नई दिल्ली: भाजपा के एजेंडे में शामिल एक राष्ट्र एक चुनाव विधेयक को नरेंद्र मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में लोकसभा में पेश कर दिया गया. इस विधेयक को लोकसभा ने 269 वोट से स्वीकार किया जबकि विरोध में 198 वोट पड़े हैं. यह बिल देश में लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने से संबंधित है.
कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी पार्टियां इस बिल का यह कहकर विरोध कर रही हैं कि इससे देश के संघीय ढांचे को नुकसान पहुंचेगा और क्षेत्रीय पार्टियों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा. जबकि भाजपा का कहना है कि इससे देश के संसाधनों की बचत होगी, जिसे विकास कार्यों में इस्तेमाल किया जा सकेगा.
ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना ने इस मुद्दे पर भाजपा प्रवक्ता प्रेम शुक्ला से बात की. उन्होंने कहा कि इस बिल को सरकार जेपीसी (संयुक्त संसदीय समिति) के पास भेज रही है, जिसमें विपक्षी पार्टियां भी शामिल होंगी और इसे सर्वसम्मति से ही पास किया जाएगा.
'वन नेशन वन इलेक्शन' का मुद्दा, तीन तलाक, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना, महिला आरक्षण बिल जैसे अन्य मुद्दों के साथ भाजपा के एजेंडे में शुरू से ही शामिल था, और 2014 से जब से मोदी सरकार सत्ता में आई थी तब से ही भाजपा बार-बार इस बिल को लाने की बात कहती रही है.
अब आखिरकार संसद के शीतकालीन सत्र में इसे पेश कर दिया गया. जैसी उम्मीद की जा रही थी कि विपक्षी पार्टियां पर इस बिल का विरोध करेंगी, ऐसा ही हुआ. मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया. राजद के नेता तेजस्वी यादव ने तो यहां तक कहा कि यह बिल संघीय ढांचे के खिलाफ है और सिर्फ एक व्यक्ति को खुश करने के लिए लाया गया है.
15 दलों ने किया बिल का विरोध
लोकसभा में कुल 15 दलों ने एक राष्ट्र एक चुनाव विधेयक का विरोध किया. इनमें कांग्रेस, टीएमसी, डीएमके, AIMIM, शिवसेना (UBT), एनसीपी (SP) और अन्य शामिल हैं. वहीं, कुल 32 दलों ने विधेयक का समर्थन किया. इनमें मुख्य रूप से भाजपा, टीडीपी, शिवसेना, YSRCP, जेडीयू, बीआरएस और AIADMK शामिल हैं.