नई दिल्ली: राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत ने 26 साल पुराने एक मामले में बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड को कड़ी फटकार लगाते हुए पांच हजार रुपये का जुर्माना लगाया है. जस्टिस एपी शाही और जस्टिस इंदरजीत सिंह की बेंच ने बिहार सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कहा कि एक चौथाई सदी बीत चुकी है. याचिकाकर्ता की मौत के बाद उसकी दूसरी पीढ़ी को भी इस केस में घसीटा गया और उसे प्रताड़ित किया गया. ऐसी स्थिति में लोगों का सिस्टम पर से भरोसा उठ जाएगा.
दरअसल अवधेश पांडेय नामक व्यक्ति ने 80 के दशक में मोतीहारी में बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड के एक प्रोजेक्ट में प्लॉट खरीदा. सुनवाई के दौरान अवधेश पांडेय के पुत्र और पत्नी की ओर से पेश वकील मोहम्मद अली, शिवेश गर्ग और छत्रेश कुमार साहू ने कहा कि अवधेश पांडेय इस प्लाट की ईएमआई बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड को देते रहे. बीच में कुछ ईएमआई का भुगतान वह नहीं कर सके. इसके बाद बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड ने अवधेश पांडेय पर देरी से ईएमआई देने का आरोप लगाते हुए प्लॉट के कागजात देने से इनकार कर दिया. अवधेश पांडेय ने 1998 में जिला उपभोक्ता फोरम में केस दाखिल किया.
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मोहम्मद अली ने बताया कि जिला उपभोक्ता फोरम ने 12 अक्टूबर 2000 को अवधेश पांडेय के पक्ष में फैसला देते हुए बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड को सेवा में कमी का दोषी माना. जिला उपभोक्ता फोरम ने कहा कि बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड ने अवधेश पांडेय से देरी से जमा किए गए ईएमआई का ब्याज वसूला. जिला उपभोक्ता फोरम की ओर से मांगे जाने पर बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड बकाया रकम की जानकारी नहीं दे सका. यहां तक कि हाउसिंग बोर्ड वह नोटिस भी नहीं दिखा सका जो उसने अवधेश पांडेय को ईएमआई देरी से जमा करने पर जारी किया था. जिला उपभोक्ता फोरम ने हाउसिंग बोर्ड को आदेश दिया कि वे अवधेश पांडेय को प्लॉट से संबंधित दस्तावेज उपलब्ध कराएं.