हैदराबाद: लोकसभा चुनाव 2024 अब अपने आखिरी पड़ाव पर है. लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा के लिए 370 और एनडीए के लिए 400 पार सीटों का लक्ष्य रखा है. बात पश्चिम बंगाल की करें तो यहां बीजेपी बड़ी जीत का दावा करते दिख रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां तक कह दिया कि बंगाल में टीएमसी अस्तित्व के लिए लड़ रही है. पीएम का दावा है कि, पश्चिम बंगाल में बीजेपी का प्रदर्शन सबसे अच्छा होने वाला है. मोदी का बंगाल को जीतने की यह उम्मीद कितना सच साबित होगा यह तो 4 जून को पता लग ही जाएगा. हालांकि, पश्चिम बंगाल पर फतह बीजेपी के लिए काफी महत्वपूर्ण है. यह सिर्फ 2024 के लोकसभा चुनाव की बात नहीं है, पार्टी पिछले कई वर्षों से ममता के गढ़ पर कमल खिलाने का उद्देश्य लेकर चल रही है. बीजेपी का कमल बंगाल में सबसे पहले 1998 में खिला था.
बंगाल 'फतह' बीजेपी के लिए कितना महत्वपूर्ण
सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के दौर में बंगाल में बीजेपी ने अपनी पैठ बनाई और 12वीं लोकसभा के लिए 1998 के आम चुनावों में अपनी पहली लोकसभा सीट जीती. 1998 में बीजेपी ने दमदम लोकसभा सीट से तपन सिकदर पर अपना भरोसा जताया था. जिन्होंने सीपीआई (एम) उम्मीदवार निर्मल कांति चटर्जी को 1 लाख 37 हजार 405 मतों के अंतर से हराया. सिकदर, राज्य की तरफ से अल्पावधि के लिए चुनी गई 12वीं लोकसभा में भेजे गए 42 सांसदों में से एकमात्र भाजपा प्रतिनिधि थे, जिन्होंने दमदम लोकसभा सीट जीती. भाजपा ने 1998 और 1999 के लोकसभा चुनावों में भी दमदम सीट जीती थी. हालांकि, 1999 के बाद बीजेपी दोबारा इस सीट पर दावा करने में विफल रहा. 2004 में बीजेपी दमदम लोकसभा सीट से हाथ धोना पड़ गया. उसके बाद से अब तक यह सीट बीजेपी के खाते में नहीं आई. एक तरह से बीजेपी बंगाल से एक तरह से दूर होती चली गई.
पश्चिम बंगाल में ऐसे आगे बढ़ी बीजेपी
बीजेपी ने हार नहीं मानी और पश्चिम बंगाल में बीजेपी का फिर से उदय 2009 में हुआ. उस समय लोकसभा चुनाव में राज्य की दार्जिलिंग सीट से बीजेपी के कद्दावर नेता जसवंत सिंह सांसद के तौर पर निर्वाचित हुए. इस तरह पश्चिम बंगाल में कुछ सालों के निर्वासन के पश्चात भाजपा को फिर से अपने लिए 2009 में एक उम्मीद की किरण दिखी. लगभग दशक भर तक निर्वासन जैसी स्थिति झेलने के बाद बीजेपी बंगाल में अपना खाता खोलने में कामयाब हुई. वैसे बीजेपी को यह जीत अकेले हासिल नहीं हुई थी, बल्कि तब दार्जिलिंग हिमालयी क्षेत्र के बिमल गुरुंग के समर्थन से ही यह सबकुछ संभव हो पाया था. इसके बाद साल 2014 में दार्जिलिंग के साथ-साथ बीजेपी ने आसनसोल सीट पर भी जीत हासिल की.