मरीजों, घायलों और गर्भवती को लेकर अस्पताल के लिए निकलते हैं. अगर किसी तरह से उन्हें सड़क मार्ग तक पहुंचा दिया जाता है तो फिर वहां से अस्पताल पहुंचाने की दिक्कत खड़ी हो जाती है. ऐसे में कई मरीज को रास्ते में दम तोड़ देते हैं. इसके बाद नजदीकी अस्पताल पहुंच भी गए तो कहीं डॉक्टर नहीं होते हैं तो कहीं स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव. जिसके चलते उन्हें हायर सेंटर रेफर करना पड़ जाता है, तब जाकर कहीं इलाज मिल पाता है.

पिथौरागढ़ में पीठ पर लादकर महिला को पहुंचाया अस्पताल (फोटो सोर्स- Villagers)

उधर, सरकार दावा करती है कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में नए-नए मुकाम हासिल कर रही है. अस्पतालों में डॉक्टरों की और अन्य स्टाफ की कमी को समय-समय पर भरा जा रहा है. एयर एंबुलेंस से लोगों को अस्पताल पहुंचाने की बात भी कही जाती है, लेकिन सरकार और सिस्टम के इन दावों की पोल खोलती ही तस्वीरें आए दिन सामने आ जाती है. ऐसी ही कुछ तस्वीरें हाल ही के दिनों में देखने को मिले हैं. जो बताती हैं कि पहाड़ के लोगों का जीवन कितना मुश्किलों भरा है.

टिहरी के धनौल्टी में बमुश्किल बची महिला की जान:धनौल्टी से लगे ग्राम पंचायत गोठ में लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं में से एक सड़क के लिए जूझ रहे हैं. आज भी गांव के लोग सड़क से ढाई किमी की दूरी तय कर गांव पहुंचते हैं. सबसे ज्यादा परेशानी मरीजों और गर्भवती महिलाओं को अस्पताल लाने और ले जाने में होती है. इससे पहले सड़क के अभाव में कई लोग अस्पताल जाने से पहले ही दम तोड़ चुके हैं. ग्रामीणों ने शासन-प्रशासन से सड़क निर्माण की गुहार लगाई है.

टिहरी के धनौल्टी में महिला को बमुश्किल पहुंचाया गया अस्पताल (फोटो सोर्स- Villagers)

लग्गा गोठ निवासी सुनील चमोली ने बताया कि बीते 10 सितंबर को उनकी माता शीला देवी का स्वास्थ्य रात को अचानक खराब हो गया था, जो कि चलने की हालत में नहीं थी. ऐसे में उन्हें अस्पताल पहुंचाने के लिए उन्होंने ग्रामीणों को इकठ्ठा कर रात के अंधेरे और बारिश में ही कुर्सी व कंडी के सहारे घनघोर जंगल के रास्ते ढाई किलोमीटर की पैदल चढ़ाई से धनोल्टी तक लाए. जिन्हें लाने में करीब 5 से 6 घंटे लगे. उसके बाद जौलीग्रांट अस्पताल ले गए.

जहां डॉक्टरों ने बताया कि अगर कुछ देर होती तो महिला की जान खतरे में पड़ सकती थी. महिला के उपचार के बाद कल यानी 25 सितंबर को महिला को अस्पताल से डिस्चार्ज किया गया. फिर उसे धनोल्टी से गांव तक कुर्सी में बैठाकर घर पहुंचा गया. गौर हो कि कुछ महीने पहले ही गर्भवती मधु देवी पत्नी देवेंद्र प्रसाद को चारपाई के सहारे अस्पताल तक ले जाया गया, लेकिन उनका रास्ते में ही डिलीवरी हो गई थी. जिसमें नवजात की मौत हो गई थी. किसी तरह प्रसूता को बचाया गया. इसी तरह गांव के दर्शन लाल चमोली की भी अस्पताल ले जाते समय मौत हो चुकी है.

चंपावत में बीमार को कंधे पर तो गर्भवती को कुर्सी पर बैठाकर पहुंचाया अस्पताल:बीती24 सितंबर को ही चंपावत के बाराकोट ब्लॉक से एक तस्वीर सामने आई. जिसमें परिवार के कुछ लोग बुजुर्ग महिला को डंडी कड़ी के सहारे अस्पताल ले जाते दिखे. बताया जा रहा है कि इस गांव तक पहुंचाने के लिए वैसे तो सड़क है, लेकिन बारिश हो जाए तो सड़क जगह-जगह से बंद हो जाती है. ऐसे में ग्रामीणों को पैदल ही सफर करना पड़ता है.

इसके अलावा कुछ दिन पहले भी इसी तरह का एक मामला सील गांव से सामने आया था. जहां एक गर्भवती महिला को भी डोली के सहारे अस्पताल पहुंचाया गया. गर्भवती को अस्पताल पहुंचाने में ग्रामीणों के पसीने छूट गए. क्योंकि, जिस रास्तों पर इंसान अकेला पैदल नहीं चल सकता, उन रास्तों पर गर्भवती को कंधे पर लादकर अस्पताल पहुंचाना पड़ा. बताया जा रहा है कि राज्य सरकार ने 3 साल पहले इस क्षेत्र में सड़क बनाने की घोषणा कर दी थी, लेकिन आज भी बाराकोट के दुरुस्त सील गांव में सड़क नहीं पहुंच पाई है.

पौड़ी में बीमारी महिला को बमुश्किल पहुंचाया गया अस्पताल:पौड़ी जिले के थलीसैंण के जैंती डांग गांव में बसंती देवी की अचानक तबीयत खराब हो गई थी. ऐसे में बसंती देवी को अस्पताल पहुंचाने के लिए ग्रामीणों को डंडी कंडी का इंतजाम करना पड़ा. जिसके बाद डंडी कंडी में लादकर ग्रामीण अस्पताल की ओर निकले, लेकिन रास्ता जगह-जगह टूट जाने की वजह से बसंती देवी को मुख्य सड़क, फिर अस्पताल पहुंचाने में काफी परेशानियां हुई. कई किमी की पैदल दूरी नापने के बाद महिला को अस्पताल पहुंचाया गया.

पौड़ी में महिला को डंडी कंडी पर ले जाते ग्रामीण (फोटो सोर्स- Villagers)

देवप्रयाग के कुलड़ी गांव में बुजुर्ग महिला को अस्पताल पहुंचाने में छुटे पसीने: ऐसे ही एक तस्वीर टिहरी जिले केथाती डागर ग्राम सभा से सामने आया. जहां कुलेड़ी नामक तोक में 62 साल की छापा देवी अपने घर में ही गिर गई. जिससे उनका पैर फैक्चर हो गया था. ऐसे में चलने में असमर्थ होने की वजह से परिवार के सदस्य और ग्रामीण उन्हें डंडी कंडी पर लादकर अस्पताल की ओर निकले. किसी तरह से ग्रामीण छापा देवी को सड़क तक लाए, फिर उसके बाद श्रीनगर के श्रीकोट अस्पताल में भर्ती करवाया.

इस पूरे मामले में स्थानीय विधायक विनोद कंडारी कहते हैं कि मामला उनके संज्ञान में आया है. गांव के लिए सड़क का सर्वे का काम करीबन पूरा हो गया है. अभी गांव तक पहुंचने वाली मार्ग कच्ची है, लेकिन जल्द ही इस मार्ग को बनाया जाएगा. बरसात के दिनों में अमूमन पहाड़ के गांव में इस तरह के हालात बन जाते हैं. उधर, ग्रामीणों का कहना है कि सर्वे करने मात्र से कुछ नहीं होगा. उन्हें हर हाल में सड़क चाहिए.

टिहरी में घायल बुजुर्ग महिला को डंडी कंडी पर लादकर पैदल चले ग्रामीण (फोटो सोर्स- Family Members)

चमोली में भी बुजुर्ग महिला पास वाले गांव में ही सहारा बने गांव के लोग:इसी महीने ऐसा ही एक मामला चमोली जिले से सामने आया. जहां पर एरठा गांव को जोड़ने वाली मुख्य मार्ग बारिश की वजह से जगह-जगह से टूट गया. आलम ये था कि सड़क और पगडंडी में अंतर बताना मुश्किल हो गया था. इसी बीच गांव में एक महिला की अचानक तबीयत बिगड़ गई. जिसके चलते ग्रामीणों की चिंता बढ़ गई. चिंता इस बात की थी कि आखिरकार बीमार महिला को अस्पताल तक कैसे पहुंचा जाए? क्योंकि, रास्ता टूटा हुआ था. ऊपर से चट्टान खिसकने का डर था तो नीचे उफनती नदी बह रही थी.

खड़ी चढ़ाई, टूटा रास्ता और ऊपर से बारिश का मौसम, सभी को परेशान कर रहा था, लेकिन गांव के ही कुछ लोगों ने हिम्मत जुटाई और कुर्सी के सहारे महिला को अस्पताल तक पहुंचाने का इंतजाम किया गया. उत्तराखंड के अमूमन गांव में जब ऐसी परिस्थितियां सामने आती हैं तो गांव के लोग ही एक दूसरे का सहारा बनते हैं. एरठा गांव के लोगों ने हिम्मत जुटाकर महिला को पैदल ही अस्पताल तक पहुंचाया. करीब 4 किलोमीटर की दूरी लोगों ने अपनी जान जोखिम में डालकर तय किया.

चमोली में डंडी कंडी के सहारे महिला को ले जाते ग्रामीण (फोटो सोर्स- Villagers)

अल्मोड़ा में बुजुर्ग महिला को ऐसे पहुंचाया अस्पताल:अल्मोड़ा के फयाटनोला की 90 साल की रधुली देवी की भी अचानक तबीयत खराब हो गई. आलम ये हुआ की उन्हें चलने फिरने में दिक्कत होने लगी. सुदूर गांव में रह रही रधुली देली के इलाज के लिए आस पास स्वास्थ्य सुविधा नहीं थी. गांव तक जाने वाली सड़क ऐसी नहीं थी कि मरीज खुद भी चल सके. ऐसे में गांव के युवकों गोविंद, बबलू और योगेश ने रधुली देवी को कंधे पर बिठाया और कई किलोमीटर दूर मुख्य सड़क तक पहुंचाया. वहां से उन्हें हल्द्वानी ले जाया गया.

अल्मोड़ा के फयाटनोला गांव के लोगों का दर्द (फोटो सोर्स- Family Members)

बारिश और सरकारी विभागों की उदासीनता है वजह:ऐसा नहीं है कि सरकार और अधिकारियों को इन घटनाओं की जानकारी नहीं है. सरकार में बैठे अधिकारी भी इन तस्वीरों से वाकिफ हैं, लेकिन कहीं कुदरत की मार तो कहीं सरकारी विभागों की लापरवाही की वजह से उत्तराखंड के स्वास्थ्य महकमा सवालों के घेरे में आ जाता है.

क्या कहते हैं अधिकारी?स्वास्थ्य सचिव आर राजेश कुमार कहते हैं उत्तराखंड के कई जगहों पर भूस्खलन की वजह से मरीजों को अस्पताल तक ले जाने के लिए ग्रामीण इस तरह के इंतजाम करते हैं, लेकिन सरकार ने इसके लिए भी कई तरह की व्यवस्थाएं की है. सरकार, स्वास्थ्य विभाग, एसडीआरएफ, एनडीआरएफ की तरफ से ऐसी टीम बनाई हैं, जो बीमार और गर्भवती महिलाओं को अस्पताल तक पहुंचाते हैं. जब बारिश की वजह से सड़कें बंद हो जाती हैं, तब थोड़े हालात मुश्किल हो जाते हैं.

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Last Updated : Sep 26, 2024, 10:03 PM IST

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