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लोकसभा चुनाव: पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में बीजेपी को क्यों मिली हार ? - BJP drew a blank in Three NE states

LokSabha Election Result 2024: इस साल लोकसभा चुनाव में भले ही बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी हो, लेकिन अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करने वाले पूर्वोत्तर के तीन राज्यों मणिपुर, नागालैंड और मिजोरम में उसे कोई सीट नहीं मिली. जातीय हिंसा से लेकर धार्मिक भावनाओं और हितों के टकराव तक इसके कई कारण हैं. ईटीवी भारत ने विशेषज्ञों ने इस बारे में विस्तार से बात की. पढ़ें पूरी खबर...

The BJP cut a sorry figure in northeastern border states of Manipur, Nagaland and Mizoram in the Lok Sabha Elections 2024.
2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का पूर्वोत्तर सीमावर्ती राज्यों मणिपुर, नागालैंड और मिजोरम में प्रदर्शन निराशाजनक रहा. (ETV Bharat File Photo)

By Aroonim Bhuyan

Published : Jun 6, 2024, 9:47 PM IST

नई दिल्ली:इस साल लोकसभा चुनावों में जिन राज्यों में भाजपा और उसके एनडीए गठबंधन को हार का सामना करना पड़ा, उनमें पूर्वोत्तर सीमावर्ती राज्य मणिपुर, नागालैंड और मिजोरम शामिल हैं. मणिपुर में, जहां भाजपा सत्ता में है, आंतरिक मणिपुर और बाहरी मणिपुर दोनों सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों ने जीत हासिल की. वहीं नागालैंड में एकमात्र लोकसभा सीट, जहां एनडीए-गठबंधन वाली विपक्ष-रहित सरकार सत्ता में है, फिर भी कांग्रेस उम्मीदवार ने जीत हासिल की. ​​मिजोरम में, अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित एकमात्र सीट ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट (ZPM) के उम्मीदवार ने जीती, जो राज्य में सत्ता में है.

मणिपुर, एक ऐसा राज्य जो पिछले एक साल से अधिक समय से जातीय संघर्ष से जूझ रहा है, जिसमें अब तक 200 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है. 3 मई, 2023 को, इम्फाल घाटी में रहने वाले बहुसंख्यक मैतेई लोगों और आसपास की पहाड़ियों के कुकी-जो आदिवासी समुदाय के बीच हिंसा भड़क उठी. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 3 मई 2024 तक हिंसा में 221 लोग मारे गए हैं और 60,000 लोग विस्थापित हुए हैं. पहले के आंकड़ों में 1,000 से अधिक घायलों और 32 लापता लोगों का भी उल्लेख किया गया था. 4,786 घर जला दिए गए और 386 धार्मिक संरचनाओं में तोड़फोड़ की गई, जिनमें मंदिर और चर्च शामिल हैं. अनौपचारिक आंकड़े इससे कहीं ज्यादा हैं.

2019 के लोकसभा चुनावों में, इनर मणिपुर सीट भाजपा के राजकुमार रंजन सिंह ने जीती थी, जबकि आउटर मणिपुर सीट एनडीए के घटक नागा पीपुल्स (एनपीएफ) के लोरहो एफ फोजे ने जीती थी. हालांकि 2024 में दोनों सीटें कांग्रेस ने छीन लीं. इनर मणिपुर सीट पर अंगोमचा बिमोल अकोइजम ने जीत दर्ज की, जबकि आउटर मणिपुर सीट पर अल्फ्रेड कान-नगाम आर्थर ने जीत दर्ज की. शिलांग स्थित एशियन कॉन्फ्लुएंस थिंक टैंक के फेलो के योमे के अनुसार, भड़की जातीय हिंसा ने लोगों को बड़े पैमाने पर प्रभावित किया.

योमे ने ईटीवी भारत से कहा कि, इस पृष्ठभूमि में आपके पास एक ऐसे प्रधानमंत्री थे जो कभी मणिपुर नहीं आए. राज्य के लोगों द्वारा प्रधानमंत्री को फोन करने के बावजूद ऐसा कभी नहीं हुआ. ऐसे में जब लोग वोट देने जाते हैं, तो उनके दिमाग में यही बात आती है. लोगों ने बहुत स्पष्ट और दृढ़ निश्चय के साथ मतदान किया. योमे के अनुसार लोगों को लग रहा था कि उनके दर्द की अनदेखी की जा रही है और उन्हें देश का हिस्सा नहीं माना जा रहा है. उन्होंने कहा कि, सरकार के मुखिया को देश का पिता माना जाता है. लोगों को लगा कि उनके साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है. यह गुस्से में प्रकट होता है. हिंसा के बीच प्रधानमंत्री का मणिपुर न जाना मैतेई और कुकी दोनों को नाराज़ कर गया.

कांग्रेस के लिए जो सही रहा, वह पार्टी नेता राहुल गांधी का मणिपुर से भारत जोड़ो न्याय यात्रा शुरू करने का फैसला था. जब राहुल गांधी आए और लोगों से कहा कि वे दिल्ली में उनकी आवाज बनेंगे और वे उनका दर्द महसूस कर सकते हैं, तो वे जुड़ गए. योमे ने बताया कि, राहुल गांधी ने लोगों के प्रति अपने प्यार और परवाह का प्रदर्शन किया. मणिपुर के लोगों ने भाजपा के ख़िलाफ़ अपना गुस्सा जाहिर करने के लिए कांग्रेस को वोट दिया.

नागालैंड में, 2019 के चुनावों में राज्य की सत्तारूढ़ नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (NDPP) के टोखेहो येप्थोमी ने एकमात्र लोकसभा सीट जीती थी. इस बार राज्य में त्रिकोणीय मुकाबला था. एनडीपीपी-बीजेपी के नेतृत्व वाले पीपुल्स डेमोक्रेटिक अलायंस (पीडीए) ने चुम्बेन मुरी को सर्वसम्मति से उम्मीदवार बनाया, वहीं कांग्रेस ने एस सुपोंगमेरेन जमीर को अपना उम्मीदवार बनाया. उद्यमी और सामाजिक कार्यकर्ता हेइथुंग तुंगो लोथा ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा. अंत में कांग्रेस के जमीर ने मुरी को 50,000 से अधिक मतों के अंतर से हराया. योमे के मुताबिक नागालैंड के नतीजे को राज्य के राजनीतिक समीकरणों के संदर्भ में देखा जाना चाहिए. पिछले साल राज्य में हुए विधानसभा चुनाव में एनडीपीपी और बीजेपी के गठबंधन ने सरकार बनाई थी और नेफ्यू रियो मुख्यमंत्री बने थे. इसके बाद बीजेपी ने अपने स्थानीय सहयोगी नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) से नाता तोड़ लिया था. एनपीएफ ने 60 सदस्यीय सदन में सिर्फ दो सीटें जीती थीं.

योमे ने कहा कि, इसके बाद एनपीएफ के दो विधायकों ने नागा संकट को सुलझाने के लिए पीडीए में शामिल होने का फैसला किया. कांग्रेस इस बार राज्य में लोकसभा चुनाव कमजोर स्थिति में लड़ रही थी. हालांकि, योमे ने बताया कि राज्य के लोग केंद्र में भाजपा की वापसी को लेकर आशंकित थे. उन्होंने कहा कि, उन्हें लगा कि अगर भाजपा जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म कर सकती है, तो वह अनुच्छेद 371 (ए) को भी खत्म कर सकती है.

संविधान के अनुच्छेद 371 (ए) में नागालैंड के लिए विशेष प्रावधान हैं, जो इसकी धार्मिक और सामाजिक प्रथाओं, प्रथागत कानूनों और नागरिक और आपराधिक न्याय के प्रशासन की रक्षा करते हैं. योमे ने कहा कि, लोग बहुत सतर्क हो गए. उन्हें लगा कि हिंदी और समान नागरिक संहिता (UCC) लागू हो सकती है. ईसाई बहुल राज्य होने के नाते, नागालैंड के लोग भी भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के तहत देश के विभिन्न हिस्सों में ईसाइयों के खिलाफ बढ़ते अत्याचारों को चिंता और भय के साथ देख रहे हैं, जैसा कि ऐसी घटनाओं के होने पर चर्च और नागरिक समाज निकायों के बयानों में देखा जा सकता है.

उन्होंने कहा कि हालांकि नागालैंड में केवल एक लोकसभा सीट है, लेकिन राज्य के लोगों ने कांग्रेस उम्मीदवार को चुनकर एक संदेश भेजने का फैसला किया. मिजोरम में इस बार एकमात्र एसटी आरक्षित लोकसभा सीट के लिए छह-कोणीय मुकाबला था. अंत में, राज्य के सत्तारूढ़ जोरम पीपुल्स मूवमेंट (ZPM) के रिचर्ड वनलालमंगईहा ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी मिजो नेशनल फ्रंट (MNF) के के वनलालवेना को 68,000 से अधिक मतों के अंतर से हराकर सीट जीत ली. कांग्रेस के लालबियाकजामा तीसरे स्थान पर रहे. चौथे स्थान पर रही भाजपा का वैसे भी ईसाई बहुल राज्य में कभी भी ज्यादा प्रभाव नहीं रहा.

जो रीयूनिफिकेशन ऑर्गनाइजेशन (ZORO) की सचिव रिनी राल्ते के अनुसार, ZPM मुख्यधारा की राजनीति में एक तटस्थ स्थिति बनाए रखने की कोशिश कर रही है. ZPM विधायक और पूर्व IPS अधिकारी लालदुहोमा के नेतृत्व में गठित छह क्षेत्रीय दलों का गठबंधन है. पार्टी भारत में धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की वकालत करती है. 2023 के मिजोरम विधानसभा चुनावों में, पार्टी ने राज्य विधानसभा की 40 सीटों में से 27 सीटें जीतीं और लालदुहोमा मुख्यमंत्री बने.

राल्ते ने ईटीवी भारत से कहा कि, पूर्व आईपीएस अधिकारी लालदुहोमा 40 साल से राजनीति में हैं, लेकिन अब मुख्यमंत्री बने हैं. जेडपीएम उम्मीदवार ने चुनाव से पहले कोई भी व्यक्तिगत या राजनीतिक टिप्पणी नहीं की. ZPM, MNF की तरह ही एक क्षेत्रीय पार्टी है, लेकिन MNF, NDA और भाजपा के नेतृत्व वाले पूर्वोत्तर लोकतांत्रिक गठबंधन (NEDA) का हिस्सा है. भाजपा के विपरीत, कांग्रेस, एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में, मिजोरम में सत्ता में रही है. लेकिन इस बार, ZPM जैसी विशुद्ध क्षेत्रीय पार्टी के सत्ता में होने के कारण, जो किसी भी राष्ट्रीय गठबंधन के साथ गठबंधन नहीं करती है. कांग्रेस और भाजपा दोनों के पास कोई मौका नहीं है.

भारत के पूर्वी पड़ोसी में गृह संघर्ष के कारण म्यांमार से शरणार्थियों का आना एक प्रमुख मुद्दा रहा है. मिजोरम ने पिछले साल हिंसा भड़कने के बाद मणिपुर से विस्थापित हुए कुकी-जोमिस को आश्रय दिया है. इसके अतिरिक्त, मिजोरम हजारों चिन शरणार्थियों को आश्रय प्रदान कर रहा है, जो उस देश के सैन्य जुंटा और जातीय सशस्त्र संगठनों के बीच भीषण लड़ाई के कारण म्यांमार से भाग गए थे. मिजो लोगों का चिन लोगों के साथ मजबूत संबंध है.

इस बीच, भारत और म्यांमार के बीच फ्री मूवमेंट रेजीम (FMR) को रद्द करने के केंद्र के फैसले ने मिजोरम के लोगों को नाराज कर दिया है. जेडपीएम सरकार इसका और म्यांमार से शरणार्थियों की आमद रोकने के केंद्र के निर्देशों का कड़ा विरोध कर रही है. राल्ते के अनुसार, मिजोरम में कांग्रेस की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाने वाली बात यह है कि राहुल गांधी राज्य के लोगों के सामने आने वाले मुद्दों के प्रति प्रतिबद्ध नहीं हैं.

राल्ते ने कहा कि, जब राहुल गांधी पिछले साल विधानसभा चुनाव से पहले मिजोरम आए थे, तो उन्हें सीमा (एफएमआर) और शरणार्थी मुद्दों पर बात करनी चाहिए थी. वनलालमंगईहा एक पूर्व सरकारी कर्मचारी हैं. उन्होंने लोकसभा चुनाव जीतने के बाद ही कहा है कि वे राज्य में केंद्रीय परियोजनाओं का कार्यान्वयन सुनिश्चित करेंगे. उनकी जीत में कुछ भी रोमांचक नहीं है.

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