एमएस स्वामीनाथन ने अमरावती में लगाया था बरगद का पेड़, 48 साल बाद बन चुका है विशालकाय वृक्ष - Tree Planted By MS Swaminathan
हरित क्रांति के अग्रदूत कहे जाने वाले डॉ. एमएस स्वामीनाथन की बुधवार को 99वीं जयंती है. उन्होंने 23 अप्रैल 1976 को अमरावती के श्री शिवाजी कृषि महाविद्यालय के प्रांगण में बरगद का एक छोटा सा पौधा लगाया था. अब वह पौधा एक विशालकाय वृक्ष बन चुका है.
डॉ. एमएस स्वामीनाथन द्वारा लगाया गया पेड़ (फोटो - ETV Bharat Maharashtra)
अमरावती:'हरित क्रांति के अग्रदूत' डॉ. एमएस स्वामीनाथन ने 23 अप्रैल 1976 को भारत के प्रथम कृषि मंत्री पंजाबराव देशमुख स्मृति कार्यक्रम के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक के रूप में विदर्भ का दौरा किया था. डॉ. एमएस स्वामीनाथन ने अमरावती के श्री शिवाजी कृषि महाविद्यालय के प्रांगण में बरगद का एक छोटा सा पौधा लगाया था.
48 साल बाद वह पौधा एक बड़ा बरगद का पेड़ बन गया है. इस पेड़ के चारों ओर बनी विशेष छत पर एक पट्टिका लगी है, जिस पर उल्लेख है कि यह पेड़ डॉ. एमएस स्वामीनाथन ने लगाया था. भारत में कृषि क्रांति लाने वाले भारतरत्न डॉ. एमएस स्वामीनाथन की 99वीं जयंती के अवसर पर ईटीवी भारत की यह विशेष रिपोर्ट.
1960 में भारत में भयंकर अकाल पड़ा था. उस समय भारत ने अमेरिका से अनाज की मांग की. अमेरिका ने वियतनाम के खिलाफ युद्ध की घोषणा की. अमेरिका ने शर्त रखी कि भारत इस युद्ध में अपना समर्थन घोषित करे. अपनी अलगाववादी नीति के कारण भारत ने वियतनाम के खिलाफ युद्ध में अमेरिका का साथ देने से इनकार कर दिया.
उस समय के अमेरिकी अर्थशास्त्री पोडैक ब्रदर्स ने कहा कि "भारत के आधे लोग भूख से मर जाएंगे. भारत कभी भी अनाज का कर्ज नहीं चुका पाएगा." पंजाबराव देशमुख मार्गदर्शन केंद्र के पूर्व निदेशक प्रोफेसर डॉ. वैभव म्हस्के ने कहा कि "इसलिए उन्होंने राय जाहिर की कि भारत को अनाज नहीं दिया जाना चाहिए. ऐसी स्थिति में अमेरिका ने भारत को अनाज देने से इनकार कर दिया और 'माइलो गेहूं' भेजा, जिसे अमेरिका में जानवरों को खिलाया जाता था."
वैभव ने कहा कि "अमेरिका का यह कदम भारत के प्रति तिरस्कारपूर्ण था. देशमुख से प्रेरित होकर डॉ. एमएस स्वामीनाथन ने भारत में हरित क्रांति की शुरुआत की." एमएस स्वामीनाथन का जन्म तमिलनाडु के कुंभकोणम गांव में एक डॉक्टर परिवार में हुआ था. उन्होंने मेडिकल कोर्स में एडमिशन लिया, लेकिन मेडिकल की पढ़ाई आंशिक रूप से छोड़कर उन्होंने कृषि कोर्स की ओर रुख किया.
उन्होंने केरल के महाराज कॉलेज से कृषि में स्नातक किया. इसके बाद उन्होंने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान दिल्ली से स्नातकोत्तर की डिग्री पूरी की. 1952 में उन्होंने आचार्य की डिग्री हासिल की. प्रोफेसर राजेंद्र पाटिल ने कहा कि "डॉ. एमएस स्वामीनाथन ने गेहूं की दो किस्में कल्याण सोना और सोनालिका विकसित कीं. इसके साथ ही चावल की विशेष किस्में जया और आईआर8 तैयार करके देश की धरती में हरित क्रांति के बीज बोए."
पाटिल ने कहा कि "1980 से 1985 के बीच आंध्र प्रदेश में कपास किसानों की आत्महत्याओं की संख्या बहुत अधिक थी. उस समय डॉ. स्वामीनाथन ने एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन नामक एक संगठन की स्थापना की. इसके तहत ग्राम ज्ञान केंद्र और ग्राम संसाधन केंद्र के माध्यम से किसानों ने आत्महत्या प्रभावित क्षेत्रों में कपास उत्पादकों के लिए समृद्धि लाई है."
प्रोफेसर राजेंद्र पाटिल ने कहा कि "डॉ. एमएस स्वामीनाथन ने आलू और धान की खेती करने वाले किसानों को कई तरह की समृद्ध फसलें उपलब्ध कराईं. डॉ. एमएस स्वामीनाथन ने ऐसे देश में किसानों को स्वाभिमानी फसलों के साथ प्रेरित करने के लिए अथक प्रयास किए, जहां बढ़ती आबादी की तुलना में कभी-कभी भोजन की कमी और सूखे जैसी स्थिति होती है. भारत ने खुद को एक प्रमुख अनाज उत्पादक और निर्यातक के रूप में स्थापित किया."
पशुपालन एवं डेयरी विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. नंदकिशोर खंडारे ने कहा कि "डॉ. एमएस स्वामीनाथन ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक के रूप में विदर्भ का दौरा किया था, ताकि वरहाड़ में काली उपजाऊ भूमि की समीक्षा की जा सके. उस समय, उन्होंने 23 अप्रैल, 1976 को श्री शिवाजी कृषि महाविद्यालय के पशुपालन एवं डेयरी विज्ञान विभाग के परिसर में बरगद के पेड़ का एक छोटा सा पौधा लगाया था."
खंडारे ने कहा कि "आज, इस बरगद के पेड़ की परिधि एक सौ फीट है. इस पेड़ के नीचे गाय, बछड़े और चूहे पाले जाते हैं. छात्र, वैज्ञानिक और किसान इस पेड़ के नीचे आराम करते हैं. एमएस स्वामीनाथन को एक महान कृषि विशेषज्ञ के रूप में याद किया जाता है."