पलामू:भारत में 2 से 8 अक्टूबर तक वन्यप्राणी सप्ताह मनाया जा रहा है. इस दौरान वन्यजीवों के संरक्षण पर चर्चा हो रही है. भारतीय सभ्यता और संस्कृति वन्यजीवों से जुड़ी हुई है. वनों के संरक्षण में आदिवासियों की बड़ी भूमिका रही है. हाल के दिनों में वन्यजीवों और इंसानों के बीच संघर्ष बढ़ा है, जिसमें हर साल कई लोग अपनी जान गंवा रहे हैं.
हाल के दिनों में उत्तर प्रदेश के बहराइच में भेड़ियों के हमले चर्चा में रहे हैं. वहीं मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ इलाके में इंसानों और बाघों के बीच संघर्ष की घटनाएं बढ़ी हैं. झारखंड में हाथियों और इंसानों के बीच संघर्ष चर्चा में रहता है. वन्यजीव सप्ताह को लेकर ईटीवी भारत ने पलामू टाइगर रिजर्व के उप निदेशक प्रजेशकांत जेना से खास बातचीत की.
भारत की संस्कृति में वन्यजीवों की सुरक्षा
पलामू टाइगर रिजर्व के उप निदेशक प्रजेशकांत जेना बताते हैं कि वन्यजीवों की सुरक्षा भारत की संस्कृति में है. चाहे हम असम के राइनो की बात करें या रॉयल बंगाल टाइगर की. हर जगह वन्यजीवों की सुरक्षा से जुड़ी संस्कृति देखने को मिलती है. झारखंड की जनजातीय संस्कृति वन और वन्यजीवों की सुरक्षा से जुड़ी है. उनके सभी सामाजिक और अन्य प्रकार के आयोजन वन से जुड़े होते हैं. झारखंड वन और वन्यजीवों की सुरक्षा का एक बड़ा उदाहरण है.
वन्यजीवों और मनुष्यों के बीच संघर्ष चिंता का विषय
प्रजेशकांत जेना ने बताया कि वन्यजीवों और मनुष्यों के बीच संघर्ष चिंता का विषय बन गया है. हाल के दिनों में संघर्ष बढ़ा है. वह बताते हैं कि कहीं न कहीं वन क्षेत्र में शहरीकरण के कारण यह संघर्ष बढ़ा है. अगर वन्यजीवों के घर छोटे हो जाएंगे तो जंगली जानवर बाहर निकल आएंगे. वन्यजीवों की सुरक्षा और संरक्षण को लेकर आम लोगों को भी पहल करनी होगी. वह बताते हैं कि लोगों को यह याद दिलाने की जरूरत है कि उनकी सभ्यता और संस्कृति वन्यजीवों की सुरक्षा से जुड़ी है.
वन्यप्राणी सप्ताह के दौरान लोगों को किया जा रहा जागरूक