लोकसभा चुनावों के दौरान उत्तराखंड में कम रहा है वोटिंग प्रतिशत. जानें क्यों. देहरादून:लोकसभा चुनाव के लिए उत्तराखंड समेत 22 राज्यों में पहले चरण के तहत मतदान होना है. निर्वाचन आयोग चुनाव की तैयारी में जुटा हुआ है. खासतौर पर मतदाताओं को मतदान केंद्रों तक लाने के लिए तमाम अभियान चलाए जा रहे हैं. उत्तराखंड में भी निर्वाचन आयोग इसी तरह के प्रयासों को आगे बढ़ा रहा है.
2019 का पार्टीवार वोटिंग प्रतिशत आयोग की तरफ से दावा किया जा रहा है कि सैकड़ों जन जागरूकता अभियान अब तक विभिन्न जगहों पर उसके द्वारा चलाए जा चुके हैं. इस दौरान नुक्कड़ नाटक और शपथ दिलाने जैसे कार्यक्रमों को भी किया जा रहा है. इन कार्यक्रमों के जरिए लाखों लोगों को जोड़ने की बात चुनाव आयोग द्वारा की गई है. लेकिन हैरानी की बात यह है कि इतना कुछ करने वाला निर्वाचन आयोग उत्तराखंड में मतदान प्रतिशत का लक्ष्य ही 75% रख रहा है. यानी उत्तराखंड के 20 लाख से ज्यादा मतदाता निर्वाचन आयोग के लक्ष्य से ही बाहर हैं.
पिछले 4 लोकसभा चुनावों में वोटिंग प्रतिशत वैसे निर्वाचन आयोग का अधिकतम लक्ष्य 75% होने के पीछे भी एक खास वजह है. आयोग जानता है कि पिछले लोकसभा चुनावों में मतदाता कम संख्या में बूथों तक पहुंचे थे. लिहाजा निर्वाचन अधिकारी 100 प्रतिशत का लक्ष्य तय करने में कतरा रहे हैं. उधर इन हालातों के बीच निर्वाचन आयोग जाने अनजाने 25% मतदाताओं को लेकर पहले ही सरेंडर करता दिख रहा है. उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव के दौरान मतदाताओं के मतदान केंद्रों पर पहुंचने की क्या रही स्थिति, और लोकसभा चुनाव में कितने मतदाता घरों से नहीं निकले बाहर, बिंदुवार देखिये..
- उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव में वोटिंग का गणित
लोकसभा चुनाव साल 2019 में करीब 61.50 प्रतिशत मतदान हुआ. यानी कुल 75 लाख 62 हजार 126 मतदाताओं में से करीब 46 लाख 50 हजार 707 मतदाताओं ने मतदान किया.
इस तरह साल 2019 में करीब 29 लाख लोगों ने चुनाव प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लिया.
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में 62.15% मतदान हुआ. यानी 71 लाख 29 हज़ार 305 मतदाताओं में से 44 लाख 30 हज़ार 863 मतदाताओं ने मत का प्रयोग किया.
इस चुनाव (2014) में 26 लाख 98 हज़ार 442 लोगों ने लोकतंत्र के महापर्व से दूरी बनाई.
लोकसभा चुनाव 2009 में 53.96% वोटिंग हुई. इस तरह 58 लाख 87 हज़ार 724 मतदाताओं में से करीब 31 लाख 77 हज़ार मतदाताओं ने मतदान किया.
इस तरह 2009 के चुनाव में भी 27 लाख 10 हज़ार लोग मतदान केंद्रों पर नहीं आये.
साल 2004 में केवल 49.25% मतदान हुआ. इस समय कुल मतदाताओं की संख्या 55 लाख 62 हज़ार 637 थी. जिसमें से 27 लाख 39 हज़ार 598 मतदाताओं ने वोट दिया.
उत्तराखंड राज्य स्थापना के बाद इस पहले लोकसभा चुनाव में मतदान करने वालों से ज्यादा मतदान ना करने वालों की संख्या थी. इस साल 28 लाख 23 हज़ार लोगों ने वोट नहीं किया.
मतदान को लेकर निर्वाचन आयोग की तरफ से 75% का लक्ष्य रखे जाने पर ईटीवी भारत ने निर्वाचन अधिकारी से सवाल किया. संयुक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी नमामि बंसल से जब पूछा गया कि निर्वाचन आयोग मतदान केंद्रों तक 100 प्रतिशत मतदाताओं को पहुंचाने का लक्ष्य क्यों नहीं रख रहा है, तो उन्होंने इस पर पिछले लोकसभा चुनाव के मत प्रतिशत का हवाला दिया. नमामि बंसल ने कहा कि वैसे तो आयोग का प्रयास हर व्यक्ति तक पहुंचाने का है और सभी को जागरूक करने का है, लेकिन निर्वाचन को लेकर लोगों की उदासीनता के कारण 100% का लक्ष्य होना मुश्किल है. यही कारण है कि पिछले सालों में मतदान 65% तक भी नहीं पहुंचा है.
उत्तराखंड में फिलहाल 83 लाख 21 हज़ार 207 मतदाता हैं. इनको लेकर निर्वाचन आयोग का अधिकतम लक्ष्य 75% है. वैसे तो इस लक्ष्य को पाना भी फिलहाल मुश्किल लग रहा है, लेकिन यदि आयोग ने इस लक्ष्य को भी पा लिया तो भी 20 लाख 80 हज़ार मतदाता मतदान से बाहर ही रहेंगे.
मतदाताओं के चुनाव से दूर रहने के पीछे भी कई तरह की वजह मानी जाती रही हैं. इसमें मतदाताओं का राजनीतिक दलों से उठता विश्वास भी एक वजह है. शायद यही कारण है कि पिछले सालों में खुद सुप्रीम कोर्ट ने लोगों को NOTA का ऑप्शन देने के निर्देश दिए थे. इससे भी खास बात यह है कि NOTA यानी किसी भी प्रत्याशी को मतदान नहीं करने वालों की संख्या भी लगातार बढ़ती दिखाई दी है. यह साबित करता है कि राजनीतिक दलों ने जनता के सामने अपना विश्वास खोया है और इसीलिए लोग या तो NOTA का बटन दबाते हैं या फिर मतदान केंद्रों पर जाना पसंद ही नहीं करते. उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव को लेकर यह दिलचस्प आंकड़ा भी देखिए...
- लोकसभा चुनाव के रोचक आंकड़े
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सभी 5 सीटें जीतीं और 61.7 प्रतिशत मत हासिल किये.
कांग्रेस दूसरे नंबर पर 31.7 प्रतिशत मत हासिल कर पाई.
बहुजन समाज पार्टी ने 4.5% मत हासिल किये.
साल 2019 में 50,946 मतदाताओं ने NOTA का बटन दबाया.
साल 2014 में बीजेपी ने सभी पांच सीटें जीतीं और 55.9% मत हासिल किये.
कांग्रेस ने 34.4% मत प्राप्त किए
बहुजन समाज पार्टी 4.8 प्रतिशत मत ले सकी
पहली बार साल 2014 में NOTA का बटन दबाने का मतदाताओं को अधिकार मिला. इस साल उत्तराखंड में 48,043 मतदाताओं ने NOTA का बटन दबाया.
NOTA यानी किसी भी प्रत्याशी को वोट नहीं देने का अधिकार, जिसकी फुल फॉर्म (None of the Above) है.
2009 में कांग्रेस ने सभी पांच सीटें जीती और 43.01% मत हासिल किए.
भारतीय जनता पार्टी ने 33.8 प्रतिशत मत पाए.
बहुजन समाज पार्टी 15.02% मत हासिल करने में कामयाब रही
साल 2004 में भारतीय जनता पार्टी ने 3 सीटें सीटें जीतीं, और 41% मत हासिल किए.
कांग्रेस ने एक सीट जीती और 38.3 प्रतिशत मत हासिल किये.
समाजवादी पार्टी ने भी एक सीट जीती और 7.9% मत हासिल किये.
- मतदान को लेकर बेरुखी का कारण
चुनाव से दूर रहने वाले मतदाताओं को लेकर कई तरह के आकलन हैं. जानकार कहते हैं कि...
उत्तराखंड की विषम भौगोलिक स्थिति के कारण भी कई लोग मतदान केंद्रों पर नहीं जाते.
पर्वतीय जनपदों के साथ मैदानी जनपदों में भी कामकाज में व्यस्तता के कारण निम्न या मध्यम परिवार के लोग मतदान करने नहीं जाते.
चुनाव को लेकर लोगों की उदासीनता भी लोगों को चुनाव से दूर रखने का काम करती है.
राजनीतिक दलों से उठता विश्वास भी लोकतंत्र के महापर्व से लोगों को दूर रख रहा है.
मतदान की ताकत को नहीं पहचानने और जागरूकता की कमी के कारण भी लोग मतदान केंद्रों पर नहीं जाते.
अपनी लोकसभा सीट से बाहर रहने वाले लोग भी चुनाव के लिए मतदान करने में दिलचस्पी नहीं दिखाते.
इस तरह ऐसी कई वजह हैं जिनके कारण आज भी लाखों लोगों को मतदान केंद्रों तक पहुंचाना मुश्किल हो रहा है. यह मुश्किल निर्वाचन आयोग के सामने भी आ रही है. शायद इसीलिए तमाम मशीनरी के मौजूद होने और हर व्यक्ति तक पहुंचने का दावा करने वाला निर्वाचन आयोग भी इस मामले में थोड़ा बेबस सा नजर आता है. वरिष्ठ पत्रकार नीरज कोहली कहते हैं कि न केवल राजनीतिक दलों के स्तर पर लोकतंत्र के महापर्व को मजबूत करने की जिम्मेदारी है, बल्कि निर्वाचन आयोग को भी इसके लिए और अधिक मेहनत करनी होगी. तमाम बड़े कार्यक्रमों को राजधानी या मैदानी जिलों के साथ सुगम क्षेत्रों तक सीमित ना रखकर दुर्गम तक भी पहुंचना होगा. खास तौर पर बड़े अधिकारियों को दुर्गम क्षेत्रों में चुनाव से काफी पहले ही इस तरह के कार्यक्रमों को करना होगा, तभी मतदान प्रतिशत सुधर सकता है.
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