रायपुर:छत्तीसगढ़ लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी टक्कर देखने को मिली.राज्य बनने के बाद वोटर्स ने सिर्फ इन्हीं दो पार्टियों पर भरोसा जताया है. इस बार भी लगभग ऐसा ही रिजल्ट सामने आएगा. तीसरा मोर्चा और निर्दलीय प्रत्याशी हर बार की तरह इस बार भी सहायक भूमिका में ही नजर आएंगे.भले ही नतीजे 4 जून को आएंगे,लेकिन जिस तरह का वोटिंग पैटर्न रहा है उसे देखकर ऐसा लग रहा है कि इस बार छत्तीसगढ़ में जनता का मूड कुछ नया करने का है.आईए जानते हैं किन सीटों पर प्रत्याशियों की किस्मत पलट सकती है ?
कितने उम्मीदवारों ने लड़ा चुनाव ?:बात यदि कैंडिडेट्स की करें तो इस बार छत्तीसगढ़ के लोकसभा चुनाव में 220 उम्मीदवारों ने अपनी किस्मत आजमाई. जिसमें सबसे ज्यादा उम्मीदवार रायपुर से 38, फिर बिलासपुर से 37, कोरबा से 27, दुर्ग से 25, जांजगीर चांपा से 18, महासमुंद से 17, राजनांदगांव से 15, रायगढ़ से 13, बस्तर से 11, सरगुजा से 10 और सबसे कम कांकेर से 9 प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा.
बस्तर लोकसभा सीट:छत्तीसगढ़ की बस्तर लोकसभा सीट कांग्रेस और बीजेपी दोनों के ही लिए काफी महत्वपूर्ण है. बस्तर लोकसभा सीट अनुसूचित जनजाति यानी एसटी वर्ग के लिए आरक्षित है. आजादी के बाद 1952 में पहली बार बस्तर सीट अस्तित्व में आई. 2019 में कांग्रेस के दीपक बैज ने इस सीट से चुनाव जीतकर कांग्रेस का छत्तीसगढ़ में परचम लहराया था. इस बार बस्तर में पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को होगा.
कौन है आमने-सामने ?: बस्तर लोकसभा सीट में इस बार कांग्रेस ने मौजूदा सांसद रहे दीपक बैज का टिकट काटकर कांग्रेस के कद्दावर नेता कवासी लखमा को मौका दिया.कवासी लखमा बस्तर का जाना माना चेहरा हैं.
कवासी लखमा : कवासी लखमा कोंटा विधानसभा से विधायक हैं. कांग्रेस की पिछली सरकार में कवासी आबकारी मंत्री का पद संभाल चुके हैं.कवासी लखमा बस्तर रीजन में कांग्रेस का बड़ा चेहरा है. सबसे पहले 1998 में कवासी लखमा ने चुनाव जीता था. उसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. 2003, 2008, 2013, 2018 और फिर इस बार 2023 में कवासी लखमा चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं.स्कूल का मुंह तक नहीं देखने वाले लखमा ने कांग्रेस सरकार में उद्योग और आबकारी मंत्री का पद संभाला है.छत्तीसगढ़ राज्य के कोंटा विधानसभा से पहली बार 2003 में विधायक चुने गए थे. 2013 में दरभा घाटी में नक्सली हमले के दौरान, 30 से अधिक लोग मारे गए थे,कांग्रेस के कई नेता शहीद हुए.लेकिन कवासी लखमा बच गए थे.
महेश कश्यप : बीजेपी ने जमीन कार्यकर्ता से नेता बने महेश कश्यप को मैदान में उतारा है. महेश कश्यप की आदिवासियों के बीच अच्छी पैठ रही है. कार्यकर्ता से नेता बनने तक का सफर तय करने वाले महेश कश्यप एक जुझारु नेता के तौर पर जाने जाते हैं.
बस्तर लोकसभा सीट पर कितने वोटर्स? : बस्तर लोकसभा सीट पर करीब 13 लाख 57 हजार 443 वोटर्स हैं. इनमें से 6 लाख 53 हजार 620 पुरुष मतदाता हैं जबकि 7,03,779 महिला वोटर्स हैं. 201 9लोकसभा चुनाव में 9 लाख 12 हजार 846 मतदाताओं ने मतदान किया था. मतलब यहां 70 फीसदी मतदान हुआ था.
कौन जीत सकता है बस्तर ?: बस्तर में पहला चरण का मतदान 19 अप्रैल को था. जिसमें बस्तर की 68.29 फीसदी जनता ने वोट डाले. पिछली बार बस्तर में 70 फीसदी मतदान हुआ था. लेकिन इस बार धुंआधार प्रचार के बाद भी बस्तर की जनता वोटिंग के लिए बाहर नहीं निकली. बस्तर की ट्रेंड की बात करें तो जब-जब यहां कम वोटिंग हुआ है, विधानसभा की सत्ताधारी दल को इसका फायदा मिला है. विधानसभा की बात करें तो बस्तर की ज्यादातर सीटें बीजेपी के पास हैं,ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा,कि इस बार बस्तर में समीकरण बदल सकते हैं.
राजनांदगांव लोकसभा सीट:छत्तीसगढ़ में राजनांदगांव लोकसभा हाईप्रोफाइल सीट मानी जाती है.इसे मुख्यमंत्रियों की सीट भी कहा जाता है.विधानसभा चुनाव में बीजेपी के पूर्व सीएम रमन सिंह इसी सीट पर चुनाव लड़ा करते थे.इस बार भी रमन सिंह ने इस सीट से जीत दर्ज की है. राजनांदगांव सीट 1952 में पहली बार अस्तित्व में आई थी. 2009 से इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है. 2019 में इस सीट पर बीजेपी के संतोष पाण्डेय ने जीत दर्ज की थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के संतोष पांडे ने कांग्रेस के भोला राम साहू को हराया था. राजनांदगांव लोकसभा में विधानसभा की आठ सीटें आती हैं. ये सीटें पंडरिया, कवर्धा, खैरागढ़, डोंगरगढ़, राजनांदगांव, डोंगरगांव, खुज्जी और मोहला-मानपुर हैं.
कौन है आमने-सामने ?: छत्तीसगढ़ लोकसभा चुनाव में इस बार भी राजनांदगांव सीट से बीजेपी ने संतोष पाण्डेय को उतारा है. जबकि कांग्रेस की ओर से भूपेश बघेल मैदान में हैं.भूपेश बघेल प्रदेश के सीएम रह चुके हैं. जहां इस लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने के बाद दिग्गज मुख्यमंत्री बने,वहीं भूपेश मुख्यमंत्री बनने के बाद चुनाव लड़ रहे हैं.
भूपेश बघेल :भूपेश बघेल की छवि पाटन की जनता के बीच लोकप्रिय नेता और सीएम की रही है. पाटन में जितने भी विकास के काम हुए उन सबका श्रेय भूपेश बघेल को जनता देती है. पाटन सीट से भूपेश बघेल अब तक पांच बार चुनाव जीत चुके हैं. भूपेश बघेल पर कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व पूरी तरह से भरोसा करता है. 2023 के विधानसभा चुनाव में भूपेश बघेल ने बीजेपी प्रत्याशी विजय बघेल को शिकस्त दी है.भूपेश बघेल को इस बार पार्टी ने राजनांदगांव सीट से संतोष पाण्डेय के खिलाफ उतारा है. कांग्रेस का मानना है कि भूपेश बघेल की छवि का असर आसपास की दूसरी लोकसभा सीटों पर भी पड़ेगा. यदि ऐसा हुआ तो कवर्धा, राजनांदगांव और दुर्ग लोकसभा में कांग्रेस बड़ा उलटफेर कर सकती है.भूपेश बघेल 2018 में प्रदेश के सीएम रह चुके हैं.ऐसे में कांग्रेस उनके तजुर्बे का फायदा उठा सकती है. कांग्रेस को यकीन है कि भूपेश कई जगहों पर बिखर रही कांग्रेस को एकजुट करके लोकसभा में करिश्मा किया है.
संतोष पाण्डेय :संतोष पाण्डेय बीजेपी के मंडल अध्यक्ष से लेकर राजनांदगांव जिला के युवा मोर्चा के दो बार अध्यक्ष रहे हैं. संतोष बीजेपी के दो बार प्रदेश मंत्री रहे हैं और इसके अलावा वह प्रदेश महामंत्री भी रह चुके हैं. संतोष पाण्डेय ने कृषि उपज मंडी कवर्धा का अध्यक्ष पद भी संभाला हैं. संतोष पाण्डेय को बीजेपी शासन काल में खेल एवं युवा कल्याण आयोग के प्रदेश अध्यक्ष भी बनाया गया था. इसके बाद संतोष राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र से 17वीं लोकसभा में सांसद बने और एक बार फिर से राजनांदगांव से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं.
राजनांदगांव लोकसभा सीट पर मतदाता :राजनांदगांव लोकसभा सीट पर करीब 16 लाख 88 हजार 647 वोटर्स हैं. इनमें से 8 लाख 43 हजार 122 पुरुष मतदाता हैं जबकि 8 लाख 45 हजार 495 महिला वोटर्स हैं. 2019 लोकसभा चुनाव में 13 लाख 7 हजार 33 मतदाताओं ने मतदान किया था. यहां 74 फीसदी मतदान हुआ था.
कौन मार सकता है बाजी ?राजनांदगांव लोकसभा सीट में इस बार कांग्रेस ने अपने सबसे बड़े राजनीतिक खिलाड़ी को मैदान में उतारा.पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को राजनांदगांव सीट से टिकट मिला था. इस बार राजनांदगांव लोकसभा सीट में 77.42 फीसदी मतदान हुआ .जो पिछली बार के मुकाबले 3.42 फीसदी ज्यादा है. राजनांदगांव सीट की बात करें तो लोकसभा में आने वाली ज्यादातर विधानसभा सीटें कांग्रेस के कब्जे में हैं.सिर्फ राजनांदगांव विधानसभा ही बीजेपी के पास है.वहीं कवर्धा और पंडरिया विधानसभा सीटें बीजेपी के पाले में हैं. ऐसे में कांग्रेस का कैडर वोट पार्टी के पक्ष में गया तो इस सीट पर बड़ा बदलाव हो सकता है.
बिलासपुर लोकसभा सीट:बिलासपुर लोकसभा सीट 1952 में अस्तित्व में आई. साल 2019 में अरुण साव इस लोकसभा सीट से सांसद बने थे.मौजूदा समय में अरुण साव प्रदेस सरकार में डिप्टी सीएम हैं. छत्तीसगढ़ की हाई प्रोफाइल लोकसभा सीट बिलासपुर में पिछले कई सालों से बीजेपी का कब्जा है. 2019 में सांसद लखन साहू का टिकट काटकर अरुण साव को सांसद प्रत्याशी बनाया गया था.अरुण साव ने रिकॉर्ड 1 लाख 41 हजार 763 मतों से अपने प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस प्रत्याशी अटल श्रीवास्तव को हराया था.बीजेपी के गढ़ के रूप में पहचान बना चुकी बिलासपुर संसदीय क्षेत्र में बिलासपुर, बिल्हा, मस्तूरी, बेलतरा, तखतपुर, लोरमी, मुंगेली और कोटा विधानसभा सीट आती हैं.
कौन है आमने-सामने ?:बिलासपुर लोकसभा सीट से इस बार कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने ही नया प्रत्याशी उतारा है. बीजेपी की ओर से जहां लोरमी के पूर्व विधायक तोखन साहू मैदान में हैं,वहीं कांग्रेस की ओर से भिलाई नगर विधायक देवेंद्र यादव बिलासपुर से चुनाव लड़ रहे हैं.
देवेंद्र यादव :देवेंद्र यादव 2009 में रुंगटा कॉलेज के एनएसयूआई प्रतिनिधि रहे. 2009 से 2011 तक जिला अध्यक्ष एनएसयूआई रहे. 2011 से 2014 तक प्रदेश अध्यक्ष एनएसयूआई बने. 2014 से 2015 तक राष्ट्रीय सचिव 2015 से 2016 तक राष्ट्रीय महासचिव एनएसयूआई रहे. 2016 में नगर पालिका निगम भिलाई के महापौर बने. 2017–18 में वे राष्ट्रीय सचिव यूथ कांग्रेस रहे. देवेंद्र यादव 2018 में पहली बार कांग्रेस की टिकट पर विधायक बने थे. देवेंद्र यादव ने स्कूल के दौरान ही कांग्रेस की छात्र राजनीति में कदम रख दिया था. 25 वर्ष की उम्र में देश के सबसे कम उम्र के महापौर बनने का खिताब देवेंद्र यादव को मिला है. राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में देवेंद्र यादव ने अहम भूमिका निभाई थी.देवेंद्र यादव ने दो बार छत्तीसगढ़ विधानसभा के पू्र्व अध्यक्ष और मंत्री प्रेमप्रकाश पाण्डेय को चुनाव में शिकस्त दी है.